मस्त विचार 4074
तू खुद को मुसाफिर…मुझे दीवार समझ ले!
तू खुद को मुसाफिर…मुझे दीवार समझ ले!
रात होते ही मेरी आंखों में उतर जाता है…
मैं उसके ख्याल से निकलू तो कैसे निकलू …
वो मेरी सोच के हर रास्ते पे नजर आता है.
_ जो रूठा भी ना हो और बात भी ना करे..!!
_दुख है कि मैंने सारा समय हर एक का होने की कोशिश की.
*क्योंकि**हमने उनसे**”आशाएँ” रखीं *
*जिनसे हमें नहीं**रखनी चाहिए थी.*
_ क्योंकि आपका दुख किसी के लिए मनोरंजन मात्र है.
_ दर्द तो उस पत्थर का है जो टूटने के काबिल भी नहीं..
_ अगर दम है तो पत्थर से सवाल कर..!!
_ तब जा कर कुछ कारीगर करता है.!!
_ कभी कभी टूटने से ज़िन्दगी की शुरुआत होती है.!!
_ कैसा होता है किसी का पत्थर होना …
_ उसे पत्थर असीमित ताप और दाब ने बनाया है !!
_” यही नियम इंसानों पर भी लागू होता है !!”