काम पड़ा तो मलमल,
नहीँ तो टाट का पैबन्द हो गये ।
खिलखिला कर हँसना, भूल गये,
हल्के से मुस्कराकर, रस्म अदा हो गये ।
पहले लड़ भी जाते थे किसी से भी, किसी के लिये,
अब क्या बीच मे पड़ना, चुप ही रहना, बस,
अपने अपनों के दायरे, कितने सीमित हो गये ।
पीढ़ी दर पीढ़ी फ़ासले दरम्यां ऐसे बढ़े,
खून के रिश्ते पानी हो गये,
बुढ़ापे के नाम, दिन जवानी हो गये ।
अपनों से अपनों की सुन सुन कर,
अपने अपनों से दूर हो गये ,
कुछ बताये गये, कुछ भुलाये गये,
जो रंजिशों की बात हुई तो सुनते गये,
रिश्ते बचाने की बात पर, कान बहरे हो गये,
देखो कितने फासले हो गये,
सिर रख कर रो सके, जी हल्का कर सके,
जाने वो काँधे कहाँ चले गये ?
क्या बाँटेगा गम कोई किसी का,
बातों के सिलसिले ही अब खतम हो गये।
बदमज़ा हो जायेगी ये ज़िन्दगी,
इन फासलों से ,
अपनों से जो दूर गये तो खुद से दूर हो जायेंगे,
क्या पता कल अपने अपनों के दरम्यान, रहें ना रहें ,
कुछ ऐसा करो अपने आ जाये अपनों के पास,
बनी रहे विरासत के रिश्तों की मिठास,
कल अपने अपनों से कह सके,
दूरियों के दिन अब दूर गये, रिश्तों से रिश्ते जुड़ गये।
।। पीके ।।