लोहे की दीवारे पंछी कैसे तुझे सुहाती होंगी ?
अंतर में संघर्ष छिपाए, तेरा जीवन जलता होगा…
हांसो में छिप क्रन्दन तेरा, भोले जग को छलता होगा,
पर अनजाने में तो तेरी अखियाँ भी भर आती होंगी…
लोहे की दीवारे पंछी कैसे तुझे सुहाती होंगी………
जग की खुशियों पर न्योछावर, होगी कब तक तेरी चाहें,
पलको की डोरों से कब तक, नापेगा जीवन की राहें ?
सोच रहा हूँ बुझती कितनी यूँ ही जीवन बाती होंगी………….
जागृति का सन्देश लिए जब, लेती होगी वायु हिलोरे…
उषा की आभा से रक्तिम होती होगी नभ की कोरें…
जग के आँगन में जब चिड़िया, गाती मधुर प्रभाती होगी…
लोहे की दीवारे पंछी कैसे तुझे सुहाती होंगी………..