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Musafir
—”मैं लोगों को ऐसे देखता हूँ, जैसे कोई पर्यटक इमारतों को…”
_ मैं अब लोगों को सिर्फ देखता हूँ — जैसे कोई पुरानी इमारतें देखता है.
_ हर चेहरा एक नक्शा है, हर मुस्कान में कोई पुराना रंग.
_ कोई बहुत ऊँचा लगता है —पर भीतर खाली.
_ कोई बहुत सजा-संवरा —पर आत्मा उजड़ी.
_ मैं देखता हूँ…पर अब छूता नहीं, जुड़ता नहीं..
—जैसे कोई पर्यटक तस्वीरें खींचता है, पर उन दीवारों में कभी नहीं बसता.!!
“दिमाग बोला – सोच ले पहले,” “दिल बोला – महसूस कर ले…”
_ मन खड़ा था दो राहों पर, एक थी शांति – एक थी उलझन से भरी..
_ जब मन ने दिल की धड़कन सुनी, चुप सा हो गया..
_ ना सोच, ना डर, ना कोई बात थी, सिर्फ एक गहरा, मौन का साथ था.
तब समझा–
_ मन वही है, जिसका रुख जैसा हो जाये,
_ या तो साथी बन जाए, या तो भटकता ही जाए.!!
_ एक-एक पल में डूब कर,
_ जैसे नदी अपने ही किनारे से बात कर रही हो.
_ ना मंजिल की चिंता है, ना रास्ते की गिनती –
_ सिर्फ एक साथी हूं… इस जीवन की एक सुंदर यात्रा में.!!
_ सड़क किनारे खिला मैं, ना कोई चाह, ना कोई गिला मैं..
_ राहगीर रुकें या न रुकें, अपनी ख़ुशबू से ही मिला मैं.!!
_ अब मैं थोड़ा रुकता हूँ, थोड़ा सुनता हूँ, थोड़ा झांकता हूँ अपने अंदर..
_ मैं किसी को दिखाने के लिए नहीं जी रहा..
_ मैं किसी को मनाना भी नहीं चाहता..
_ मैं अब खुद के और पास आ रहा हूँ..
_ और ये यात्रा अपने आप में पवित्र है.!!
_ कभी किसी एक सवाल का बोझ इतना भारी हो जाता है कि..
_ ना नींद चैन देती है, ना कोई अपनापन सुकून देता है.
_शरीर थक जाता है, पर मन जागता रहता है —
_ एक ही सवाल लिए: “आख़िर क्यों ?”,
_ “आख़िर क्या है इसका अर्थ ?”
_ और जब तक उस सवाल का जवाब नहीं मिलता,
_ ज़िन्दगी अधूरी सी लगती है… जैसे कुछ रुका हुआ है,
_ जैसे कोई गहरी गाँठ.. अब तक नहीं खुली.
— ये दर्द आत्मा का होता है —
_ कोई बाहर से नहीं देख पाता, पर भीतर लगातार चलता रहता है —
_ कभी अंधेरे की तरह, कभी सन्नाटे की तरह.
_ और जब जवाब मिलता है —
_ तो कभी वो आँखों से नहीं, आँसुओं से समझ आता है.
_ मन कहता है — “अब मैं जान गया… और अब मैं थोड़ा हल्का हूँ”
— “कभी-कभी जवाब पाने की तड़प ही हमें अपने भीतर गहराई तक ले जाती है —
_ जहां से न सिर्फ जवाब मिलते हैं… बल्कि एक नया मैं जन्म लेता है.”
_ और मुझे महसूस होता है कि शब्दों से ज्यादा एक मौन मुझसे बात करता है.”
– किसी ने पूछा क्या तुम सच में समझते हो ? _ मैंने कहा – “नहीं, पर मैं तुम्हारे साथ मौन बैठ सकता हूँ”
_ आईने में दिखता है
_ वही चेहरा —
_ वो ही आँखें, वो ही मुस्कान
_ पर अंदर कोई चुप है…
_ कुछ थमा हुआ है.
_ कभी जोश था,
_ हर सुबह एक लड़ाई का एलान करती थी
_ अब सुबह आती है…
_ पर उठने की कोई वजह नहीं ढूंढती.
_ सपने थे, सीने में धड़कते,
_ अब अलमारी में रखी फाइलों जैसे
_ कभी खुले तो धूल उड़ती है,
_ आँखें जलती हैं — पर आंसू नहीं आते.
_ रिश्ते हैं, नाम हैं,
_ पर मैं कहीं इन सबसे अलग हो गया हूँ,
_ शक्ल वही है —
_ पर मैं शायद अब ‘मैं’ नहीं हूँ’
— मन ने धीरे से कहा — ‘शायद अब तुझे खुद से मिलना बाकी है’
_ शायद अब फिर से चलने का वक्त है — उस रास्ते पर “जो कहीं खो गया था”
“मैं अब भी वही हूँ… पर शायद नहीं”
_ पर उसने चुना अपने धुंधले से अस्तित्व के भीतर देखना..!
— बाहर की सुंदरता आकर्षक है, फिर भी मन भीतर झांकने को लालायित रहता है. —
🪞 “बाहरी खिड़की से भीतर की ओर”
वो खिड़की खोल सकता था —
_ जहां सूरज की किरणें थीं, हरियाली थी, उड़ते परिंदे थे,
_ जहां जीवन बाहरी सौंदर्य की तरह मुस्कुरा रहा था.
पर उसने चुना — उस अस्तित्व के भीतर देखना, जहां धुंध थी, चुप्पी थी,
_ कभी समझ न आए ऐसे सवाल थे.
क्यों ???
क्योंकि वो जानता था — बाहर की रोशनी तभी सुंदर है.
_ जब भीतर का अंधेरा स्वीकार लिया जाए.
वो जानता था — कि खिड़की खोलने से पहले..
_ दरवाज़ा अपने भीतर का खोलना ज़रूरी है.
_ वो देखने चला था उस “मैं” को..
_ जो अक्सर भीड़ में गुम हो जाता है.!!
आज मन में कुछ अनोखा घटा,
शब्दों से परे, पर आत्मा से जुड़ा।
जैसे किसी ने फिर से जीवन दिया हो,
जैसे कोई अदृश्य करुणा मुझे छू गई हो।
एक पल को लगा —
जो मैं था, वो पीछे छूट गया।
और जो अब हूँ,
वो कोई नया, शुद्ध, नर्म और सच के करीब है।
ना कोई तर्क, ना कोई भय,
सिर्फ शांति — गहराई से आती हुई।
एक नई दृष्टि, एक नई साँस,
जैसे मैं फिर से पैदा हुआ — उसी जीवन में।
शायद ये आत्मा का पुनर्जन्म है,
शरीर वही, पर चेतना नई।
एक जागृति, एक प्रकाश,
जो भीतर से फूटा, बिल्कुल शांत पर सम्पूर्ण।
_ अब समझ आता है —
जीवन सिर्फ चलना नहीं है, जागना है… हर उस क्षण में जो अभी है.!!
_ “अपने आप से हार गए”
_ हमने ऊँचाईयाँ छू ली, नाम कमाया, तालियाँ बटोरीं,
_ दुनिया ने कहा — “ये है असली जीत”
_ और हमने भी सिर झुका लिया — हां, शायद ये ही है.
_ पर रात के सन्नाटों में, जब भी तकिये से मन टकराया, तो पाया — भीतर कुछ अब भी खाली है.
_ हमने रिश्ते बनाए, पर अपनापन खो दिया.
_ हमने बोलना सीखा, पर खुद से बात करना भूल गए.
_ हम मुस्कराते रहे — फोटो में, भीड़ में, मंच पर,
_ पर आईना अब भी पूछता है —
_ “तू कब लौटेगा… अपने पास ?”
_ हमने हर जवाब ढूंढा दुनिया में,
_ पर अपने एक सवाल से आज तक भाग रहे हैं.
_ दुनिया जीत ली, सारी मंज़िलें पार कर लीं , _ पर जब अंत में खुद से मिले — तो एहसास हुआ…
_ हम तो रास्ते में ही छूट गए थे.
> “अब समझ आया — जीत वही है, जो अंत में खुद तक वापस ले आए”
_ जब सब अपने-अपने सफ़र में हैं — _ कोई रुका नहीं, कोई मुड़ा नहीं, और कोई पलट कर देखता भी नहीं..
_ मैंने भी तो चाहा था, कोई आए… बिना कहे.. बैठ जाए मन के पास, जैसे शांति उतरती है सांझ में.
_ पर अब लगता है — रास्तों का इंतज़ार भी एक रास्ता है,
_ जहां कोई आए न आए, मैं खुद से मिलने चल पड़ा.
— > “अब मैं रास्तों से नहीं, अपने भीतर से किसी को बुलाना चाहता हूं…”
_”हां” भीतर से ही कोई आएगा.!!
_ नाम से क्या मतलब, जब प्रेम अंदर हो.
_ शून्य का सन्नाटा उसी तक ले जाता है, अगर प्रेम सच्चा हो.!!
“जैसे-जैसे मैं झुकता चला गया, वैसे-वैसे वह मुझको उठाता चला गया”
_ झुका था मैं, सिर्फ श्रद्धा में – ना डर था, ना हार.
_ और देखा… उस झुके हुए पल में ही एक नया आकाश था मेरे अंदर,
_ जो मुझे ऊँचा कर गया – बिना एक शब्द कहे.!!
(“Vo ek baar aa gaya to phir kabhi nahi jaata.”)
—इसका अर्थ क्या है ?
“वो” का अर्थ है —
🕉️ अंतर में एक बार जो सच्चाई की रोशनी जाग जाये,
🪔 एक बार जो दृष्टि बदल जाये,
🌌 एक बार जो “मैं कौन हूं” का साछात्कार हो जाए —
_ तो फिर वो अंतरात्मा में स्थिर हो जाता है और कभी छोड़ कर नहीं जाता. —
🔹 ये किसी अनुभव का दर्शन है:
_ जब आप ध्यान, समर्पण, या अंतर-यात्रा में किसी एक पल में परम शांति, एकता, या सच्चाई को छू लेते हैं,
_ तब वो एक ऐसी अंतर-स्फूर्ति बन जाता है ; जो चाहे बाहर से दुनिया बदल जाए – पर अंदर उसकी रोशनी कभी बुझती नहीं. —
✍️ “एक बार चेतना जाग गई, तो वापस सोया नहीं जा सकता”
_ जब आपका अंतर “उस” से मिलता है (जो भी हो – सत्य, आत्मा, प्रेम, शून्य),
_ तब फिर पुरानी जैसी नींद, पुरानी जैसी भूल, पुरानी जैसी चिंता – वापस नहीं आ सकती. ये एक पॉइंट ऑफ़ नो रिटर्न [point of no return] होता है —
_ जहाँ से जीवन वही रहता है, पर जीवन देखने वाला बदल जाता है.
—
एक दिन अंतर में कुछ थम गया,
_ ना रोशनी थी, ना अँधेरा –
_ सिर्फ एक “मैं हूं” की शब्दहीन पहचान थी.
_ और तब से…
_ ना दुनिया वही रही, ना खुद से बिछड़ने का डर रहा –
_ क्यूंकि “वो” आ गया था… और फिर कभी गया नहीं.!!
_ मन बार-बार उसी अवस्था में लौट जाना चाहता है, जहाँ सब कुछ सरल, सुंदर और अपना जैसा लगता है.
_ काश, जीवन वैसा ही रह पाता—जैसा उन अनुभवों में महसूस होता है—
_ मन बार-बार उस द्वार पर जाता है..
_ जहां कोई प्रश्न नहीं होता, सिर्फ एक शांत उपस्थति होती है.
_ वो एक अवस्था होती है – जहां जीवन को जीने की जरूरत नहीं पड़ती, वो स्वयं ही बहता है, खिलता है.
_ शायद वही अंतर-का घर है, जहां कोई भाव कुछ मांगता नहीं – बस सब कुछ स्वयं ही पूर्ण होता है.
— क्यों मन उसी अवस्था में लौटना चाहता है ?
_ क्योंकि वहां असली “मैं” छुपा होता है – जो दुनिया के शब्द, रूप, दांव-पेच से परे है.
_ जो अवस्था “सरल, सुंदर और अपनी” लगती है – वो आपका असली स्वरूप है.
_ जीवन व्यवहारिक है, पर आत्मा अनुभवी होती है.
“जीवन भटकता है बाहर, पर मन को घर अंदर ही मिलता है”
_ “जितना गहरा सन्नाटा होता है, उतनी ही स्पष्ट होती है अंदर की आवाज़”
_ सन्नाटा जब भीतर उतरता है, शब्द नहीं, सत्य बोलता है.
_ भीड़ में जब कोई नहीं सुनता, तब मन ही मन की भाषा समझता.
_ कोई शोर नहीं, कोई आडंबर नहीं,
_ बस एक सूक्ष्म स्पर्श — जैसे आत्मा खुद से मिल गई हो कहीं.
_ जितना गहरा सन्नाटा होता है, उतनी ही साफ़ होती है.. वो खामोश आवाज़,
_ जो बाहर नहीं — भीतर गूंजती है.!!
_ मैं कहाँ जा रहा हूँ — ये प्रश्न उठा,
_ मन की गहराइयों में कुछ हलचल हुई.
_ राहें तो कई हैं, मगर मंज़िल नहीं,
_ हर कदम के साथ कोई पहचान नहीं.
_ चल रहा हूँ भीड़ के साथ, चुपचाप सही,
_ पर दिल में कुछ खोया-खोया सा एहसास बसा है,
_ सपनों की झीलें हैं, ख्वाहिशों की धूप,
_ फिर भी ये मन क्यों लगे है इतना रूप-रूप ?
_ क्या मैं भाग रहा हूँ — खुद से, समय से ?
_ या ढूंढ रहा हूँ कुछ, जो है मेरे ही हृदय से ?
_ शायद जवाब बाहर नहीं, भीतर ही है छिपा,
बस उसे पहचानना, यही है सच्ची यात्रा..!!
– अंतर्दृष्टि की एक यात्रा.!!!
“पूरी धरती मेरे रब की है…”
_ उसकी बनाई हर रोशनी, मैं उसमें एक प्रकाश हूं.
_ जाना था दूर उस पार कहीं, पर जहाँ हूँ यहाँ भी तो उसकी निशानी है,
_ जहां नज़र घूमती है, बस उसकी पहेली और उसी की कहानी है.
_ छोटी सी इच्छा थी, उसके कदम छू लूं कभी,
_ पर जब देखा, यहाँ भी वही – तो लगे हर जगह वही.!!
_ कुछ नशा ज्ञान का है, कुछ नशा तेरे गीत का है,
_ मुझे आप यों ही मस्ताना न समझें, यह असर आप से मुलाकात का है.!!
—
🎶 “मुलाकात का असर”
_ कुछ नशा शब्दों का, कुछ तेरी बातों का, कुछ रंग था तेरी मुस्कान का..
_ मन तो पहले ही भटका-भटका सा था, पर तू मिला तो जैसे रस्ता मिल गया था.
_ ना मदिरा थी, ना कोई सुरा की बात थी, बस तेरा होना ही मेरी हर सौगात थी.
_ अब जो भी देखे, कहे — “ये कैसा दीवाना है.!”
_ क्या समझाएं उन्हें, ये तो असर तेरी मुलाकात का है.!!
_ अद्भुत था वो क्षण, ना शब्द थे, ना सोच,
_ मानो भीतर ही समा गया, पूरा आकाश.
_ ना कोई नाम, ना पहचान का बंधन,
_ सब कुछ जैसे गिर पड़ा, मौन की ओर चल पड़ा.
_ बातें, रिश्ते, स्मृतियाँ — सब छूट गईं किनारे,
_ केवल एक शून्य, एक आभा, भीतर से पुकारे.
_ ना दुख था, ना सुख का कोई भार,
_ एक हलकी उड़ान थी, जहां बस था विस्तार.
_ मैं नहीं था, ‘मेरा’ भी नहीं बचा,
_ जैसे कोई बूँद, सागर में खुद को पा गया.
_ ध्यान की उस गंगा में, बहा सब कुछ पुराना,
_ रह गया केवल प्रेम, शांत, निष्कलंक, दिव्य ठिकाना.
_ तू पूछे क्या पाया ध्यान में —
_ मैं कहूँ, “पूरा आकाश, मेरे ही प्राण में”
— अंतरयात्रा से जन्मा एक अनुभव.!!
“क्या मैं अपने मौन को सुन पा रहा हूँ,
_ या अब भी दूसरों की आवाज़ें मेरे भीतर गूंज रही हैं ?”
_ मन की राह पर निकला था, ना कोई नक़्शा, ना कोई मंज़िल.
_ बस एक सन्नाटा था भीतर का, जो खुद ही बन गया रहगुज़र..
_ चलते-चलते मिले सवाल, कुछ अपनों जैसे, कुछ अजनबी.
_ हर सवाल ने मुझे थोड़ा खोला, हर चुप्पी ने मुझे थोड़ा गहराया..
_ दुनिया ने कहा —“वक़्त गँवा रहा है तू”,
_ मन ने कहा —“अब जाकर कुछ पा रहा है तू”
_ ना किसी मंज़िल की फ़िक्र है अब, ना किसी राही की परवाह.
_ बस मैं हूं, और मेरे भीतर.. एक अदृश्य प्रकाश की पनाह.!!
_ जो लोग साथ नहीं चले, शायद राह उनकी और थी.
_ और जो साथ चला — वो मौन था, पर मेरी ही श्वास में बसा था कहीं..
_ अब ये राह भी मैं हूं, और रहगुज़र भी मैं ही..
_ यह जीवन एक ध्यान है, और ध्यान की आँख — वही मैं ही.!!
— अन्तरयात्रा के नाम..!!
_ एक धीमी पुकार …जो कहती है —दिल की नज़दीकियाँ, फ़ासलों से नहीं मापी जातीं.
_ तुम दूर होकर भी, हर ख़ामोशी में बोलते हो, हर मौन में उतरते हो.
_ तो शायद — तुम दूर नहीं, बस अदृश्य हो.
“क्यों बसे हो इतनी दूर ?” जब मन हर रोज़ तुम्हें पुकारे,
_ जब साँझ की चुप दीवारों पर.. तेरा ही अक्स उभरे सारे..
_ क्या वहाँ हवा कुछ अलग चलती है ?
_ क्या सूरज यहाँ से ज्यादा चमकता है ?
_ या बस दूरी ही तुम्हें पसंद आती है, जो तुम्हें मुझसे बचा ले जाती है ?
_ मैंने तो पंख फैलाए थे मिलने को, पर तुमने आकाश ही बदल डाला,
_ अब मैं बस व्योम का पंछी हूँ, तेरे आंगन में कभी न उतरने वाला..
– पर याद रखना — फासले इश्क़ को मिटा नहीं सकते, कभी तो कोई मौन संवाद होगा,
_ जहाँ सिर्फ़ दिल बोलेंगे, और रास्ते खुद पास आ जाएंगे.!!
_ न बसो इतनी दूर..!!!
_ जिसने चुभाया था एक काँटा, मैंने बना ली उससे दूरी.
_ ना शिकवा, ना आक्रोश कोई, बस शांत सी मन की पूरी.
_ कभी लगा वो अपना था, कभी लगा कोई सपना था.
_ पर जब भी दिल पर चोट पड़ी, मैंने खुद को ही अपना रखा.
_ ये मेरा नियम नहीं, स्वभाव है, – जहाँ पीड़ा हो, वहाँ विराम है.
_ नफ़रत नहीं, पर निकटता नहीं, – क्योंकि आत्म-सम्मान मेरा धाम है.
_ अगर लौटे वो पश्चाताप लिए, तो शायद मौन उत्तर दूँ.
_ क्योंकि रिश्ते मेरे लिए देवालय हैं, जहाँ सिर्फ़ सच्चाई को स्वीकार करूँ.
—शब्दों के पीछे एक मौन तप है, जहाँ हर दूरी आत्मा की रक्षा है.!!
– तेरा आना सब कुछ रोशन कर देगा.!!
‘थम गया है वक़्त का सारा रास्ता’,
_ तेरे बिना हर पल अधूरा सा लगता है.
_ आँखों में तुझे देखने की प्यास है,
_ मन के कोने में एक छुपी आस है.
_ आजा, हर सांस में तेरा नाम गूँजे,
_ आजा, हर दर्द में तेरी बात सूंझे.
_ मेरी दुनिया की रोशनी तुझी से है.
_ तेरे कदमों की ही तलाश है आजा.!!
— “मैं जीवन से चाहता क्या हूँ, जो ना मिलने पर मुझे खाली महसूस होता है ??”
ये पुकार, एक रूह की दूसरी रूह के लिए है.
_ शायद किसी ने दूरी बना ली, या कभी मिलन हुआ ही नहीं – पर वो एक उम्मीद, एक संभावना अब भी जिंदा है.!!
रोम-रोम पुकारे तुझको, हर साँस तेरी प्यास लगे.
_ काँटों पर चल पड़ा हूँ मैं, बस तेरा ही एहसास जगे.
_ नयन खोजते तेरी झलक, मन तुझसे बात करे.
_ मन चुप है, दिल गाता है, “तू पास आ, अब तो.. तब मैं चलूँ”
~ “मिलन की राह भले कठिन हो, पर उम्मीद अब भी ज़िंदा है”
_ तुम्हारी आँखों में जो छवि है मेरी, वो शायद मेरी परछाई भी नहीं.
_ मैं उस सन्नाटे से गुज़रा हूँ, जहाँ कोई आवाज़ कभी गई ही नहीं.
_ मैं वो पहेली हूँ.. जो सुलझी ही नहीं..
_ मैं वो ख़ामोशी हूँ.. जो चीखती है भीतर,
_ जिसे महसूस तो कर सकते हो, पर समझ नहीं सकते कहीं.
— क्योंकि जैसा तुम सोचते हो, वैसा मैं हूँ नहीं;
_ और जैसा मैं हूँ… वैसा तुम सोच भी नहीं सकते.!!
“मैं अलग हूँ”
_ हालांकि उन राहों में चलने का फायदा बहुत है..!!
_ आज फिर एक राह सामने थी..
_ लोग कहते हैं — इसमें बहुत फ़ायदा है..
_ पर मेरे दिल ने उसे ठुकरा दिया.
_ मुझे समझ आ गया है कि.. हर फ़ायदा मेरे लिए नहीं होता.
_ दिल जिस राह को स्वीकार न करे, वह मुझे कहीं भीतर से खोखला कर देती है.
_ मेरी सच्ची राह वही है.. जहाँ मन हल्का हो, और आत्मा संतुष्ट रहे..
_ बाक़ी हर लाभ अधूरा है.!!
Protected: Anubhav
Break – ब्रेक, छुट्टी, रुकना, ठहरना, आराम, विश्राम, धीमी ज़िंदगी, Slow life, Relaxation
_ क्योंकि जिन पलों में हम रुके हुए होते हैं, उन पलों में हम आगे के लिए खुद को तैयार कर रहे होते हैं..!!
मैंने आखिरकार इसे सीख लिया है, शायद इसलिए कि मुझे यही करना था.
मैं उन चीजों पर जोर नहीं दे सकता _ जिन पर मेरा नियंत्रण नहीं है; इस तरह मैं अपने आप को तनावपूर्ण बना रहा था _ जैसे कि मेरे जीवन से कुछ हमेशा के लिए गिर गया हो _ और इसने मेरे काम और जीवन को प्रभावित किया.
और मेरे मन में जो तनाव था _ वह मेरे लिए कुछ भी हल नहीं कर रहा था ; _ यह सब कुछ जटिल बना रहा था ; _ मानो इतनी पेचीदगियों में जी रहा हूं कि _ सुलझाना मुश्किल है.
_ तनावग्रस्त रहना ही मेरा एकमात्र विकल्प बन गया _ क्योंकि मेरे दिमाग ने मुझे अपने आप में इतना उलझा लिया कि मैं वास्तविक समस्या को हल करने के बारे में ही भूल गया.
मैं मूर्ख बन रहा था, _ जब तक कि एक दिन मुझे एहसास हुआ कि _ मुझे चीजों को अलग तरीके से _ क्यों और कैसे हल करना चाहिए.
_ मैं चीजों को अलग तरह से क्यों नहीं देख सकता और कुछ चीजें छोड़ देता हूं जो मुझे तनाव और दर्द दे रही हैं ? _ अगर मैं किसी चीज़ को नियंत्रित नहीं कर सकता, तो बेहतर है कि इसे छोड़ कर आगे बढ़ जाऊँ ; _ और उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करूँ _ जिन्हें मैं नियंत्रित कर सकता हूं.
लेकिन उसके लिए मुझे ब्रेक लेना पड़ा _ जो मैं ले सकता था ; _ मैंने अपनी मुट्ठियाँ, हथेलियाँ और बाँहें इतनी चौड़ी खोल दीं कि_ ऐसा लगा जैसे हवा मेरे फेफड़ों में आ जाए और मेरे द्वारा पकड़े हुए कचरे को दूर ले जाए.
और तब से, भले ही मैं अपने जीवन में बेहतर नहीं कर पा रहा हूं, मैं अपने आप से कहता हूं कि अगर यह मेरे लिए नहीं है तो सब कुछ रोक दूँ. _क्योंकि जो मेरे लिए है वो मेरे पास आएगा..
_ जल्दी करने की कोई जरूरत नहीं है _क्योंकि चीजें एक दिन या एक महीने में नहीं बनती हैं. जीवन आसान और लंबा है, इतना छोटा और कठिन नहीं.. जितना लोग कहते हैं.
_ मैंने अपना जीवन कठिन बना लिया था.. क्योंकि मुझे खुद से बहुत ज्यादा उम्मीद थी.
_ मैंने सब कुछ एक जगह या एक दिन में नहीं समेटना सीखा ; एक वर्ष में 365 दिन होते हैं, और कौन जानता है कि.. आपको अभी भी कितने दिनों का पता लगाना है.
_ एक दिन में एक चीज के साथ काम करें और खुद को थोड़ा स्पेस दें.
_ और अगर चीजें ठीक नहीं चल रही हैं, तो यह पता लगाने की कोशिश करें कि आप उन्हें कैसे हल कर सकते हैं, _क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं है.. जिसे आप हल नहीं कर सकते.. जो आपके जीवन में हो रहा है. – यह इसलिए हो रहा है.. क्योंकि आप इसे संभालने में सक्षम हैं; आप अपनी अपेक्षाओं से परे नहीं हैं. _चीजें आपके नियंत्रण से बाहर नहीं हैं. ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है.. जो आपके जीवन में नहीं होना चाहिए.
_ सब कुछ समय पर है; चीजों में जल्दबाजी न करें और न एक ही बार में उन सभी के साथ अपने दिमाग को व्यस्त कर लें ; _ आपका दिमाग एक साथ कई चीजों पर काम करने के लिए नहीं बनाया गया है,
_ जब आप अपनी भावनाओं, चीजों और लोगों को मिलाते हैं तो यह अराजकता पैदा करता है ; सभी को अपनी जगह पर रखें.!!
_ अधिक करने से आपके मन में अव्यवस्था पैदा होती है; यह आपको एक पाश में फँसा देता है जहाँ आप यह तय नहीं कर सकते कि पहले क्या करना है,
_ जैसे मैं करता हूँ _ अपना काम पूरा करने के बाद _ कम करने से खाली समय मिलता है; इससे शांति मिलती है. _ यह आपके दिमाग को स्पष्ट करता है और आपकी सोच को व्यापक बनाता है; यह आपको लूप तोड़ने में मदद करता है.
_ और अब मैं यह समझ गया हूँ: मुझे एक बार में बहुत से काम करने की ज़रूरत नहीं है! मैं जितना सक्षम हूं उससे कम करने की जरूरत है.
_ ऐसा करने से, मैं अपने विचारों पर दबाव कम कर रहा हूँ; अब मुझे केवल एक ही चीज़ के बारे में सोचना है ; _ कभी-कभी, जब आप बहुत कुछ करने में सक्षम होते हैं, तो आप सब कुछ करने की कोशिश करते हैं और अंत में कुछ भी पूरा नहीं कर पाते हैं ; _ जो एक प्रकार की असफलता है.
सफलता इस बारे में नहीं है कि आप कितनी चीज़ें कर सकते हैं; यह इस बारे में है कि आप कितनी चीजें पीछे छोड़ सकते हैं और केवल एक चीज पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं.
_ यह एक चीज़ को पूरा करने के बारे में है, न कि सब कुछ शुरू करने और उसमें से किसी को पूरा करने में सक्षम नहीं होने के बारे में !!
आप अक्सर थका हुआ महसूस करते हैं, इसलिए नहीं कि आपने बहुत अधिक काम किया है, _ बल्कि इसलिए कि आपने वह काम बहुत कम किया है जो आपके भीतर रोशनी बिखेरता है.
क्या होगा यदि हम बहुत अधिक काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि वास्तव में जो मायने रखता है वो काम बहुत कम कर रहे हैं ?
यह कठिन कार्य नहीं है जो हमें सबसे अधिक थका देता है, यह अर्थहीन कार्य है जो हमें सबसे अधिक थका देता है.
_ हर शाम लौटते हैं जैसे किसी सजा की अवधि पूरी करनी हो..
_ ना जीने में रस है, ना मरने में डर..
_ बस एक अनकहा इंतज़ार कि कोई आये.. जो इस जीवन की पीड़ा को समझे,
_ जो बिना सवाल पूछे बस कह दे.. अब और नहीं चलो..
_ मैं तुम्हें इस बोझ से मुक्त करने आया हूँ…!
_ यह मुहावरा कितना सच है, जीवन में हम उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं.. जो करने में अच्छी होती हैं.. _ लेकिन हम अंत में महत्वपूर्ण लोगों या चीजों को भूल जाते हैं और बाद में पछताते हैं.
_ हम कुछ लोगों या चीजों पर बहुत अधिक विश्वास करते हैं.. जो इतना महत्वपूर्ण नहीं है ;
_ उस हीरे को खोजने के सही तरीके पर काबू पाने और ध्यान केंद्रित करने का सबसे अच्छा तरीका है कि मैं एक समय में एक चीज ले रहा हूं, न कि बहुत अधिक बोझ.!!
_ वो किताबों के अक्षर, वो फिल्मों के पोस्टर, रातों के तारे, दिन के गुबार, शाम के धुंधलके, वो सावन, वो बारिश की बूंदें..
_ वो खुशी और गम में ..इन्हीं से छलकते आंसू..
_ वो बच्चों की किलकारियां और बड़े हो कर उनका सेटल हो जाना,
_ बीवी कि एक ज़िम्मेदार गृहणी की भूमिका ..जो कि होममेकर और लाइफमेकर दोनों रही,
_पिताजी की मशक्कत से लेकर झुक कर चलने की अदा, वो बहनों की राखियां, वो पसीने से भीग जाने की रियावयत, दोस्तों की बदमाशियां… सब देखा है इस आंख ने..
_अभी भी कुछ ख्वाब हैं इस आंख के…
_ थोड़ा घूमना-फिरना..
..वो सुकून से जीने के चार दिन, वो बिना चिंता के सुबह आंख का खुलना, आराम, सुकून की चाह..
_ बस इनके बंद होने से पहले ये कुछ देख लेना चाहता हूं..!!
_जिंदगी खत्म होनी है तो ..क्यों ना दुनिया के खूबसूरत रंग देखकर ..इसका उपयोग किया जाए ..
_अब बस यही जीना है जी भर के… Live Life… “जिंदगी मिलेगी न दोबारा..”
_ यह पंक्ति बताती है कि सच्चा आराम प्रयास या पलायन से नहीं, बल्कि जीवन को वैसा ही समझने से आता है जैसा वह है.
_ जब हम वास्तविकता का विरोध करना बंद कर देते हैं और नियंत्रण के भ्रम को छोड़ देते हैं, तो एक शांत सहजता उभरने लगती है.
• जीवन की प्रकृति को समझना: _ जीवन अप्रत्याशित है और लगातार बदल रहा है. _ इसे निश्चित या निश्चित बनाने की कोशिश करने से केवल तनाव ही पैदा होता है. _ लेकिन जब हम वास्तव में देखते हैं कि परिवर्तन और अनिश्चितता जीवन की संरचना का हिस्सा हैं, तो हम इससे लड़ना बंद कर देते हैं – और इससे शांति मिलती है.
• वर्तमान में जीना: _ हमारी ज़्यादातर चिंता अतीत को पीछे छोड़ने या भविष्य के बारे में चिंता करने से आती है. _ विश्राम तब आता है जब हम पूरी तरह से मौजूद होते हैं – बस यहीं, बस अभी – बिना किसी निर्णय या जल्दबाजी के.
• नियंत्रण से ज़्यादा स्वीकृति: _ लोगों, घटनाओं या परिणामों को नियंत्रित करने की कोशिश करने से सिर्फ़ तनाव बढ़ता है. _ असली आराम तब मिलता है जब हम चीज़ों को वैसे ही रहने देते हैं, जब हम जीवन को अपनी लय में चलने देते हैं.
• प्रवाह पर भरोसा करना: _ जीवन को जानने का अर्थ है इस बात पर भरोसा करना कि कठिन क्षणों का भी अपना स्थान होता है. जब हम यह चाहना छोड़ देते हैं कि सब कुछ “हमारे हिसाब से” हो, तो हम एक गहरी शांति का द्वार खोलते हैं – जो परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती.
संक्षेप में, विश्राम कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे आप हासिल करना चाहते हैं या जिसका आप निर्माण करना चाहते हैं. _ यह वह चीज़ है जो तब बचती है जब आप जीवन को समझते हैं, स्वीकार करते हैं और उस पर भरोसा करते हैं. – SACHIN
_ जब अस्तित्व आपके हृदय में कोई लालसा उत्पन्न करता है, तो उस पर विश्वास करें – यह आकस्मिक [accidental] नहीं है.
_ आपका शरीर ही आपका असली घर है.
_ नौकरियाँ, घर, कार – ये सब आते-जाते रहते हैं.
_ अपने शरीर को मंदिर की तरह समझो, नहीं तो एक दिन तुम अपने शरीर के अंदर बेघर महसूस करोगे.
_ कभी-कभी जिस नीरसता का आप विरोध करते हैं, वह वास्तव में जीवन द्वारा आपको दिया जाने वाला वह मौन है, जिसकी आप कभी भीख मांगते थे.
_ अगर आप दूसरों की वाहवाही के लिए जीते हैं, तो उनकी खामोशी से आप बिखर जाएँगे.
_ पानी की तरह बहो – उनकी राय में मत फँसो.
_ आप क्या बन रहे हैं, यही सबसे ज़्यादा मायने रखता है.
_ अतीत मर चुका है – उसे दफना दो.
_ पल-पल नया बनो.
_ खोज में वर्षों बीत जाते हैं… फिर स्पष्टता का एक क्षण सब कुछ जला देता है.
_ आपमें सबसे मजबूत होने का कोई दूर का भविष्य नहीं है – यह यहीं है, अभी.
_ जो झूठ है उसे छोड़ दें, और आपको स्पष्ट रास्ता दिखाई देगा.
_ जब हम ईमानदार होते हैं, तभी असली यात्रा शुरू होती है.!!
– SACHIN
_ कोई मंज़िल पास दिखती है तो कोई बहुत दूर,
_ लेकिन एक सच हर किसी के लिए समान है: हर इंसान को दूर चलना पड़ता है.
_ और जब राह लंबी हो, तो बीच-बीच में ठहराव भी जरूरी होता है.
_ आज की दुनिया ने रफ्तार को अहमियत दी है – जो जितना तेज़ दौड़े, वो उतना सफल माने जाता है.
_ लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, रुकना भी तो एक कला है ?
_ हर थके कदम को राहत चाहिए, हर भरे मन को सुकून की तलाश होती है.
_ इसीलिए कभी-कभी खुद से कहना चाहिए – थोड़ा आराम कीजिए.
_ थोड़ा ठहरना नाकामी नहीं है, ये समझदारी है.. यह वह पड़ाव है.. जहां हम खुद से दोबारा जुड़ते हैं, अपनी थकान को महसूस करते हैं और आने वाले सफर के लिए खुद को फिर से तैयार करते हैं.
_ जैसे किसी पेड़ को फल देने से पहले सर्दियों में शांत रहना पड़ता है, वैसे ही हमें भी खुद को रीचार्ज करने के लिए रुकना पड़ता है.
_ जब हम ठहरते हैं, तो हमें अपने भीतर की आवाज़ सुनाई देती है – जो तेज़ भागते हुए अक्सर दब जाती है.
_ तब हमें याद आता है कि यह यात्रा सिर्फ मंज़िल तक पहुंचने की नहीं, बल्कि हर कदम को महसूस करने की भी है.
_ इसलिए जब लगे कि बोझ बढ़ रहा है, कि सांसें थक रही हैं, कि दिल उदास है – तो खुद से कहिए: थोड़ा आराम कीजिए.
_ क्योंकि रास्ता अभी लंबा है, और हर इंसान को कहीं न कहीं बहुत दूर तक चलना ही होता है.
– Rahul Jha
_ जिसमें जीवन की गहराई, उपस्थति, और सुकून को महत्व दिया जाता है, न कि केवल गति को.
🌿 स्लो लाइफ [SLOW LIFE] जीने का अर्थ क्या है ?
> “धीमी जिंदगी” का मतलब है – जीने की हर क्रिया में पूरी उपस्थिति के साथ होना.
_ ये “स्लो होना” नहीं, बल्कि “सच्चे मन और विवेक के साथ जीवन को चखना” है.
🔹स्लो लाइफ का मूल तत्व क्या होता है ?
🧘♂️ Present Moment Awareness – हर काम को जल्दी-जल्दी नहीं, पूरी उपस्थति के साथ करना.
☕ Mindful Routines – चाय पीना हो या सवेरे का योग – उसमें मन से शामिल होना.
🌿 Less is more – समान काम, व्यवस्तता कम, लेकिन अनुभव अधिक.
📱 Digital Discipline Mobile और screens से दूर रहकर जीवन से जुड़ना.
🤝 Gehre Sambandh – दोस्ती, बातें और समय – सब सच्चे और गहरे..
🐢 Apni gati pe jeena – अपनी गति पर जीवन का आनंद लेना – तुलना और दौड़ से परे.
> “जहां वक्त घड़ी से नहीं, सांसों से गिना जाता है – वहां स्लो लाइफ जी जाती है”
“Slow life वो कला है – जहां जीवन की हर सांस एक गीत बन जाती है.”
“Slow life जीवन को भागना नहीं सिखाता, – बल्कि “रुक कर देखना, महसूस करना, और ध्यान से जीना” सिखाता है”
_ जहां लोग समय को जीते हैं, दौड़ते नहीं.
🌍ऐसी जगहें या संस्कृतियाँ [cultures] जहाँ लोग “SLOW LIFE” जीते हैं:
🇮🇹 1. Italy – Tuscany ya Amalfi Coast _ लोग हर काम को कला [Art] की तरह करते हैं – खाना बनाना, बातें करना, बागवानी [Gardening] करना. _ यहाँ “la dolce vita” का concept है — “the sweet life”. _ लोग काम से ज़्यादा जीवन की आनंदमयी गुणवत्ता [Quality] पर ध्यान देते हैं.
🇯🇵 2. Japan – Okinawa _ यहां के लोग इकिगाई [Ikigai] के साथ जीते हैं – जीवन का अर्थ और शांति पाने के लिए. _ बहुत कम व्यक्ति तनाव [stress] लेते हैं, और कई लोग 100 साल तक जीते हैं. _ वहां का जीवन slow, simple और nature-centric है.
🇳🇴 3. Norway – The “Friluftsliv” Culture Friluftsliv = “Open-air living”. _ Norway के लोग प्रकृति के साथ समय बिताते हैं – बिना जल्दी के. _ Nature walks, fireplace evenings, और no rush mentality उनके culture में बस गयी है.
🇪🇸 4. Spain – Andalusia Region Siesta culture — दोपहर को आराम और शांति के लिए पूरी लाइफस्टाइल बना रखी है. _ समय पर खाना, समय पर आराम, और लोगों के साथ जीवन को सेलिब्रेट करना यहां आम है.
🇮🇳 5. India – Rishikesh, Auroville, Himachali गावों में.. Rishikesh ya Auroville जैसे स्थल slow, conscious living के प्रतिनिध हैं. _ यहाँ लोग व्यक्ति और समुदाय के रूप में mindful और soulful जीवन जीते हैं.
_ “Less consumption, more presence” यहां की सोच है.
🧘♂️ क्या कोई व्यक्ति slow life जीता है ? हाँ !!
_ आज भी कई लोग — minimalist, seekers —ऐसे जीवन को अपना चुके हैं :
_ और कई लोग जो silently अपने ही गांव ya nature के पास रहकर… मानव और prakriti के मेल से जीवन जी रहे हैं.
> “जहां वक्त घड़ी से नहीं, सांसों से गिना जाता है – वहां धीमी जिंदगी [SLOW LIFE] जी जाती है”
_ यह पंक्ति बताती है कि सच्चा तनावमुक्ति प्रयास या पलायन से नहीं, बल्कि जीवन को उसके वास्तविक रूप में समझने से आता है.
_ जब हम वास्तविकता का विरोध करना बंद कर देते हैं तो एक शांत सहजता उभरने लगती है. इस विचार पर एक गहन चिंतन [Deeper Reflection] प्रस्तुत है :-
• जीवन की प्रकृति को समझना: • Understanding the Nature of Life:
_ जीवन अप्रत्याशित है और निरंतर बदलता रहता है.
_ इसे निश्चित बनाने की कोशिश केवल तनाव पैदा करती है.
_ लेकिन जब हम वास्तव में यह समझ जाते हैं कि परिवर्तन और अनिश्चितता जीवन की संरचना का हिस्सा हैं, तो हम इससे लड़ना बंद कर देते हैं—और इससे शांति मिलती है.
• वर्तमान में जीना: • Living in the Present:
हमारी ज़्यादातर चिंताएँ अतीत को पीछे छोड़ने या आगे क्या होने वाला है, इसकी चिंता करने से आती हैं.
_ सुकून तब मिलता है जब हम पूरी तरह से मौजूद होते हैं—बस यहीं, बस अभी—बिना किसी निर्णय या जल्दबाज़ी के.
• नियंत्रण से ज़्यादा स्वीकृति: • Acceptance Over Control:
लोगों, घटनाओं या परिणामों को नियंत्रित करने की कोशिश करने से तनाव बढ़ता ही है. _ असली सुकून तब मिलता है जब हम चीज़ों को अपने हाल पर छोड़ देते हैं, जब हम ज़िंदगी को अपनी लय में चलने देते हैं.
• प्रवाह पर भरोसा: • Trusting the Flow:
जीवन को जानना इस बात पर भरोसा करना है कि कठिन क्षणों का भी अपना स्थान होता है। जब हम यह चाहना छोड़ देते हैं कि सब कुछ “हमारे अनुसार” हो, तो हम एक गहन शांति का द्वार खोलते हैं—जो परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती.
संक्षेप में [In essence,], विश्राम [relaxation] कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसके पीछे आप दौड़ते हैं या जिसे आप गढ़ते हैं.
_ यह वह है जो तब बचता है जब आप जीवन को जैसा है वैसा ही समझते हैं, स्वीकार करते हैं और उस पर भरोसा करते हैं.
– Sachin
_ मैं अपने आसपास नज़रें दौड़ाता हूं इस रहस्य को समझने के लिए तो देखता हूं दुनियां बहुत तेज गति से भाग रही है.
_ हाड़ – मांस से बना इंसान संस्कारो, जिम्मेदारियों, आडंबरों, अवधारणाओं और आवश्यकताओं से घिरा दौड़ा जा रहा है.
_ एक रेस सी लगी है लोगों में, सब एक- दुसरे से आगे निकल जाना चाहते हैं.
_ सबका दम फूल रहा है, पसीने से लथपथ हैं, लक्ष्य का पता नहीं पर दौड़ अनवरत जारी है.
_ पता नहीं दुनियां क्या पाना चाहती है, शायद धन, मान, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि, पावर……
_ मैं ख़ुद को टटोलता हूं तो पाता हूं मुझे इस दौड़ से कोई वास्ता ही नहीं… पर क्यूं ?
_ क्यूंकि मैं यहाँ सुकून से बैठ इस दौर को देख मुस्कुरा रहा हूँ.
_ मुझे नहीं जाना कहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए बस किसी दिन आकर कह देना- अरे पागल, अब तक यहीं बैठे हो.. चल चलते हैं…!!
– Anand Sharma
Kalash
_ मैं उस रहस्य का अध्ययन कर रहा हूं _ क्योंकि मैं एक इंसान बनना चाहता हूं.
_ ज्ञान भरी बातें सब कर लेंगे, लेकिन कोई ये नहीं जानने का प्रयास करेगा कि मेरी मनः स्थिति क्या है और क्यों है ?
_ सबको अपने हिस्से की परेशानी हमेशा ज़्यादा लगती है, इसलिए सबसे बढ़िया है किसी को कुछ मत बोलो…!!
_ जब मैं देखता हूं कि वे दुनिया को दोष नहीं दे रहे हैं और चुपचाप पूरे दिल से खुद को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.!!
_ “मैं मोहरा नहीं हूँ” — ये मुझे याद रहता है कि मेरे भीतर एक चेतन निर्णय लेने वाला अस्तित्व है, जिसे कोई नियंत्रित नहीं कर सकता.!!
_ पर उस दौर की उम्र बहोत छोटी रही, मानो एक पल में पूरा दौर गुजर गया..
_ अब उन बातों को याद करने की वजह ही नहीं दिखती मुझे,
– अब सिर्फ एक बात याद है.. जैसी दुनिया वैसा मैं.!
_ अब मरने के दिन हैं तो हम मरना नहीं चाह रहे.
_ आख़िर इतने उल्टे-पुल्टे क्यों है हम ? हम यानी कि “मैं”
“वो जीवन जो जिया नहीं. वक़्त बीतने के साथ हर पल रेत सा फिसलता जाता है.”
_ क्या यह हम हैं ? कुछ ऐसा जिसके साथ हम पैदा हुए हैं ? क्या यह हमारी बुद्धिमत्ता, हमारे सामान्य ज्ञान की मात्रा, हमारी परवरिश से जुड़ा है ?
_ क्योंकि बुरे विकल्पों के बहुत विनाशकारी, जीवन भर परिणाम हो सकते हैं.
_ मेरा मानना है कि यह कुछ ऐसा है _जिसकी हमारे पालन-पोषण में कमी थी और यह इतना अच्छा नहीं है कि किसी से कहा जाए कि अच्छे विकल्प चुनें ; उन्हें हमारे अनुरूप बनाया जाना चाहिए.
_ हमारे देखभाल करने वालों को यह नहीं मानना चाहिए कि हम जानते हैं !
_हमें सही विकल्पों के लिए निर्देशित होना चाहिए !!
_मुझे चिंता है कि वे प्यार के नाम पर सब कुछ बलिदान कर देते हैं जबकि दूसरे को यह भी नहीं पता कि वे किस प्यार में हैं.
_मुझे नहीं लगता कि यह दोनों तरफ से प्यार है ; यह सिर्फ आपकी तरफ से है.
_और जब मैं देखता हूं कि लोग इसके बारे में शिकायत कर रहे हैं लेकिन खुद को उनसे दूर रखने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं,
_तो कहीं न कहीं, वे भी असहाय महसूस करते हैं, जैसे कि यह अब उनके नियंत्रण में नहीं है _ क्योंकि उन्होंने इसे बहुत पहले किसी अन्य व्यक्ति को दे दिया था.
और अब, यह उनकी पसंद है कि वे कैसे और कब बात करना चाहते हैं.
_ वे बात करने के लिए न्यूनतम समय निर्धारित करते हैं, और फिर भी आप उन्हें छोड़ नहीं सकते ? क्यों ?
_मैं जानना चाहता हूं कि आपका आत्मसम्मान आपके लिए सब कुछ क्यों नहीं है. आपको क्यों लगता है कि उन्हें एक और मौका देना एक अच्छा विचार है ?
_ मैं उन लोगों के लिए चिंतित हूं _जिन्हें अब अपनी परवाह नहीं है, _ क्योंकि उन्होंने प्यार को खुद से बड़ा बना लिया है ; _ लेकिन क्या यह वास्तव में प्यार है –
– जब आप एक ऐसे व्यक्ति के लिए सब कुछ करते हैं _ जो यह भी नहीं जानता कि आपके अंदर क्या चल रहा है ?
_ मैं उन लोगों के लिए चिंतित हूं _जो सिर्फ इसलिए आगे नहीं बढ़ सकते _क्योंकि उन्होंने पहले कभी ऐसा कुछ महसूस नहीं किया है _ और डरते हैं कि उनका आराम क्षेत्र खत्म हो जाएगा.
_ मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि यह आप ही थे _जिन्होंने उन्हें अपने जीवन में लाकर अपने लिए जगह बनाई थी, उन्होंने नहीं..
_मैं उन लोगों के लिए चिंतित हूं _जो अभी भी नहीं समझते हैं, भले ही उनके सभी दोस्त उन्हें अपने जहरीले रिश्ते को छोड़ने के लिए कहें.
_ हर कोई अपने जीने से अलग जीवन बनाने के लिए दौड़ रहा है ;
_ रब द्वारा दी गई जिंदगी को कोई नहीं जीना चाहता, न मैं और न आप..
_ ऐसा लगता है जैसे हम कभी पूरा महसूस नहीं करते.
पर मैं सोच रहा हूँ कि मैं अब अपना जीवन पूरा महसूस करूँ ; यह ठीक रहेगा _ अगर मैं एक सुबह उठूं और ऐसा जीवन पाकर खुद को धन्य महसूस करूं.
एक ऐसा जीवन जो बोझ से मुक्त हो _ क्योंकि मैंने अपने लिए कुछ भी नहीं बनाया है ; और अगर कोई बोझ भी हो तो मैं उससे निराश नहीं होऊंगा.
इसमें कोई शर्म की बात नहीं है अगर मैं अपना ख्याल रखूँ ; मैं अपनी सुबह में अराजकता पैदा नहीं करना चाहता. _ मैं इसे सूक्ष्म, शांत, सभी चिंताओं से दूर चाहता हूं.
यह ऐसा है जैसे मैं जीवन को वैसे ही स्वीकार कर रहा हूं जैसे वह है ; _ मैं इसे बदलना चाहता हूं, लेकिन अपना दिमाग खोने की कीमत पर नहीं..
_ मैं नहीं चाहता कि मैं कोई ऐसा व्यक्ति बनूं जो जीवन के बारे में शिकायत करता है लेकिन उसे जीता भी है..!!
_ क्योंकि जब जीवन की बात आती है तो हमारे पास पर्याप्त विकल्प नहीं होते हैं ; _ हमें जो कुछ भी दिया है उसे जीना है, कभी बदलाव के साथ तो कभी बिना बदलाव के..
इसलिए मैं बदलाव के साथ जीवन चाहता हूं, लेकिन तब नहीं जब मैं इसमें मुस्कुरा नहीं रहा हूं..
मैं अपने लिए एक अलग जीवन बनाना चाहता हूं, लेकिन खुद को खोने की कीमत पर नहीं.!!
मैं हर दिन को महसूस करना चाहता हूँ, मैं हर दिन को अपना दोस्त बनाना चाहता हूं.!!
मैं चीजों को अलग तरह से चाहता हूं, लेकिन मेरी सुबह और रातें जितनी खूबसूरत हैं ;
_ मैं एक अलग जीवन बनाने के लिए दौड़ना नहीं चाहता;
_ मैं इसमें चलना चाहता हूं और अपने जीवन को बदलने की प्रक्रिया का आनंद लेना चाहता हूं ;
_ क्योंकि मुझे उम्मीद है कि एक दिन जब यह सब नहीं होगा, तब भी मेरे पास जीने के लिए कुछ खूबसूरत यादें होंगी..
_ मैंने खुद को जलाकर उस अंधेरे को खत्म कर दिया है जिसने मुझे डराने की कोशिश की थी.
_ मैं अपने फ़ैसलों के साथ जीता हूँ, चाहे वो बुरे हों या अच्छे, लेकिन वो काफ़ी संतुष्ट महसूस कराते हैं.
_ मैं उन लोगों का शुक्रिया अदा करता हूँ.. जो मेरे नहीं हो सके, जो बीच राह में ही चले गए.. मैं उनके बिना इतना मज़बूत नहीं हो पाता..
_ उनकी अनुपस्थिति ने मुझे एहसास दिलाया कि किसी के बिना जीना मुमकिन है,
_ अब मैं सबसे दूर हो चुका हूँ..
_ मेरे लिए यही अच्छा है कि मैं हर जगह से पूरी तरह गायब हो जाऊँ, और एक पूरी तरह से अनजान ज़िंदगी जिऊँ.
_ अब मैं किसी को कुछ भी नहीं समझाऊँगा..
_ क्योंकि पहली बात तो यह कि उन्हें स्पष्टीकरण की ज़रा भी परवाह नहीं है,
_ और दूसरी बात, आप चाहे जितना भी समझाएँ, चाहे कितनी भी ऊर्जा लगाएँ, वह कभी भी पर्याप्त नहीं होगी..
_ तो फिर अपना समय बर्बाद क्यों करें.
_ कभी-कभी चीज़ें मेरे काबू से बाहर हो जाती हैं और मैं किसी को समझा नहीं पाता कि मेरे मन में क्या चल रहा है..
_ क्योंकि इसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है और कागज़ पर लिखना और भी मुश्किल..
_ ऐसा लगता है जैसे मेरा दुख सिर्फ़ मेरा है और मुझे ही इससे निपटना है.!!
_ आप अटके हुए महसूस नहीं करते, और आपका दम नहीं घुटता..
_ बिना किसी से उलझे, एकदम आज़ाद एहसास..
_ आप खुद से और अपनी ज़िंदगी से फिर से प्यार करने लगते हैं..
_ आप पीछे मुड़कर नहीं देखते..
_ आप किसी से कोई उम्मीद करना छोड़ देते हैं..
_ आप सबके लिए ऐसे उपलब्ध रहना बंद कर देते हैं.. जैसे उनका कोई खास महत्व ही न हो.
_ आप कॉल और मैसेज का इंतज़ार नहीं करते.
_ आपको स्क्रॉल करने की भी ज़रूरत महसूस नहीं होती.
_ आप अपने अतीत की सच्चाई से दूर, कहीं और एक नया व्यक्तित्व गढ़ते हैं.
_ आप अतीत और भविष्य के बीच का अंतर समझते हैं और यह भी कि अतीत अतीत क्यों है.
_ आप खुद पर काम करते हैं, अपनी गलतियों को सुधारते हैं, लेकिन इस बार किसी और के लिए नहीं.
_ आप खुद से माफ़ी मांगते हैं और अपना आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास वापस पाते हैं.
_ आप आईने में देखना शुरू करते हैं, अपने पसंदीदा काम करने लगते हैं..
_ आप खुद में पूर्ण होने के एहसास से खिलखिला उठते हैं.!!
_ आप दिल खोलकर हँसते हैं, जैसे बरसों से नहीं हँसे थे.
_ आप अपने चेहरे पर चमक, उस लालिमा को वापस आते हुए महसूस करते हैं मानो वह आपकी ही हो.
_ घर से बाहर निकलना वाकई एक नई, एक नई शुरुआत, आपकी आत्मा के एक नए जन्म जैसा लगता है, और आप ज़्यादा विनम्र, ज़्यादा खुश और ज़्यादा स्वतंत्र हो जाते हैं.
_ अगर आप आगे बढ़ने के दौर से गुज़र रहे हैं – तो आपके नए अध्याय के लिए शुभकामनाएँ; यह एक सुखद दौर होने वाला है.!!
_ मतलब नाम मात्र के लिए भी ख़बरों में दिलचस्पी ख़त्म कर दी है मैंने..
_ और आजतक ज्यादातर खबरों से दूर हूँ.
_ अब किसी को लग सकता है देश, दुनिया मे क्या हो रहा इतना तो जानना चाहिए.. …हां उतनी खबर मिल ही जाती है ..बाकि सबसे बड़ा कारण यह था कि..
_ मैं कुछ कुछ ह्रदय विदारक ख़बरों से उबर ही नहीं पाता हूँ लम्बे समय तक.
_ चैनल की डिबेट्स चिल्लम-चिल्ली की वजह से वैसे ही मेरी नज़रों से उतर गईं थीं.
_ इतनी अजीब ख़बरें पढ़ सुनकर दिल की धड़कने हमेशा से ही बढ़ती रही है मेरी.
_ और मैं नहीं चाहता कि अपनी बेचैनियां और बढ़ाऊँ.
_ ऐसी खबरों की अपडेट से बचने के लिए ..अब कई कई दिनों तक सोशल मीडिया से भी दूरी बना लेता हूँ.
“आदमी जरूर हूं पर अब और सहने की सामर्थ्य नहीं है..
_ भीगी आँखों से सब सहते-सहते अब गला भर्रा जाता है..”
– दिमाग में कचरा भूसा आखिर क्यों भरें..
_ दुनिया भर का जब कचरा भूसा भरा जाता है, तो उसको निकालने के लिए ज्यादा मेहनत ऊर्जा लगता है, इसलिए जीवन का एक ही सूत्र अपना लिया है..
_ भाड़ में जाएं दुनिया, अपने मानसिक शांति की वाट नहीं लगानी है, वो भी दूसरों की वजह से..
_ अपने मानसिक शांति की ऐसी की तैसी करने से बचिए, एक ही जीवन है, सुकून शांति को अपनाएं..!!