खूब लिखी है ग़लतियों से जुदा तू भी नही, मैं भी नही, दोनो इंसान हैं, खुदा तू भी नही, मैं भी नही .. ” तू मुझे ओर मैं तुझे इल्ज़ाम देते हैं मगर, अपने अंदर झाँकता तू भी नही, मैं भी नही ” .. ” ग़लत फ़हमियों ने कर दी दोनो मैं पैदा दूरियाँ, वरना फितरत का बुरा तू भी नही, मैं भी नही.
ये चन्द पंक्तियाँ जिसने भी लिखी है,
इंसान की फितरत है _ जो छोड़ कर जाए _ उसके लिए तड़पता है ;
और जो अपना सब छोड़ कर आए, _ उसे तवज्जों नही देता !
सारा दोष बस ऐसी फितरत का ही है !