मौन को सुनने वाले कान नहीं मिलते … इसलिये शब्दों से परोसता हूँ.
भाग्यशाली हैं वे लोग जिनके शब्दों के वही अर्थ समझे जाएं ..जो उन्होंने कहा,
_ लेकिन बोले गए शब्द अपनी-अपनी समझ के अनुसार समझे जाते हैं..!!
शब्दों के बाण जरा सोच कर चलाएं..
_ ये कमान से निकल कर लक्ष्य नहीं… हमारे हृदय को भेदते हैं..!!
हम अपने ही नजरिए के शिकार हैं, चाहे हम कितना भी बेहतर बनने की कोशिश करें,
_ उसका कोई फायदा नहीं है..!!
किसी बात को समझ सकने की छमता हर इंसान की अलग होती है,
_ जिन्हें चीजें “वैसी” नहीं दिखती.. जैसी आपको दिखती है..
_ तो उन्हें “दिखाने” के अथक प्रयासों में उतरने से पहले समझिये कि..
_ आपको वह बात “वैसी” दिख सकती है, जैसी उन्हें दिख रही है ?
_ अगर आपका उत्तर ना में है तो ..उनके साथ जबरदस्ती मत कीजिये,
_ “उन विषयों” पर बात उनसे कीजिये,
_ जो आपका नजरिया और आपकी बातों को समझते हों..!!