।। राह चलते चलते ।।
भीड़ है इतनी पर, कोई, किसी से,
मिलता क्यूँ नही है।
साथ चलते, टकराते,
घूम कर,आड़े तिरछे निकल जाना,
एक दूजे को देख कर,
झुठमुठ में मुस्कुराना,
कोई खुल कर हँसता क्यों नहीं है।
कोलाहल है, पर बोल नहीं है,
मेला है पर मेल नहीं है,
साथ चलते चलते किसी से हाथ मिलाना,
कोई दिल से अतरंग मिलता क्यों नहीं है।
Whatsapp पर है होली दीवाली,
पर फूलझड़ी, पटाखा, गुलाल नही है,
बड़ों का आशीर्वाद नहीं है।
जन्मदिन, वर्षगाँठ और दुनिया का ज्ञान,
Facebook पर है चेहरा,
पर कोई भाव नहीं है।
कोई आकर इनको आईना,
दिखाता क्यों नहीं है,
खो गयी मिट्टी की खुशबू,
इस महँगे इत्र के बाजार में,
बिक रही चांदनी अब,
रोशनी के बाजार में,
रिश्ते हैं सारे मगर,
अब प्यार नही है ।
।।पीके ।।