क्यों मायूसी का मन्जर है,
पल पल घुमड़ता, आँखों में समन्दर है,
जाने किसको उडगति ये अँखियाँ,
किसी पर क्यों आस लगाये बैठी है।
वो रेत को रौंदता नीर की तलाश में,
अडिग, अदम्य, अदभुत साहस,
आँखों मे झील सी गहराई, लक्ष्य भेदती,
हार कर छोड़ देना या लड़ कर पराजित होना,
बस सीख और ग्लानि का अन्तर है ।
करम लिखेंगे माथे की लकीरें ।
क्यों संताप करें क्यों विलाप करें,
सूरज की रोशनी में नहीँ,
अँधेरे में ही दीपक जलता है ।
जो चट्टानों सी मुसीबत में, लहरों से टकराता है,
वो लहरें जिसने डुबाई कश्तियाँ कई,
आकर किनारे पर, पैरों को चूमती है ।
इस जज्बे को, सागर भी फिर पथ देता है,
तेरी हिम्मत, तेरा साहस,
फिर लिखी तकदीर बदल देता है,
पग पग, पल पल, बल देता है,
मायूसियों को खुशियों का मंजर देता है ।
।। पीके ।।