मस्त विचार 3177

नसीब की बारिश कुछ इस तरह से होती रही मुझ पर,

_ ख्वाइशें सूखती रही और पलकें भीगती रही.

मन के अंदर भी ऋतुएं बदलनी चाहिए.

_ लंबे अकाल के बाद एक बरसात तो अंदर भी होनी चाहिए..
…और जब बरसात हो तो कोई झींसी-फूंसी नहीं, बस धारासार बरसे और बरसते ही रहे.
_ इतनी बारिश हो अंदर कि बहुत कुछ बह जाए… बहुत सी स्मृतियाँ, बहुत से लोग जो अंदर घर कर बैठे हैं, सब बह जाएँ.!!
– दर_बदर

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