बिछुड़ने के बाद भी भुला पाओगे नहीं,
माना कि हम में कुछ कमी सही,
पर खुदा ने हम जैसा किसी को बनाया भी नहीं..
_ अपने खुश मिजाज रहने का यही तो राज है ;_
_ हमें अच्छा समझो या बुरा … कोई बात नहीं ..
_ ये आप की नज़र का फलसफा है .!!
_ मेरी तलाश का भी तो जरिया बदल गया,
_ ना शक्ल बदली ना बदला मेरा किरदार,
_ बस लोगों के देखने का नज़रिया बदल गया.
बार बार मर कर देखा तो जीना सिख गये.
ठोकर खाते रहे, चलते रहे फ़िर भी हम..
इसी तरह एक दिन हम संभलना सिख गये..
ज़िंदगी छोटी लगी और सपने बड़े बड़े..
तन से हारे नहीं, मन से लड़ना सिख गये..
दुख सुख गम ख़ुशी, सबसे एकाकार हुए..
गम को छुपाना और दर्द में मुस्कुराना सिख गये..
रोते रोते हम एक दिन हंसना सिख गये.
मैं अपने दिल को उस मकाम पर लाता चला गया,
जो ठोकरें खाई उसको मुकद्दर समझ लिया,
जो छोड़ गया, उसको भुलाता चला गया,
कुछ इसी तरह मैं अपनी बेरंग जिंदगी का साथ निभाता चला गया ..
जो झगड़ते थे __हर वक़्त, उनसे बात करना छोड़ दिया !
जिनको शिकायत करने की आदत थी _हरदम, उनसे मनुहार करना छोड़ दिया !
जो कसते थे__ ताने हरदम, उन्हें नज़रअंदाज़ करना _ शुरू कर दिया !
अजी !!! _ मैंने तो बस खुद को _खुद में ही, मस्त रहना सीख लिया !!
मैं बदल गया हूँ ऐसा लोग कहते हैं
मैं मानता हूँ कि अब जाके समझदार हुआ हूँ
अब छूटने वालों का इंतजार नही
अब किसी खास से कोई प्यार नहीं
अब न जाने वालों को रोकता हूँन आने वालों को टोकता हूँ
वक़्त से पहले घर आ जाता हूँ
कमरे को बस खुद के लिए सजाता हूँ
सारी रात किसी के लिए जागता नहीं
यूँ ही किसी के पीछे भागता नहीं”
हाँ अब मैं समझदार हो गया हूँ “
_ मेरे चेहरे पर अब बच्चों-सी खिलखिलाहट नहीं.
_ आँखों में जल-बुझ जल-बुझ होते सपनों की जगमगाहट नहीं.
_ होठों पर गीत-ग़ज़ल नहीं, बातों में मनचले शगल नहीं.
_ मेरी चंचलता कहीं गायब हो गई.
_ दिल की चोटों ने मुझे बड़ा बना दिया.
_ अब गंभीर चेहरा लिए घूमता हूँ.
_ लापरवाह सा दिखता हूँ.
_ फ़ैशन का कोई शऊर नहीं.
_ शब्दों में कोई सवाल नहीं, मन में कोई बवाल नहीं..
_बड़ा जो हो गया हूँ..
_अब मज़े-मज़े से वो बहकने के दिन गए..
_ बिना वजह हँसता नहीं हूँ अब..
_ मुस्कुराने से पहले भी वजह तलाशता हूँ.
_ पहले की तरह बिना वजह कुछ भी नहीं करता.
_ मौसम तक को महसूस करने से डरता हूँ.
_ अब तक मैं नासमझी में रह रहा था.
_ इसीलिए बिन्दास हँसता था..
_ पछियों सा चहचहाता था..
_ बादलों-सा इठलाता था..
_ ढेर सारी बारिश की तरह जहाँ-तहाँ बरस जाता था.
_ अब मेरी इन्द्रियाँ शून्य हो गई हैं.
_ अहसास मर गए हैं, हँसना भूल गया हूँ.
_ कम बोलता हूँ, अकेले में ख़ामोशी को सुनता हूँ.
_ आँसू सूख गए हैं, भाव मर गए हैं.
_ अब मैं समझदार हो गया हूँ.
अब मुझमे वही पुराना ढूढ़ोगे _ तो कभी ढूढ़ ना सकोगे
क्योंकि हर वो चीज _ जो पीछे मेरे वजूद के लिए _ खतरा थीं,
उनको छोड़ने के लिए _ अपने भीतर नए को थामना था
ये सफर बहुत कठिन था
लेकिन पहले जो चुकाया था, _ वो बहुत महंगा था,
लेकिन अब जो है वो अनमोल है
मै बदल चुका हूँ
ना पहले जैसा प्रेम दे सकूँगा _ ना प्रेम हारने पर रो सकूँगा
पहले जीवन का अर्थ नही पता था _ लेकिन अब जीना सीख लिया है
पहले उगल देता था हर दुखों को_ अब गमों को पीना सीख लिया है
अब ना ढूंढ पाओगे मुझमें वो शख्स _ जो पहले मोम था वो पहले पिघल चुका है
अब वो लोहा हूँ जो अब ऊंची ताप पर पिघलकर _ नये रूप में ढल गया हूँ
हाँ अब मै सचमुच बदल गया हूँ..
कभी गौर किया है ? इस ज़माने में रह कर .. मुस्कान हल्की हो गयी है !
दिल दर्द से भारी … मोहब्बत सस्ती हो गयी है !
तुम बेखबर हो इस बात से.. या तुम्हें भी सिर्फ अपनी खबर है ?
इस भीड़ से भरी दुनिया में … क्या तन्हाई ही तुम्हारा सफ़र है ?
इस कम्बख्त दुनिया में, लोग ढोंग रचा रहे हैं..
उनके आंसू उनके ही दिल की आग बुझा रहे हैं !
वक़्त की कदर कोई इनसे सीखे,, सुबह ऑफिस शाम को घर..
और रात थकी नींद में गुजार रहें हैं !
थोड़ा रुक भी जाओ, ” सोचो क्या यही ज़िन्दगी है ? “
क्यूँ जी रहे हो ऐसे, क्या कोई बेबसी है ?
जो बोझ खुद पर उठाया है तुमने .. उस बोझ में एक रोज़ खुद धंस जाओगे..
अर्जियां करोगे खुश रहने की .. लेकिन जिम्मेदारियों में फंसे रह जाओगे..
जितना दुख मिले उतना मुसकुराते रहो
उतना खुद से लड़ते रहो, _जब भी दुख हावी हो
माना बहुत कठिन है, _ लेकिन संभव तो है न ?
तो उस सीमा तक क्यों नही जाते
खुद की शक्ति को क्यों नही आजमाते
कुछ ना करने से, _ कुछ करना बेहतर है
तो कुछ क्यों नही करते
रोना धोना छोड़ो, _ खुद को नवीन खोज से जोड़ो
ऐसी खोज जहाँ हो तुम्हारी रूचि, _
जहाँ तुम व्यस्त रहो तो, _ दुनिया का भान ना हो
फिर थक कर आराम कर लो
लेकिन जब भी जगो, _ तो रूको नही
किसी की खोखली यादों के लिए
किसी की प्यारी बातों के लिए
किसी के पुराने वादों के लिए
बस चलते रहो, _ दौड़ते रहो, _ खुद में सुधार करते रहो
क्योंकि वक्त तुम्हे उतना ही समय देगा
जितना सबको मिला है
पर जरूरी नही कि, _ उतना वक्त औरो के पास भी हो
फिर वक्त का मोल समझो, _ खुद में यूं ना उलझो
तुम स्वतंत्र करो खुद को
जैसे बचपन में ठहाके लगाकर, _ मस्त खेल खेलते थे
वैसे अब जिन्दगी के, _ खेल को भी खेलो
कभी गम छू ना सकेगा
लेकिन कुछ ना करने से, _ कुछ तो करना पड़ेगा
केवल सोचना ही नही है, _ अब तो लड़ना ही पड़ेगा !
जिन्दगी से बस इतना सीखा है..
ये रिश्ते जितने भी दिऐ तूने, मुझे सबके सब हरजाई दिए॥
किसलिऐ तूने मुझे खुदा, बहन भाई दिए।
ये रिश्ते ये नाते तो बस, दुख दर्द देने का ही सबब थे,
ये सभी रिश्ते मेरे लिए न, कभी अब हैं न कभी तब थे,
पङी जरूरत जब भी मुझे, ये रिश्ते ही न दिखाई दिए॥
ये रिश्ते जितने भी दिऐ तूने, मुझे सबके सब हरजाई दिए॥
किसलिऐ तूने मुझे खुदा, बहन भाई दिए।
कङवे बोल इन रिश्ताें के, दिल को जख्मी करते रहे,
और इन कङवे बोलों से जख्म, दिल पर मेरे उभरते रहे,
कभी न बोल यहाँ प्यार वाले, यारों मुझको सुनाई दिऐ॥
ये रिश्ते जितने भी दिऐ तूने, मुझे सबके सब हरजाई दिए॥
किसलिऐ तूने मुझे खुदा, बहन भाई दिए।
आग लगा कर जलाई है, इन्होंने यहाँ किस्मत मेरी,
उठाई है रख कर काँधों पर, हर अपने ने मैईयत मेरी,
ये रिश्ते जितने भी दिऐ तूने, मुझे सबके सब हरजाई दिए॥
किसलिऐ तूने मुझे खुदा, बहन भाई दिए।
हरजाई : जो वफादार न हो, – मैईयत : जनाजा
यहाँ हरेक अपने को खुद पर, हँसता हुआ ही मैने पाया॥
मुझ पर दर्द की बिजलियाँ टूटी, मजा अपनों को आया।
अपनो ने तो सदा तमन्ना, मुझसे दौलत पाने की ही की,
कोशिश खुशियों में मेरी सदा, सबने आग लगाने की ही की,
मेरी खुशियाँ तो क्या अपनों ने मेरा, तन मन भी जलाया॥
यहाँ हरेक अपने को खुद पर, हँसता हुआ ही मैने पाया॥
मुझ पर दर्द की बिजलियाँ टूटी, मजा अपनों को आया।
जो सुखों में साथ मेरे कभी सब, मिल जुल कर हँसा करते थे,
और बोल बोल कर मीठा मीठा, नाग बन कर डसा करते थे,
मुसीबत आई मुझ पर तो किसी ने, इस पर अफ़सोस तक न जताया॥
यहाँ हरेक अपने को खुद पर, हँसता हुआ ही मैने पाया॥
मुझ पर दर्द की बिजलियाँ टूटी, मजा अपनों को आया।
साथ पाने को जिन्दगी भर सबका, मैं तरसता ही रहा था,
मगर सैलाब तन्हाईयों का जिन्दगी पर, मेरी बरसता ही रहा था,
यहाँ हरेक अपने को खुद पर, हँसता हुआ ही मैने पाया॥
मुझ पर दर्द की बिजलियाँ टूटी, मजा अपनों को आया।
MAHESH KUMAR CHALIA.
कितना कुछ बताने को है दिल में, सुनने वाला कोई नहीं है॥
लोग मिलते हैं मुझसे भी रोज, और रोज बिछङ जातें हैं,
तन्हा रह जाता हूँ मैं, पर साथ रहने वाला कोई नहीं है॥
कितना कुछ बताने को है दिल में, सुनने वाला कोई नहीं है॥
अपनों के ताने सहता हूँ हर पल, सह लूँगा गैरों के भी,
मगर दो बोल इस दुनियाँ में मेरे भी, सहने वाला कोई नहीं है॥
कितना कुछ बताने को है दिल में, सुनने वाला कोई नहीं है॥
मैं साथ छोङ दूँ किसी का अगर तो, तब बेवफा कहना मुझे,
अभी तो तन्हा हूँ और साथ मेरे, चलने वाला कोई नहीं है॥
कितना कुछ बताने को है दिल में, सुनने वाला कोई नहीं है॥
दरिया बन कर प्यार का मैं भी, बहता फिरूँ इस दुनियाँ में,
किस्मत की मार कैसी है साथ, बहने वाला कोई नहीं है॥
कितना कुछ बताने को है दिल में, सुनने वाला कोई नहीं है॥
दुनियाँ से मिलता हूँ मैं, पर अपना कहने वाला कोई नहीं है।
Lekhak MAHESH KUMAR CHALIA.
सबको ईज्जत देने की, मैं सजाऐं पाता हूँ॥
आप आप करके सबसे, मैं जो करता हूँ बातें,
दुख भरे कर दिए दिन, इसने कर दी गमगीन रातें,
अब देख कर इन रातों को मैं भी, डर सा जाता हूँ॥
सबको ईज्जत देने की, मैं सजाऐं पाता हूँ॥
ये जो बार बार अपना, मैं मजाक उङवाता हूँ।
बिठा कर सिर पर लोगों को, जो देता हूँ मान सम्मान,
बस तभी जाता है लोगों का मेरी, कमजोरियों पर ध्यान,
बता कर कमजोरियाँ लोगों को, सबसे ठोकरें खाता हूँ॥
सबको ईज्जत देने की, मैं सजाऐं पाता हूँ॥
ये जो बार बार अपना, मैं मजाक उङवाता हूँ।
Lekhak MAHESH KUMAR CHALIA.
हौसला हार कर बैठा, तो मर जाऊंगा
चल रहे थे जो मेरे साथ, कहां है वो लोग
जो ये कहते थे, कि रस्ते में बिखर जाऊंगा.!!
ये जो मेरे अपने, अरे ये जो मेरे अपने, कहलातें हैं॥
एक बार दर्द देकर, दिल जिनका यहाँ भरा नहीं,
बार बार उठ कर मुझे वो, अब दर्द देने आतें हैं॥
जिन्हें फूलों से नवाजा है, हाथों में उनके पत्थर है,
ये पत्थर वो सारे न जाने क्यूँ, मुझ पर बरसातें हैं॥
लूटा जिन्होने मुझको यहाँ, मिठी मिठी बातें कर कर,
अब वो कङवे से जहर भरे, मुझे अल्फाज सुनातें है॥
मैने जिनका घर बसाने में, अपनी सारी दौलत लगा दी,
मेरी झौंपङी को करके नापसन्द, उसमें आग लगातें हैं॥
ये जो मेरे अपने, अरे ये जो मेरे अपने, कहलातें हैं॥
दर्द देते हैं जख्म देते हैं, फिर उस पर नमक लगातें हैं।
Lekhak MAHESH KUMAR CHALIA.
मैं तो वक्त हूँ गुजरा हुआ, मुझे भूल जाओ तुम॥
अब ये मुनासिब नहीं, मेरी यादों को दिल में सजाओ तुम।
मुझे राहों में देखने के लिए, अब ठहरना कैसा,
चुप चाप मुझे न देखते हुए, अपने काम निकल जाओ तुम॥
मैं तो वक्त हूँ गुजरा हुआ, मुझे भूल जाओ तुम॥
अब ये मुनासिब नहीं, मेरी यादों को दिल में सजाओ तुम।
आज भी जहन में आपके, मेरी ये सोच कैसी,
कोई नया दोस्त ढूँढ कर, अब तो उसके साथ निभाओ तुम॥
मैं तो वक्त हूँ गुजरा हुआ, मुझे भूल जाओ तुम॥
अब ये मुनासिब नहीं, मेरी यादों को दिल में सजाओ तुम।
मैने दरवाजे बन्द कर लिए हैं, अब तो अपने घर के,
कहीं ऐसा न हो पहले कि तरह, मेरे घर आ जाओ तुम॥
मैं तो वक्त हूँ गुजरा हुआ, मुझे भूल जाओ तुम॥
अब ये मुनासिब नहीं, मेरी यादों को दिल में सजाओ तुम।
जो मेरे पैसे लूटे हैं तुमने, धोखा मुझको देकर यहाँ,
अब कुछ दिन तो उन पैसों से, चुपचाप बैठ कर खाओ तुम॥
मैं तो वक्त हूँ गुजरा हुआ, मुझे भूल जाओ तुम॥
अब ये मुनासिब नहीं, मेरी यादों को दिल में सजाओ तुम।
ये जख्म तुम्हारे ही दिए हुए हैं, मेरे दिल जहन शरीर पर,
अब लोक दिखावा करने के लिए, इन पर मरहम न लगाओ तुम॥
मैं तो वक्त हूँ गुजरा हुआ, मुझे भूल जाओ तुम॥
अब ये मुनासिब नहीं, मेरी यादों को दिल में सजाओ तुम।
Lekhak MAHESH KUMAR CHALIA.
_अपमान करने वालों को, सम्मान नहीं मिलता.
_ दूसरों को गिराने वाले कभी, ऊपर नहीं उठते.
_क्यों कि, दुनिया एक ऐसी घाटी है.
_यहां जैसी आवाज आप, अपने मुंह से निकालोगे.
_वही लौटकर आपके कानों में आएगी..!!
_ हर फिक्र को धुँवे में उड़ाता चला गया.
_जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया,
_जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया.
_बर्बादियों का शोक मनाना फ़िजुल था.
_बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया.
_हर फिक्र को धुँवे में उड़ाता चला गया.
_मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया.
_गम और ख़ुशी में फ़र्क न महसूस हो जहाँ,
_मैं दिल को उस मुकाम पे लाता चला गया.
_मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया.
_हर फिक्र को धुँवे में उड़ाता चला गया..!!
बहुत दूर तक मशाल लेकर खुद ना दौड़ सकोगे तुम,
मंजिल तक पहुंचना है तो तलाश करना अपने जैसे लोग।
जो तुम्हारे सुस्ताने पर मशाल थाम सकें जिनके सुस्ताने पर तुम मशाल थाम सको,
मंजिल तक पहुंचने के लिए दौड़ने से ज्यादा जरूरी है सुस्ताना।
– विपुल
_ उस किसी भी चीज़ पर जो मुझे उद्वेलित [agitated] करती है,
_ जान गया हूँ कि कुछ बदलने वाला नहीं.
_अब नहीं जाता लोगों के झगड़ों के बीच.
_शांत रहता हूँ, खुद को चोट नहीं पहुँचाता.
_मैं अब जीना सीख गया हूँ.
_मैं अब मेहनत नहीं करता, लोगों को खुश करने में..
_ रोक लेता हूँ अपनी भावनाओ को,
_मैं अब ‘मैं’ में जीता हूँ.
_ जीवन को सरल करने के लिए मेरा, ‘मैं’ होना जरुरी लगने लगा है मुझे..
_ पर जीने की इस कोशिश में, क्या मैं सच में ज़िंदा हूँ ?
*कोई प्यार जताए तो जेब संभाल लेता हूँ !!*
*वक़्त था साँप की परछाई डरा देती थी !*
*अब एक आध मैं आस्तीन में पाल लेता हूँ !!*
*मुझे फाँसने की कहीं साजिश तो नहीं !*
*हर मुस्कान ठीक से जाँच पड़ताल लेता हूँ !!*
*बहुत जला चुका उँगलियाँ मैं पराई आग में !*
*अब कोई झगड़े में बुलाए तो मैं टाल देता हूँ !!*
*_सहेज के रखा था दिल जब शीशे का था !*
*_पत्थर का हो चुका अब मजे से उछाल लेता हूँ !!*
मुसाफिर
_ तन को बाहर से बिना छुए, मन के भीतर उतर गया है तू,
_ आ के सारा अमृत पिलाया, पी के सारा जहर गया तू,
_धुल धुला कर निखर गया हूँ मैं, सज सजा कर संवर गया हूँ मैं..!!
सब कुछ देखा, दुनिया देखी,
अपने देखे,
अपनों में अपनों के लिए,
अपनापन देखा,
अपनेपन में, अपनों द्वारा,
परायापन देखा,
अपनेपन में छुपी, पराई सीमा देखी,
ये नज़र, बड़ी कीमत चुका कर मिली,
अपनों को, अपनी आँखों ने,
ओझल कर दिया.
— जब बुरा वक्त आया तो उनकी असलियत खुली..
_ बड़े घटिया निकले वो जो दूर से अपने लगते थे..!!
_ ‘अपनों’ में जब ‘अपनापन’ ही ना हो तो किस काम के ‘अपने’ हैं.!!