एक रस्सी है, _ जिसका एक सिरा ख्वाहिशों ने पकड़ रखा है और दूसरा औकात ने,
_ और इसी खींचातानी का नाम जिंदगी है…!!!
हम सभी मन की कमज़ोर रस्सियों से बंधे पड़े हैं और यही सोच कर बैठ जाते हैं कि हम क्या कर सकते हैं, .. हम कुछ नहीं कर सकते..!!
_ हममें ऐसा कुछ नहीं कि हम कुछ कर पाएं..
_ “”रस्सी खोलिए”” आप सब कर सकते हैं, …कीजिए..
_ वो कीजिए, जिससे आपका जीवन संवरे.. सबका जीवन संवरे..
_ रस्सी का भय छोड़िए..!!