कही अनकही ।।
कुछ कही, कुछ अनकही,
जो कही तो कहकहे हो गए,
किसी को कुछ कहा किसी को कुछ
यूँ ही बेवजह फासले हो गए
फासले जो दरमियाँ यूँ हो गये,
कुछ बात जुबां पे आई,
कुछ जुमले अंदर ही रह गये ।
कुछ बताया,कुछ छुपाया,
बताते छुपाते रिश्तों के धागे
सरे बाज़ार नीलाम हो गये ।
पत्ते क्या झड़े शाख से,
तोड़ने टहनियां,
लकड़हारे निकल गये ।
बासंती हवा सा अपनों का मिलना,
गर्म लू सा किसीका बिछड़ जाना ।
क्या कहना,क्या छुपाना ?
फासलों को छोड़ दिया तो,
हर कहकहे गीत हो गये ।
।। पीके ।।