प्रेम नगर के हम हैं पंछी, प्रेम के गीत हैं गाते.
ना कोई बस्ती मकान अपना, खुले गगन मंडराते.
ध्यान गंगा का जल हैं पीते, ज्ञान के गीत हैं गाते.
सुख- दुख खाली जाल बिछावे, अब नहीं धोखा खाते.
तेरी कृपा से सीखा हमने, मस्ती में पंख फैलाते.
प्रेम नगर के हम हैं पंछी, प्रेम के गीत हैं गाते.