ज़िंदगी
कमरे की दीवार पर
लगे कलैंडर से मिलती जुलती होती है…
जिस पर हर दिन नयी तारीख आती है.
नया हफ्ता आता है. साल बदल जाता है.
ज़िंदगी में भी हर दिन, एक नयी समस्या से
झूझना पड़ता है..
हर हफ्ते सोच बदलती है..
हर साल कोई साथ छोड़ता है.
कोई नया साथ बनता है..
कलैंडर को तो देख कर पता चल जाता है
कल नयी तारीख आयेगी..
पर ज़िंदगी में पता नहीं चल पाता
कल कौन सी समस्या सर उठाएगी…