भटक रहा था अन्धकार में, तेरा सहारा मुझे मिल गया.
_ मन का घोड़ा खूब दौड़ाया, थक हार कर पास तेरे आया.
_ मन विछेप से भरा पड़ा था, मोह ममता से जला पड़ा था.
_ झूल रहा था अज्ञानता का झूला, आनन्द रूप हूँ था कब से भूला.
_ तू ने जोड़ लिया संग अपने, फिर मुझे काहे की देर थी.
_ तू ने जो ज्ञान सुनाया, मेरा आनन्द रूप मुझको जनाया.
_ भटक रहा था अन्धकार में, तेरा सहारा मुझे मिल गया.
जिंदगी का झूला अगर पीछे भी जाए मत घबराना, वो आगे भी आएगा..!!