काश के दर्द का इक पैमाना होता,
रोज़ लिया करते हम थोड़ा थोड़ा..
किसी को आपका दर्द नज़र नहीं आता,
वे सभी आपकी गलतियाँ नोटिस करते हैं..
भी-कभी हम ये फील करते हैँ कि ‘काश’ वह मेरे पास होता.
_पर वो ‘काश’ जब सच में तब्दील होता है तो लगता है कि वो काश ‘काश’ ही रह जाता.