किसी से डरते क्यों हो ?
दबा के मन की बात, मौन तुम धरते क्यों हो ?
शरीर में मुहं में जिह्वा, खुल कर अपनी बात कहो.
मरने पर चुप रहना, जिन्दा मरते क्यों हो ?
अरे, भले तुम से तो “मूर्ख” ही लगते हैं.
भले निरर्थक सही, मगर कुछ कहते हैं.
तुम सुशिछित होकर, भला हिचकते क्यों हो ?
चलो होंठ खोलो, अब यह संकोच हटाओ.
बोल उठो, मृदु बोलो, सफल तुम भी कहलाओ.
उठो, भरो हुंकार, समर से हटते क्यों हो ?
किसी से डरते क्यों हो ?