नीयत साफ जरूरी है,
खुद्दारी भी जरूरी है,
दुनियादारी ठीक से चलती रहे,
वो चालाकी तो मगर, मजबूरी है।
हासिल कम है या लालच ज्यादा,
साधन सीमित है या उम्मीदें ज्यादा,
संभलकर चलने के लिये, मगर,
ये समझना भी जरूरी है।
कहाँ से चले थे, कहाँ आ गये,
दिल के सुकून के लिये,
पीछे मुड़ कर देखना भी जरूरी है।
कदम से कदम मिलाकर चलो,
मंजिल मिल ही जायेगी,
जितनी है जरूरी, हसरतें पूरी हो जायेंगी
संभल कर बोलना जरूरी है,
ज्यादा आवेश में ये जुबाँ फिसल जायेगी।
आगे बढ़ना तो जरूरी है, मगर
ऊंचाई और साये का तालमेल भी जरूरी है।
परछाई है वजूद का आईना, मगर,
इसके लिए पैर धरा पर जरूरी है।
।। पीके ।।