अपने मन की करता हूँ तो सब कहते हैं, ये खुदगर्जी हैं.
मैं उसूलों से राजा हूँ, ये खुदगर्जी नहीं, मेरी मर्जी है.
सभी कों खुश रख सकूँ, अब इतना तो, मेरे बस में नहीं.
झूठी तारीफ, झूठा दिखावा ये सब तो, आखिर फर्जी हैं.
मुझे जब- जब जख्म मिलते हैं तो, बखूबी सिल लेता हूँ.
कारीगिरी मेरी गौर से देखना, मुझ में भी इक दर्जी हैं.