मस्त विचार 185

निशचय ही मुझे जो कहना है, वह कहा नहीं जा सकता है. और जो कहा जा सकता है, वह मुझे कहना नहीं है. इसलिए ही तो इशारों से कहता हूँ, शब्दों के बीच छोड़े अन्तरालों से कहता हूँ. विरोधाभासों से कहता हूँ, या कभी न कहकर भी कहता हूँ. धीरे- धीरे इन संकेतों को समझने वाले लोग भी तैयार होते जा रहे हैं और न समझने वाले लोग दूर हटते जा रहे हैं – इससे मुझे बड़ी सुविधा होगी.

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