हार नहीं मानूँगा मै.
काली गहरी रातों में, उबड़- खाबड़ रास्तों में
साथ कोई हो, न हो,परवाह नहीं
अकेला ही चलता जाऊँगा.
फूल मिले या काँटे मुझे राहों में
याद दिलाते रहे मुझे जो, मेरी मंजिल के सपने
राह चलते चूक भी गया तो ग़म कैसा.
अपनी ही लड़ाई से भय कैसा.
आज नहीं तो कल जीत ही जाऊँगा
हार नहीं मानूँगा मै.