ख्वाहिशें कम हों तो पत्थरों पर भी नींद आ जाती है,
_ वरना मख़मल के बिस्तर भी चुभने लगते हैं.
वो नींद ही अलग होती है, जो बुरी तरह रोने के बाद आती है…!
‘नींद भी क्या चीज है’
_ जब चाहिए हो तो आती नहीं, जब नहीं चाहिए तो जाती नहीं..!!
_ वरना मख़मल के बिस्तर भी चुभने लगते हैं.