भाव शून्य सा, निरंतर बिन जल
आँसुओ से खुद को सींचता हूँ मैं
तुम खड़े हो साथ, बस इस आस में जी रहा हूँ मैं
दबे पाँव बे गैरत, जिंदगी झुका रही
आहिस्ता आहिस्ता, मोहवश जी रहा
राह उसकी तक रहा मैं..
आँसुओ से खुद को सींचता हूँ मैं
तुम खड़े हो साथ, बस इस आस में जी रहा हूँ मैं
दबे पाँव बे गैरत, जिंदगी झुका रही
आहिस्ता आहिस्ता, मोहवश जी रहा
राह उसकी तक रहा मैं..