नसीब की बारिश कुछ इस तरह से होती रही मुझ पर,
_ ख्वाइशें सूखती रही और पलकें भीगती रही.
मन के अंदर भी ऋतुएं बदलनी चाहिए.
_ लंबे अकाल के बाद एक बरसात तो अंदर भी होनी चाहिए..
…और जब बरसात हो तो कोई झींसी-फूंसी नहीं, बस धारासार बरसे और बरसते ही रहे.
_ इतनी बारिश हो अंदर कि बहुत कुछ बह जाए… बहुत सी स्मृतियाँ, बहुत से लोग जो अंदर घर कर बैठे हैं, सब बह जाएँ.!!
– दर_बदर