मेरे अपने
सब कुछ देखा,
दुनिया देखी
अपने देखे
अपनों में अपनों के लिए
अपनापन देखा
अपनेपन में अपनों द्वारा
परायापन देखा
अपनेपन में छिपी पराई सीमा देखी
यह नजर बड़ी कीमत
चुका कर मिली
अपनों को अपनी आँखों नेओझल कर दिया.!!
“चोट दे दी है अपनों ने ऐसी, कही जाए भी ना वो है कैसी.”
एक मै ही क्यों समझूँ ? मै ही क्यों चुप रहूँ ?
_ मै भी तो इंसान हूँ.
_ बातें मुझे भी लगती है.
_ मेरे अंदर भी दिल है.
_ मुझे भी गुस्सा आता है.
_ हर परिवार मे एक सदस्य ऐसा जरूर होता है जिसे समझदार कह कर दबाया जाता है और वह अंदर ही अंदर घुटता रहता है.!!
मैने अपने ही रिश्तों में इतना स्वार्थ, मतलब, धोखा, फरेब देखा है की अब किसी पर विश्वास नहीं होता,
_ विश्वास शब्द बहुत खोखला सा लगता है, ज्यादातर रिश्तों से दूर हो गया हूँ..
_ कुछ बस नाम के चंद रिश्ते बचे हैं उन्हें भी देख रहा हूँ _और जहां तक मुझे लगता है उनसे भी एक वक्त बाद मुझे विदा लेना होगा.
_ जब सामने वाले को पता चल जाए कि मजबूरी है, इंसान मजबूर है तो वो उसका फायदा उठाता है..
_ बस फायदा उठाने के तरीके अलग होते हैं.!!
भावनाओ के बहकावे में आकर मैंने बहुत लोगों के ऊपर मुफ़्त वक्त बर्बाद किया है, मुझे लगता था ये आजीवन साथ रहेंगे,
_ ये रिश्ते ही सबकुछ होते हैं, रिश्तों के बिना जीवन कुछ नहीं है,
_ मैं गलत था आज परिणाम मिल चुका है आज अकेला हूँ.!
_ मै इंसानों से लड़-झगड़, प्यार सकता हूँ, पर जिंदा लाशों के साथ नहीं रह सकता,
_ जिनके साथ लगता था इनके बिना एक दिन नहीं गुजरेगा, उन्हें भी भूला आया हूँ..
_ कुछ रिश्तेदार थे, आहिस्ता आहिस्ता वो दूर हो गए, अब कहां और कैसे है मुझे नहीं मालूम..
_ और अब मै सब भूल जाना चाहता हूँ उन तथाकथित लोगों को.. जो प्रेम तो दर्शाते थे, अपनत्व भी – पर उनकी वजह से नुकसान हुआ.!!
“ज़िंदगी के कुछ अध्याय बस पढ़ लेने के लिए होते हैं, दोबारा जीने के लिए नहीं..
_ मैंने अब बहुत कुछ समझ लिया है — कौन अपने थे और कौन ज़रूरत के वक़्त ग़ैर बन गए..!
_ अब मैं अपनी शांति को प्राथमिकता दे रहा हूँ…
_ कुछ रिश्तों को दूर से सलाम है, पास से नहीं.”
_ “कुछ रिश्ते अब बस दूर से सलाम के लायक हैं,
_ क्योंकि मेरी शांति किसी भी पुराने नाम से ज़्यादा कीमती है”
जो पीछे रह गया, वो शायद पीछे छूट जाने के लिए ही आया था..
_ ज़रूरत के वक़्त जो साथ छोड़ गया, उसका मक़सद ही शायद यही था..
_ मुझे सिखा जाना कि कौन मेरे साथ नहीं था..
_ कभी-कभी कुछ रिश्ते सिर्फ इतना ही करने आते हैं,
_ थोड़ा सा वक़्त हमारे साथ बिताकर, हमें हमारी असली क़ीमत समझा जाते हैं.!!
गलतियां तो बहुत हुई जिंदगी में, लेकिन जो गलतियां अपनों को पहचानने में हुई, उसका नुकसान सबसे ज्यादा हुआ.!!
मैंने सबसे प्रेम करके देख लिया, सबको प्रसन्न करने की चेष्टा की, चाहे जान की बाजी लगा दो.. फिर भी ये लोग कभी प्रसन्न नहीं होते, ये कभी हमारे नहीं होंगे.
कभी मेरे दिल में सिर्फ प्रेम की मीठी खुशबू बसती थी, आज वही जगह धुँधली महक से भर गई है..
_ क्या बदला, क्यों बदला, इसका पता मुझे नहीं, पर जो भी बदला है, वह अजीब, अनजाना सा लगता है.!!
कुछ जगहों पर बिल्कुल मत झुको,
_ क्योंकि एक बार झुक जाओगे.. जीवन भर पछताओगे,
_ आपको क्या लगता है कुछ लोग आपके झुकने पर आपको सर आंखों पर बिठाएंगे.. हरगिज़ नहीं,
_ वो आपके झुकने की बोली लगाकर.. आपके दिए हुए सम्मान को भी नीलाम कर देंगे.
_ झुकने की भी सीमा होती है.. उसके बाद हरगिज़ नहीं.!!
मैंने बचाना चाहा और उन्होंने मिटाना, ये कैसे अपने हैं ?
_ “सच्चे अपने वही हैं जो थामते हैं, मिटाने वाले सिर्फ नाम के अपने हैं”
“मैंने चाहा था उन्हें बचाना,
पर उन्होंने तो मुझे मिटाने की ठान ली..
_ कैसे अपने हैं ये, जो अपनेपन की आड़ में
मेरे ही अस्तित्व को चोट पहुँचाते हैं.
_ अब समझ आया—
_ सच्चा अपना वही है,- जो मुझे गिरते समय थाम ले, न कि धक्का दे.
_ बाकी सब सिर्फ नाम के रिश्ते हैं”
_ अब अपनों से- रिश्तेदारों से बस उतना ही व्यवहार रखना है, जितना सामाजिक रूप से न्यूनतम आवश्यक हो — न गहरी आत्मीयता, न अनावश्यक द्वेष.!!
नाते-रिश्ते बकवास और भ्रम हैं – जो मृत्यु से पहले ही व्यवहार से टूट जाते हैं,
_इसलिए बस जियो और खूब मस्त रहो.!!
_इसलिए बस जियो और खूब मस्त रहो.!!
अब मुझे रिश्तों में प्रेम के दौरे नहीं आते.!!
ये जो अपने होते हैं, ये अपने क्यों नहीं होते..??
ज़िन्दगी बीत जाती है.. अपनों को अपना बनाने में.!!
लोग सिर्फ हमारे सामने ही, सिर्फ हमारे होते हैं.!!
मैंने उनको नहीं खोया है, उन्होंने मुझको खोया है..!!
उन्होंने उसी को धक्का दे दिया.. जो उन्हें बचाने आया था.!!
सबको अपनाकर देखा है, सबने बस अपना देखा है.!!
सिर्फ़ एक चूक की ढील है, लोग अपना रंग दिखा देंगे.!!
अपनापन बाँटते समय ये भी याद रखो.. कि हर कोई आख़िर तक अपना नहीं होता.!
जब हम खुश होते हैं तो सबसे अधिक दुखी हमारे अपने ही होते हैं.!!
तकलीफ मेरी ख़ुद ही कम हो गई, जब अपनों से उम्मीद कम हो गई.!!
अपनों से बात करो..,, लेकिन किसी समाधान की उम्मीद से नहीं, सिर्फ बात करने के लिए बात करो..!!
बड़ा अजीब है, अपनों को “अपनों” से ही जलन है..!!
_ आपकी तरक्की पर वो लोग खुश हो जाएंगे, जो आपके अपने नहीं हैं ;
_ मगर वो लोग कभी खुश नहीं होंगे.. जो तथाकथित आपके अपने हैं.!!
बुरा वक़्त था, मुझे लगा मेरे अपने हौसला बढ़ाएंगे, उन्होने तो फ़ासले बढ़ा लिए..
_ इसलिए कभी जिन्हें पाना चाहता था, अब खोना चाहता हूँ.!!
कभी-कभी सबसे बड़ा दुःख यही होता है कि जो किया जा सकता था, वो उनके द्वारा नहीं किया गया…!
जो हमारे साथ बुरा करते हैं उन्हें करने दो,
_ इस तरह हम उन रिश्तों से मुक्त हो जाते हैं जो बोझ बन गए थे.!!
_ इस तरह हम उन रिश्तों से मुक्त हो जाते हैं जो बोझ बन गए थे.!!
ज़िंदगी में मैंने हमेशा दिल से चाहा, हर रिश्ते में सच्चाई और अपनापन डाल कर निभाया,
_ पर अफ़सोस उसी अपनापन के सफ़र में मेरी संवेदनाएँ सबसे ज़्यादा कुचली गयीं..
_ जिसे जितना करीब से अपनाया, उसी ने सबसे गहरा घाव दिया, टूटे हुए एहसास और अधूरी उम्मीदें ही मेरे हिस्से में आयीं..
_ कभी-कभी लगता है कि शायद मेरे हिस्से का प्रेम तो मैं दे गया, लेकिन मेरे हिस्से की क़ीमत दर्द बनकर रह गई.!!
एक अनजान इंसान शायद आपका सबसे बड़ा प्रशंसक हो सकता है, क्योंकि वह आपको बिना किसी पूर्वाग्रह के देखता है..
_ पर आपका सबसे बड़ा आलोचक हमेशा वही निकलेगा, जो आपको करीब से जानता है,
_ क्योंकि वही आपकी अच्छाइयों के साथ-साथ आपकी कमज़ोरियों से भी अच्छी तरह वाक़िफ़ होता है….!
इसे भाग्य की विडम्बना समझी जाये या कोई साजिश कि जिनके साथ वर्षों का साथ था, जिन्हें सब कुछ समझ स्वीकार कर लिया गया..
_ शायद कभी ये उम्मीद भी नहीं करी गई थी कि जीवन में सबसे बड़ा, वही अवरोधक बनेंगे, खैर.!!!
कुछ लोग अपने होते हैं, सिर्फ रुलाने और सताने के लिए..!!
अपनों को कहना “अपना” छोड़ दें तो अच्छा है.. – ये अपने ही अपनों से लड़ते हैं.!!
अपने तो बहोत हैं, बस अपनेपन की कमी है..!!
अजीब दुनिया का ये चलन है.. अपनों को अपनों से ही ज़ख्म है.!!
गैरों पर कौन गौर करता है, बात जब भी चुभती है अपनों की चुभती है.
जायज नहीं अब आपका पूछना, किस हक़ से पूछते हो हाल मेरा..!!
बुरा चाहने वाले ज्यादातर लोग.. ग़ैर नहीं बल्कि अपने ही होते हैं.!!
अपनों को क्या खबर, मैंने कितने तूफानों को पार कर, दीया जलाया है.!!
उन्होंने मुझे उखाड़ दिया.. पर मैं बीज था, धरती फोड़ कर फिर उग आया.!!
मेरे अपने मुझे देखना भी नहीं चाहते, पर उनकी नज़र मेरे पे ही रहती है..!!
जो लोग आपको नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, वो आपके शांत रहने पर भी बौखला उठते हैं.
अब अपनों से- रिश्तेदारों से बस उतना ही व्यवहार रखना है, जितना सामाजिक रूप से न्यूनतम आवश्यक हो — न गहरी आत्मीयता, न अनावश्यक द्वेष.!!
ये कैसे अपने हैं, जो पीठ पीछे ज़हर उगलते हैं..
_ और हम उनके लिए अच्छे बने रहते हैं.!!
_ और हम उनके लिए अच्छे बने रहते हैं.!!
मुसीबत में अगर आप भी नज़र आते तो अच्छा था..
_ भले ही देर से आते मगर आते तो अच्छा था..!!
दुनिया ने सिखा दिया कि भरोसे में एहतियात जरूरी है..
_ अब अपनों पर भी यक़ीन सोच-समझ कर आता है.!!
दूसरों के लिए खुद को खो देने वाला मैं,
_ मैंने किसी के अंदर अपने लिए अपनापन नहीं देखा..!!
और कुछ इस तरह बिछड़े मेरे अपने..
_ सही वो भी थे… गलत मैं भी नही.!!
उनको दूर हुए भी ज़माना बहुत हुआ,
_ अब क्या कहें क़िस्सा पुराना बहुत हुआ.!!
किसी अपने का यूँ चले जाना सिर्फ एक विदा नहीं होता,
_वो साथ में बहुत कुछ ले जाता है सपने, सुकून, और जीने की वजह भी.!!
अपनी परेशानियों का जिक्र बहुत सोच समझ कर करना चाहिए,
_ क्योंकि हमारे साथ हंस बोल लेने वाला हर इंसान.. हमारा अपना नहीं होता है..!!
कुछ लोग दुख में होते हैं तो आसपास देख ही नहीं पाते हैं, उन्हें सिर्फ अपना दुख दिखाई देता है.
_ मैंने अपने दिल पर पत्थर रखा और उन सब को छोड़कर खुद बाहर निकल आया.!!
जो एक बार मेरे दिल से उतर गया, मैं उसे वापस दिल में जगह नहीं देता ;
_ मैं उसकी जरुरत में, मज़बूरी में उसके काम आ सकता हूँ, मगर उस मदद का मतलब माफ़ी कदापि नहीं होगा.!!
मैं इस काबिल तो नहीं कि कोई मुझे अपना समझे,
_ मगर इतना यकीन है कि कोई अफ़सोस जरूर करेगा, मुझे खोने के बाद..!!
बहुत महंगा था मैं, सस्ते में नहीं आऊंगा..
_ जाओ, छोड़ दिया आपको, अब आपके रस्ते नहीं आऊंगा..!!
उन्होंने मुझे मिट्टी में मिलाने में कोई कसर न छोड़ी..
_ मैं भी ढीठ था, बीज बन कर उगा और खुशबू बन हवाओं में फैल गया.!!
बड़े महंगे पड़े मुझे अपने मेरे.. उन्होंने ने अपना-अपना कह कर..मेरी जिंदगी छीन ली…!!
_ उन्होंने मुझे बहोत दर्द दिया, इसलिए अब मेरे जीवन में उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है.!!
ऊपर उठता हुआ इंसान और ऊँचाई पर उड़ती हुई पतंग किसी को अच्छी नही लगती.
_ सब उसे काट कर नीचे गिराने मे लग जाते हैं.
_ अजीब बात ये है कि इस दौड़ में अपने सबसे आगे रहते हैं.!!
दुख इस बात का नहीं कि लोग बुरे हैं..
_ बल्कि दुख इस बात का है कि वो अपनों का नक़ाब पहनकर हमारे बीच मौजूद हैं.!
_ बल्कि दुख इस बात का है कि वो अपनों का नक़ाब पहनकर हमारे बीच मौजूद हैं.!
बह गया वक़्त के सैलाब में अपनों का गुरुर..
_ कितना चाहा था “अपनों को नहीं छोड़ेंगे”
मेरे अपने करीब आकर दूर हुए हैं मुझसे,
_ इसलिए अब मुझे किसी से नजदीकियां पसंद नहीं.!!
अपने ही लोगों का वार सबसे खतरनाक होता है,
_ क्योंकि वो कम फासले से किया जाता है.!!
मैं अपनी उपलब्धि का श्रेय किसी अपने को नहीं दूंगा,
_ क्योंकि मेरे पास इनमें से ना कोई है और ना कोई था..!!
अपनों से मिला तजुर्बा बस इतना सबक़ सिखाता है !
_ उतना ही मिलो किसी से जितना वो मिलना चाहता है..!!
यदि हम अपनापन ढूंढने निकलेंगे तो हमारी आधी जिंदगी इस तकलीफ में गुजर जाएगी कि.. हम किसी के अपने नहीं हैं.!!
अब ऐसा समय है जब परायों से नहीं बल्कि अपनों से सावधान रहें !!
आप तो हाल न ही पूछो तो अच्छा, ये हाल आप ही ने बिगाड़ा है.!!
आप अपना दुख सोच समझकर किसी दूसरे को सुनाएं, _ क्योंकि अगर सामने वाला आप को नहीं समझ पा रहा है तो _ आपके दुख की धज्जियां उड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा..!!!
हमें वो सभी अपनों के चेहरे याद रहेंगे, जिन्होंने हमारे बुरे वक्त में हमारा साथ नहीं दिया है..!!!
_ कैसे कह दें कि ये अपने हैं,, तकलीफ़ों में भी कहां कोई सुन रहा था हमारी पुकार..!!
“अपनों पर भरोसा नहीं हमें, _ ये लोग बुरे वक़्त में पराए हो जाते हैं..–“
– स्वार्थी एवमं कपटी लोगों से वास्ता खत्म कर लिया हमने…
_सब कोई होशियारी दिखा जाते हैं और हम बेवकूफ़ बन कर रह जाते हैं…!!!
– जिनसे अब कोई संबंध नहीं फिर भी वो .._तकलीफ देना नहीं छोड़ते …
सब अपनी जगह पर है, मैं भी वही हूँ, लोग भी वही हैं,
_ पर अब हर चीज़ में एक अजनबीपन सा है..
_ जहाँ कभी ठहाकों की गूंज थी, अब वहां खामोशी पसरी है..
_ वही चेहरे हैं, मगर मुस्कान अब शिष्टाचार भर रह गई है..
_ न वो आँखों की चमक रही, न बातों में आत्मीयता..
_ अब हर कोई जैसे खुद में उलझा है,
_ हर रिश्ता अब एक औपचारिकता में बदल चुका है..
_ शायद वक़्त ने किसी को नहीं छोड़ा.. सब बदल गया,
_ बस यादें हैं.. जो अब भी वहीं ठहरी हुई हैं.!!
जिन्हें आप अपना कहते हो अगर वो किसी छोटी बात की भी माफ़ी नहीं मांगते तो भलाई इसी में है कि उनसे अलग हो जाइए,
_ क्योंकि ये पहला संकेत है जो ये बताता है कि उनका अहम रिश्ते से भी बढ़ कर है.!!
अगर आपको लगता है कि आपके बहुत सारे अपने हैं, आपके तो बहुत चाहने वाले हैं, आपके साथ तो बहुत लोग हैं जो आपकी परवाह करते हैं..!
_ मैं कहता हूँ १५ दिन अगर मुसीबतें आपको घेर लें, आपकी सेहत ठीक ना रहे या आपके पास पैसा ना रहे तो आप मुझे गिन कर बताना की आपके साथ कितने लोग बचे हैं..!!
जिन अपने लोगो के साथ हम अपने आप को सबसे ज्यादा महफूज समझते हैं,
_ एक वक्त के बाद हमें वही लोग सबसे ज्यादा घुटन की अनुभूति भी कराते हैं, खैर !!…
_ ये बात दुःखद है की जिस अंधेरे में हम उनका हाथ थामते हैं,
_ अक्सर वही लोग हमारे जीवन में अंधेरों का कारण बनते है…!!
न जाने क्यों जिन अपनों के लिए मैं पागल सा रहता था.
_ ऐसे लोगों से अब डिस्कस करना और वक़्त खर्च करना भी मूर्खतापूर्ण और समय की बर्बादी लगता है,
_ ऐसे लोग हमारे जीवन में हमेशा के लिए रहने के लायक नहीं होते,
_ कुछ लोग सिर्फ सबक देने आते हैं, और जब वह सबक मिल जाए, तो उन्हें पीछे छोड़ देना ही बेहतर होता है…!
_ शायद मैं ही ग़लत हूं या हो सकता है कि मैंने भीड़ से अलग रास्ता चुन लिया है.
_ मुझे मालूम है फिर अगर उनके साथ रहने लगा तो.. मेरा जीवन नरक हो जाएगा.
मुझे अब उन लोगों के पास वापस जाने की कोई वजह नहीं दिखती..
_ क्योंकि अब मैं उनके बारे में सब कुछ जानता हूँ, और कोई भी कोशिश मुझे उन खामियों को भुलाने में मदद नहीं कर सकती.. जो मुझे याद है.
_ वे मेरे अच्छे पहलू को भूल गए हैं, बस खामियों को याद करते हैं और मैं उसमें कुछ नहीं कर सकता.
_ मैं उन्हें अपने उस रूप में याद नहीं दिला सकता.. जो उन्हें प्यार करता था.!!
**”कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे पूरी दुनिया में कोई अपना नहीं,
_ पर शायद ये ब्रह्मांड ही चाहता है
कि मैं पहले खुद को याद करूँ —
_ क्योंकि जो खुद से जुड़ गया,
उसे किसी की याद अधूरी नहीं लगती.”
मुझे अपने बिताए वो परेशानी के दिन याद आ गये, जरुरत के समय अपनों को आवाज दी एक आशा भरी निगाहों से देख रहा था..
_ कोई तो साथ देगा.. पर हाथ निराशा ही लगीं और आज सुख के दिन आएं तो किसी को खुशी मंजूर ना हुई.!!
“मुसीबत में जिन हाथों की ओर मैंने उम्मीद से देखा,
वही हाथ खाली रहे.”
_ आज जब सुख के पल आए,
_ तो खुशियों में भी किसी की आँखों में अपनापन नहीं मिला…
_ शायद यही सीख है — “सच्चा सहारा अपने भीतर खोजना होता है.”
सबसे ज़्यादा दुख अपने लोग देते हैं और अफसोसजनक यह है कि एक “माफ़ी” लिखकर एवं बोलकर इन्हें लगता है कि वे सम्बन्धों को सुधार लेंगे,
_ कोई अनजान यह करे तो बात और है, पर अपने लोगों, रिश्तेदार और मित्रों से यदि ऐसा व्यवहार मिले तो दुख होता है.
_ खास करके जिनके लिए हमने समय ही नही दिया.. बल्कि अपने जीवन में इन्हें स्नेह, सम्मान, महत्व और स्थान दिया,
_ और सामने वाला इस सबको मूर्खता समझता है और स्वयं को महाज्ञानी – ये लोग सिर्फ़ धंधेबाज और निर्लज्ज हैं..
– बेहतर है कि इन सब रिश्तों से दूर रहना चाहिए.!!
गुस्से में आदमी सच बोल जाता है.
_ ऐसा करें, आप जिन्हें अपना समझते हैं, उन्हें गुस्सा करने का मौका दें.
_ बल्कि कुछ न कुछ ऐसा अनचाहा कर दें कि.. वे आप पर गुस्सा किए बिना न रह सकें.
_ गुस्से में शायद वे कुछ ऐसा सच बोल जाएँ, जिसे सुन कर आप हैरान रह जाएँ.!!
कभी सोचा है ? इंसानी रिश्ते भी नदी जैसे हैं.
_ जो इंसान जितना साफ दिल, पारदर्शी और सच्चा होगा उसकी ज़िंदगी में उतनी ही कम भीड़ होगी..
_ और जो थोड़ा चालाक-हिसाबी-दोस्ती में दांवपेंच-चालें और चमचागिरी जानता हो.. _ उसके चारों तरफ लोग होंगे.
_ जैसे गंदे पानी में मछलियाँ.. साफ पानी में दिखता सब कुछ है बस रुकता कोई नहीं.!!
– Neha Chandra
परायेपन की एक बू होती है जो दुनिया की तमाम खुशबुओं को लगाने के बाद भी नहीं छुप पाती..
_ कि कोई ओढ़ी हुई विनम्रता जताए, अधिक अपनापन दिखाए, खूब बातें करे तो भी परायेपन को नहीं छुपा सकता और कोई चुप रहे, कुछ न जताए तो भी यह झलक जाता है..!!
— आप जान निकालकर हथेली पर रखते हैं और सोचते हैं कि सामने वाला उसपर अपनी निगाह डालकर आपको कृतकृत्य करेगा.. तो आपकी भूल है,
_ उसने नहीं कहा कि आप उसके अपने हैं,
_ उसने नहीं कहा कि जान निकालकर सामने रखो..
_ यह आपका चुनाव था,आपकी ख्वाहिश थी तो अब आप भुगतें,
_ कोई क्यों अपना जी हलकान करे..!!
— रिश्तों में सबसे ज़रूरी सबक होता है.. अपने दायरे में रहना,
_ बिना मांगे न तो सलाह देना न सहायता करना..
_ पर हमारी अंदरूनी बनावट हमें सारे सबक भुला देती है..,
_ हम वह व्यवहार कर जाते हैं.. जो हम नहीं करना चाहते..
_ कभी यह लापरवाही के कारण होता है तो कभी अधिक आत्मीयता के कारण..
_ कि जिनके मन कोमल होते हैं.. वह पद्य पंखुड़ी से भी घायल हो उठते हैं,
_ फिर दुनिया के नश्तर से वह कैसे बचें..
_ मन पर पड़ी हल्की खरोंच रात की नींदों की दुश्मन होती है,
_ पर रात तो रोज़ आनी है, नींद आए न आए..
_ जिन्हें स्वप्न रहित गहरी नींद आती है.. वह दुनिया के सबसे भाग्यशाली लोग होते हैं,
_ हालांकि इनमें बहुत से लोग वह होते हैं.. जो औरों के स्वप्न तोड़ते हैं, खंजर चलाते हैं, दुनियादारी में अव्वल होते हैं और ढीठ स्वभाव के होते हैं..
ख़ुद की अदालत में, ख़ुद को मुजरिम करार देने से भी करार न आए तो कोई कैसे जिए..
— Mamta Singh