कभी उधम का मैदान
आज सूना पड़ा है
बच्चों का कमरा
आज अधूरा पड़ा है
कितना अस्तव्यस्त
बिखरे कपड़ों से पस्त
हमेशा टोकते टोकते थके थे
आज व्यवस्थित सन्नाटे यहां थे
स्कूल बैग पटका इधर
एक जूता जाने किधर
किताब कहीं, गिटार कहीं
किसी चीज की परवा नहीं
कितना चिल्लाता था तब तो
सामान जगह पर रखने को
कमरे में बूढ़ा बाप झांक आता है
जहां शोर था, वहां खामोशी से डर जाता है
लड़कियां ही नहीं, लड़के भी
अब घर छोड़ जाते हैं
शरारतों की यादें
मीठी सी बातें घर में छोड़ जाते हैं.
डॉ.राजीव जैन