व्यस्त- व्यस्त है जिन्दगी,
अस्त- व्यस्त सी है जिन्दगी।
पता नहीं क्या खोया, क्या पाया,
बस खोई खोई सी है ये जिन्दगी।
दौड़ रहे हैं बस दौड़ रहे हैं, फिर भी,
पता नहीं क्यूं रुकी रुकी सी है जिन्दगी।
पता नहीं किसको कहां जाना है,
पाने की बस होड़ हो गई जिन्दगी।
अलग अलग दिशाओं से, दशाओं से गुजरती है,
एक ही मगर ठिकाने पर पहुंचती है ये जिन्दगी।
सब कुछ मिलकर भी कुछ नहीं मिलता,
हासिल है सब फिर क्यूं मन बैचेन रहता,
पता नही क्या टटोल रही है जिन्दगी ।
सफलता का पैमाना क्या, संतुष्टी का बहाना क्या
न जाने कितनी ख्वाइशें, कितने सपने,
इतना चल कर भी कहीं नहीं पहुंचते,
कैसी गौलाकार कैसी हाय तौबा है जिन्दगी,
इतनी रंजीशे, इतना द्वेष, इतना प्रतिरोध,
क्यों हकीकत का दिल को बोध नहीं
इतनी शिद्दतों के बाद भी बस,
एक लोटे में ही सिमट जानी है ये जिन्दगी ।।
।। पीके ।।