“हीरा और पत्थर”
_ एक हीरा था दिल से चमकता, पर जीवन उसने पत्थर सा जिया.
_ ना कभी रोशन हुआ, ना कभी टूट के बिखरा, बस चुप-चाप हर दर्द को पिया.
_ चमकने का जुनून था उसमें, पर लोगों की नज़र में पत्थर ही रहा.
_ खामोशी में जीती उसकी कहानी, हर पल एक अनकही दुआ सा बहा.
_ वक़्त के चाकू ने काटा उसे, पर उसने कभी ना दिखाया गिला.
_ एक हीरा, जो दुनिया को पत्थर दिखा – पर अंदर से रोशनी का सिला.!!
_ पत्थर दिल बनना मज़बूरी है मेरी, अगर मैं टूट गया तो कोई समेट नहीं पायेगा.!!!