मस्त विचार 387

जिस राह पर..हर बार मुझे अपना कोई छलता रहा,

फिर भी न जाने क्यों मैं उस राह ही चलता रहा !

सोचा बहुत इस बार रोशनी नहीं ..धुआं दूंगा,

लेकिन चिराग था…..फितरत से जलता रहा……जलता ही रहा….

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