अब मुझे ज़िन्दगी कर दे…..
थोड़ा रूककर अपनी गहराइयों में झाँक पाँऊ,
इतना तो मुझ पर करम कर दे.
हर पल एक बैचेनी है, इस बैचेनी को समझ पाऊँ,
इतना-सा तो रहम कर दे.
भागता रहता हूँ इस जगत की चिल्लर पाने को,
सब खोकर अपना जोर से हँस दूँ,
ऐसी नजर मेरी तरफ कर दे.
जानता हूँ उसे ना समझ पाऊँगा,
जिसने इस समझ को बनाया है.
उसे ना जान पाऊँगा,
जो सब को जान रहा है.
अब तो तू ही मेरी नावं खिवैया बनकर
मेरी टूटी कश्ती का रुख अपनी तरफ कर दे.
मिटाकर मेरे अहं का अंधेरा दिल में दफ़न कर दे.
मैं भी तो तेरा अंश हूँ, मेरी झूठी कहानी का अब अन्त कर दे.
अपने अस्तित्व में मिलाकर इस ज़र्रे को भी समन्दर कर दे.
हर पल डोल रही है एक लहर ज़िन्दगी की,
तेरी बनाई हर शह में,
जीने- मरने की ख्वाहिशों को मिटा दे.
अब मुझे ज़िन्दगी कर दे…….
………..शगुन सिंगला