जब हम चिंता छोड़ देते हैं और जीवन को वैसे ही जीते हैं जैसे वह है,
तो हमारी उपस्थिति फूल जैसी हो जाती है— सिर्फ़ अपने होने से ही वातावरण को सुगंधित कर देती है.!!
“मैं हीरे नहीं, पर फूल ज़रूर लाता हूँ”
“मैं किसी के लिए भी हीरा भले न लाऊँ, लेकिन फूल ज़रूर लाऊँगा.!!”
_ “हीरे-ज़वाहरात भले किसी की झोली में न रख पाऊँ, पर मेरे भीतर की नर्मी इतनी है कि मैं हमेशा फूलों-सी सादगी और अपनापन दे सकता हूँ”
_ “मैं हीरे नहीं, पर फूल ज़रूर लाता हूँ”