जाने कहां खो गई है जिन्दगी।।
चिट्ठी पत्री की शहादत हो गई ये जिन्दगी,
जन्म दिन, विवाह वार्षिकी, होली दीवाली,
त्योहारों पर चरण- वंदन, आशीर्वाद सब गुम हो गए,
अपनों से मिलकर बतियाने के दिन जाने कहां खो गए,
दही मिर्च वो रोटी, मंगोड़ी, कढ़ी, सांगरी, गट्टे की सब्जी,
पुरानी class के, पुराने लोगों के किस्से हो गए,
पिज्जा, बर्गर, पास्ता, चाउमिन, इस genaration में तो बस मंचूरियन हो गई जिंदगी,
बीमार मां बाप, रिश्तेदारों की खो गई तीमारदारी,
एक मैसेज में पूरी हो जाती जिम्मेदारी,
Get Well Soon हो गई जिन्दगी।
मनुहार पत्रिका को save the date निगल गई,
पीला टीका लगा निमंत्रण पत्र भी गुम होने लगा,
मोबाइल पर invitation हो गई जिंदगी।
वो छत, बरामदे, balcony का मजमा,
वो हा हा, ही ही का शोर, घर के पकवानों का मेला,
घर के बाहर परदे पर चलता सिनेमा भी ओझल हो गए,
बस Multiplex, kitty party हो गई जिंदगी।
सर से पैर तक पूरी digitalisation हो गई जिंदगी,
जाने कहां खो गई है जिन्दगी।।
।। पीके ।।