मैं बिखर कर हर बार टूट जाता हूँ,
जितना भी टूटूँ, फिर खुद ही उठ जाता हूँ.
ये कैसा जूनून है मुझमें, गिरकर सँभलने का,
खुद को मात देकर, खुद से ही जीत जाता हूँ.
जितना भी टूटूँ, फिर खुद ही उठ जाता हूँ.
ये कैसा जूनून है मुझमें, गिरकर सँभलने का,
खुद को मात देकर, खुद से ही जीत जाता हूँ.