मस्त विचार – रिश्तों कि मर्यादा में, घुट- घुट कर जीना सीखा है – 025

रिश्तों कि मर्यादा में, घुट- घुट कर जीना सीखा है

कुछ पल खुशियाँ पाने को, आँसू को पीना सीखा है.

ताने- उलहाने सुन कर मै, बना रहा हर बार अनजान.

लोग मुझे सताते रहे, मुझे न समझा कभी इन्सान.

सब्र के पनघट का पानी, घावों को नित सीना सीखा है.

रिश्तों कि मर्यादा में, घुट- घुट कर जीना सीखा है

ठोकर खाकर इतना जाना, स्वार्थ की पसरी है धुन्ध.

सब कुछ सहा खामोशी में, मैंने अपनी आँखे ली मूंद.

लोग दुःख पर दुःख देते रहे,मै ही जानता हूँ जो मुझपे बीता है.

रिश्तों कि मर्यादा में, घुट- घुट कर जीना सीखा है.

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