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Mast Magan
_ अपने हृदय को लोगों की प्रशंसा से प्रसन्न न होने दें.. और न ही उनकी निंदा से दुःखी होने दें.!!
_ लेकिन ये शब्द और विचार वो चाबियाँ हैं जो जंग लगे ताले को खोल सकते हैं.!!
_ आपका जवाब होना चाहिए –”हां, मैं जिंदादिली के साथ जिंदा हूं..”
_ जो अपने होने को समझ गया, उसे दुनिया समझने की ज़रूरत ही नहीं रहती.!!
_ मैं भले ही सस्ता हूँ.. पर मुलाकात महंगी बना कर जाऊंगा.!!
_ उसे राज़ ही रखें तो बेहतर है..!!
_ और ये ख़ुशी पहले-पहले अकेलापन लाएगी, “फिर एक दिन वो आनंद का राज़ बन जाएगी”
“जिन्हें मैं सबसे पहले अपनी ख़ुशी बताना चाहता था, वो ही समझने को तैयार नहीं थे…
_ तो मैंने ख़ुशी से कहा – चलो, सिर्फ तुम और मैं मिलकर जीते हैं”
_ क्योंकि जिस दिन तुम पूरे खिलोगे, वही अनुभव है उसका..!!
_ जो मुझे बिना ढूंढे भी महसूस कर रहा है”
_ मुझे अपने पुराने रूप में रहना बिल्कुल पसंद नहीं, वह एक दुःखी व्यक्ति था.!!
_क्योंकि प्लानिंग हमेशा से मुझे तमाचा मारते आई है.!!
_ याद रखना, कोई भी नहीं, जब आपको पता चल जाए कि आपका यहां अपना कोई भी नहीं है,
_ तो आप जीवन को ज्यादा अच्छे से, खूबसूरती और जिंदादिली के साथ जी पाते हो !!
_ अपनी खुशियां जितनी छुपा कर रखोगे.. उतना खुश रहोगे..!!!
_ कोशिश करें कि सुकून का ताल्लुक किसी इंसान से न हो.!!
_ बस यही एक काम है.. कि बस सोच सकते हैं बिना किए..
_ अगर करने पर आ गए सब का मंगल.. तो मंगल करने वाला बचेगा नहीं.!!
_ रोज कीचड़ में फंस जाता, रोज धक्का लगाते..
— और सही मायने में मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता —
— ” मुझे अपनी धुन पसंद है — मेरे अपने नियम हैं.”
_ मर-मर के ज़िंदगी को आसान किया मैंने.!!
_ मैं तो गहरे रंग चुनूँगा.. जिन्हें देखकर लोग चौंकें.!!
_ एक इंसान दूसरे इंसान पर कभी भी हावी नहीं हो सकता – और किसी को होने भी ना दें..
_ कुल मिलाकर बात यह है कि एक ही जीवन है मस्त रहो.!!
_ हर एक की समझ का एक स्तर होता है और सिर्फ़ इस बात के लिए आपको लोड लेने की ज़रूरत नहीं है कि.. दूसरों कि समझ का स्तर अलग है ;
_ आप अपनी लाइफ और अपनी समझ के हिसाब से समझिए चीजों को.. _ और दूसरों को उनकी समझ घिसने दीजिए.!!
_ वहीं जो कुछ भी हमें सत्य से परिचित करवाकर झकझोर दे अन्दर तक, उसे दुःख मानने लगते हैं.
_ सत्य से जो परिचय करवा रहा, उसे कोई नहीं चाहता, विचित्र..!!
_ अच्छा ये बताओ बचपन से लेके आज तक मन का हुआ क्या था ?
_ बावजूद इसके ज़िन्दगी चलती रही ना… निराश न हो आगे भी चलती रहेगी….!
_ यदि नहीं, तो पहले अपनी स्थिति को सुधारो.!!
_ अब मुझे सिर्फ वही चाहिए.. जो मेरे भीतर से उठे, ना कि जो बाहर से सिखाया जाए.!!
_ अब मैं खोया हुआ और दुनिया से बेखबर, अपने जीवन को जी भरकर जीता हूँ.
_ मेरा हर दिन उन चीज़ों से भरा होता है जो मुझे पसंद हैं.
_मैं घूमता हूँ, वॉक करता हूँ, कुछ पढता-लिखता हूँ.!!
_ हमारी तलाश ज़िंदगीभर अधूरी रह जाती है, हम जो चाहते हैं वो हमें कभी नहीं मिलता ;
_ और जब वो मिलता भी है, तब तक हम बहुत दूर जा चुके होते हैं,
_ जो मिलता भी है तो हमारे अपेछा के अनुरूप नहीं होता,
_ जहां अपने मन का कुछ न हो, ऐसा जीवन पराया-सा लगता है..!!
_ यदि यह न होता तो शायद कुछ और कमी होती..!!
_ जवाब है – जो है उसके अलावा सब..!!
_ आप जीवन को अलग नजरिये से देखना शुरू कर देंगे.!!
_ मेरा सच कोई विज्ञापन नहीं, एक खुशबू है—चाहे महसूस हो या न हो.
_ क्योंकि आप उनके संघर्ष की पिछली कहानी नहीं जानते.
_ आप नहीं जानते कि वे वहाँ कैसे पहुँचे..!!
_ जब मैं अपनी मौज में, अपने तरीके से जीता हूँ..
_ तो मुझे किसी की परवाह ही नहीं रहती..
_ कि किसने मेरे साथ क्या किया था.
_ बीती बातें महत्वहीन लगती हैं.
_ तब महसूस होता है— क्या रखा है इन सब बातों मे.!
_ ज़िन्दगी बस खूबसूरत है, और मैं इसे अपने रंग में जीता हूँ.
_ “और मैं इसे अपनी मौज में ही जीना चाहता हूँ”
_ ” जो स्थायित्व की तलाश में हैं, वो जल्दबाजी से नहीं, समझदारी से चलता है”
_ और जो आंख वाले नहीं हैं, उन्हें मैंने अपना बनाया नहीं.!!
_मैं खुद ही किसी के आगे हारा तो हारा.!!
_ जड़ सूखा हो तो फल नहीं लगते.!!
_ आप अपना अधिकार स्वयं पर खुद रखें, यह किसी को देंगे तो परेशान होना तय है.!!
_ इंसान यहां खुद से मिलने आया है लेकिन मिलकर दुनियां से जा रहा !!
_ मुझे कुछ नहीं पाना, क्योंकि जो मेरे पास है, वह इतना महत्वपूर्ण और बहुमूल्य है कि उसे खोकर मैं कुछ और पाना नहीं चाहता.!!
Its better to have one in hand than two in the bush.
_ मुझे ये बहुत अच्छी लगता है और मैं भी पहले अब ढीठ ही होना चाहता हूँ.!!
_ तब से मैंने आराम को जरुरत से ज्यादा महत्व नहीं दिया.!!
_ समझदारी यही कहती है, कि बस चुप रहिए..!!
_ जिसको जिससे उलझना है उलझे, ये मेरा मसला कतई नहीं है,
_ क्योंकि जो मेरा मसला था _ वो भी अब मेरा नहीं रहा..!!
_ अपने काम से काम रखता हूँ और मस्त रहता हूँ ..!!
_ यहाँ तक कि जीने की वजह भी दूसरा..
_ मेरा होना मेरे लिए कोई वजह क्यों नहीं है ?
_ चंगा-भला था मैं जब अपनी गुफ़ा में था, रोशनी में क्या आया कि मोह खिंचे चले आए..
_ अँधेरे के अपने दुख, रोशनी के अपने दुख..
_ अपने को अपने लिए अब ज़्यादा रखूँगा, दूसरों के लिए ज़रूरत भर..
_ कह देने से कमिटमेंट बढ़ जाती है, इसलिए कहा..
_ तुम, ये, वो.. सबसे मुझे क्या काम ?
_ मुझसे ‘मैं’ ही क्या कम है.. उलझने को..!!
_ इसलिए सबसे अधिक स्वयं को स्वस्थ व प्रसन्न रखना जरुरी है !!
_ आपको उस दिशा में “सतर्क” करने का या उस दिशा में कोई “मजबूत निर्णय” लेने का..!!
– जब एक मनुष्य उस शुद्ध चेतना से एक हो जाता है, तो उसकी व्यक्तिगत पहचान खो जाती है.
_ मैं ज्ञान से जीता हूँ और संसारी चतुराई से जीता है.!!
_ अब मन नहीं करता जवाब देने का… _ “कम बोलना है, सीखना ज़्यादा है.
_ बहसबाजी से बचना है, जब तक बहुत जरूरत न हो…
_ रूटीन सही करना है…बचे हुए कई काम करने हैं…
_ कहानियां लिखनी हैं…अच्छा-अच्छा देखना है…
_ नई-नई जगहें देखनी हैं. अच्छा-अच्छा पढ़ना है…!!
_ वे मेरे बारे में अलग-अलग सोचते हैं.. जो उन्होंने अपने मन में बना रक्खा है,
_ जब वे मुझे असली तौर पर जानते हैं या फिर जब मैं उन पर भरोसा करते हुए अपनी असली पहचान बताता हूँ, तो वे कहते हैं कि तुम बदल गए हो…
_ लेकिन कुछ चीजें हैं..जिन्हें आपको स्वयं देखना होगा.!!
_ वरना तो दुनिया गन्ने का रस निकालने वाली मशीन की तरह हमारा रस निकाल ही लेगी.!
_ मैं फुर्सत की चीज़ हूं और ज़माना जल्दबाजी में है.!!
_ और अच्छा जीवन जीने का फॉर्मूला देता हूं.!!
_इसे रहने के लिए एक अच्छी जगह बनाएं.!!
_ “कड़वा लगेगा जागा हुआ व्यक्ति”
_ वह सब लौटेगा जो आपके पास आना चाहिए.. क्योंकि इंसान का हिसाब गड़बड़ हो सकता है.. ऊपर वाले का नहीं..!!
_ अपने मन रूपी स्याही से इस पर कुछ भी लिखते रहते हो, पर स्याही मिटती नहीं..
_ पेंसिल बना लो मन को..
_ रात तक आते आते सब कुछ मिट जाए… इसी मन से ही..!
_ अपना अगला दिन फिर रिफ्रेश शुरू हो..
_ यूं ही रंग बिरंगा और मस्त-मगन जीवन..!!
_ आनंद (joy), वास्तव में हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और खुशी (happiness) से भी अधिक मौलिक है.
_ बर्बाद, बंजर भूमि में भी मुझे हरियाली दिखती है.!!
_ बल्कि वो लोग समझेंगे.. जो उस दौर से गुजरे हैं.. जिससे मैं गुजरा हूँ.!
_ बहुत चला सबके मुताबिक,, अब जाकर,, ख़ुद को जाना है !!
_जो ख़ास था.. वो ख़ास नहीं रहता..
_ जो भी हो रहा होता है.. वो ख़ास हो जाता है..!!
_ सब कुछ छणिक है, मस्त-मगन रहिए और इस दुनिया से कुच कर जाइए !!
_ मेरे परखने का मिजाज थोड़ा अलग है.!!
_ पर यहां तो सब ओवर एक्टिंग कर रहे हैं, एक्टिंग के अंदर भी एक्टिंग..
_ तभी तो लाइफ फ्लॉप हो रही, अब पता चला सही से..!!
_ सदबुद्धि के अभाव में ही एक इंसान उल-जुलूल हरकत करता है, जीवन में गलत का चुनाव करता है.!!
_ हर कोई वही नहीं रहता जो पहले था, और कुछ रिश्ते समय के साथ बदल जाते हैं.
_ तुम्हें खुद पर ध्यान देना चाहिए और अपनी ज़िंदगी आगे बढ़ानी चाहिए.
_ तुम्हें ऐसे लोगों के साथ घूमना चाहिए, जो तुम्हें खुश करते हैं और तुम्हारी परवाह करते हैं.
_ ऐसा है जैसे बांसुरी बजाते हुए पीठ पर मन भर बोरा लेकर चलना…
_ इस गति से जीवन में सबकुछ बहुत दूर ही नजर आता है..!!
_ वो क्या है – जो मेरे पास है और किसी के पास नही,
_ जो आपके पास है.. वह बिरला है और इसे पाने के लिये किसी दूसरे को कितने जीवन लग जायेंगे या अनथक प्रयास करना होंगे.. आप कल्पना भी नही कर सकते,
_ अब जब मैं धीरे – धीरे बहुत कुछ छोड़ता जा रहा हूँ, भीतर की ओर बढ़ रहा हूँ तो एहसास हो रहा है कि तमाम अवगुणों के बावजूद.. कुछ है जो मेरा है, अनूठा है..
_ और जिस पर मैं कम से कम भीतर ही भीतर ख़ुश हो सकता हूँ और गर्व कर सकता हूँ..
_ बस इतना कहूँगा कि जो आपके पास है, जैसा भी है, जितना भी है – उसे खोइये मत..
– वरना सच में आपके पास अपना कुछ नही रहेगा..
_ एक और दिन खोने से बड़ा दुःख दुनिया में कोई नहीं हो सकता.!!
_ मैंने पूछा क्यों दौड़ रहे हो ?
_ उसने कहा, क्योंकि सब दौड़ रहे हैं.!!
“सब दौड़ रहे हैं तब.. मैं तो अपना एक कदम पीछे की ओर लूंगा !!”
_ मन शांति की तलाश में, और दिल अपनो की तलाश में.!!
_ सुबह सुबह बिना अलार्म घड़ी के ही चिड़ियों का चहचहाना..ये सब मामूली बातें होते हुए भी मुझे हैरान कर देती हैं..
_ कल की कली का फूल बन जाना, इतनी छोटी सी चींटी का इतना अनुशासित होना.. सब देखते ही दिल धकधक करने लगता..
_ किसी प्रसिद्ध गायक के वीडियो देखता हूँ तो पीछे वाद्य बजाने वाली मंडली को देखकर अवाक रह जाता हूँ, लगता है ऐसे कैसे कोई बजा सकता है..
_ दिल में एक काश सा उठता है कि-काश मुझमें भी यह कला होती !!
_ रोज़ दिन का उगना, रोज़ शाम का आना, रात का जादू सब मुझे परीलोक की घटनाएं लगती हैं,
_ सोचता हूँ.. कैसे सब घटनाएं एक निरंतरता में, सलीके से घटित होती हैं…
_ ट्रेनों का प्लेटफॉर्म पर लगना- चलना, हवाई जहाजों का आकाश में उड़ना, टिकट छपना, सब मशीनों, यंत्रों का कमाल भले हो..
_ पर मैं इन्हें उसी चकित भाव से देखता हूँ.. जैसे कोई बच्चा देखे..
_ कपड़े पर डिजाइन उकेरना, कुम्हार का चाक पर बर्तन बनाना.. सब मुझे रॉकेट साइंस जैसा गूढ़ और अनूठा लगता है..!
_ पेड़ के पत्तियों के झड़ने से लेकर उनमें नई पत्तियों के आने, उनके रोज़ रोज़ बड़े होने, रंग बदलने, फूल और फल आने को ग़ौर से, नियम से देखने पर भी लगता है कि यह तो जादू है..
_ कल पत्तियां बैंजनी थीं, आज काही कैसे हो गईं, अभी परसों ही तो इतनी छोटी थीं.. दो दिन में बड़ी कैसे हो गईं..!
_ लोगों को लिखते, पढ़ते, गाते, नाचते देखता हूँ तो जादू सा लगता है..लगता है कि क्या ही कमाल लोग हैं यार, कैसे कर लेते हैं यह सब..
_ मेरे लिए तो दुनिया की हर घटना, हर शै जादू से भरी..
_ जाने हैरानियों का सिलसिला कब थमेगा, जाने मेरे मन का बच्चा कब बड़ा होगा..जाने मुझे कब हर चीज़ मामूली लगेगी..!!
_ जो व्यक्ति अपने परिवार को सुचारू रूप से चलाता है, उससे बड़ा कोई तपस्वी नहीं है.
_ बिना किसी आसक्ति के अपने दायित्वों का निर्वाह करना किसी संतत्व से कम नहीं है.!!
_ अब न मैं ध्यान करता हूँ,
_ अब तो बस हूँ…
_ हर श्वास में, हर चाल में, जैसे कोई मौन बहता हो..
_ चाय की प्याली उठाते समय, या किसी फूल को छूते हुए —
_ मन नहीं भागता,
_ वो तो यहीं है… ठहरा हुआ, लेकिन जीवित.
_ अब तो शब्द भी ध्यान हैं, और मौन भी.
_ अब तो हँसी भी प्रार्थना है, और आँसू भी स्वीकार.
_ ना कोई प्रयत्न है, ना कोई लक्ष्य,
_ सिर्फ एक सहज बहाव —
_ जैसे जीवन स्वयं ध्यान बन गया हो.
“अब बाहर की हलचल मुझे छूती जरूर है, लेकिन हिला नहीं पाती”
_ कोई भी आपके लिए ऐसा नहीं करेगा, कम से कम उस तरह तो नहीं जैसा आप चाहते हैं.
_ आपको अपने अंदर के बच्चे को साथ लेकर चलना चाहिए..
_ और वह सब करना चाहिए.. जो वह आपसे करवाना चाहता है,
_ क्योंकि कोई नहीं जान पाएगा कि आपने क्या नहीं जिया..
_ उन्हें नहीं पता कि आपके अंदर क्या है.
_ और अगर उन्हें पता भी है, तो यह उनका कर्तव्य नहीं है.
_ जो चीजें आपको खुश करती हैं, उन्हें करना आपका कर्तव्य है.
_ आपके चेहरे पर मुस्कान लाने वाली चीजें आपके अलावा कोई नहीं जान पाएगा..
_ और अगर आपको भी नहीं पता, तो पता लगाएँ.
_ घूमें-फिरें और पता लगाएँ कि आपको क्या खुशी देता है और उसका ख्याल रखें.
_ आपको उन लोगों का ख्याल रखने की ज़रूरत है.. जो आपके दिल के सबसे करीब हैं.
_ यह आपका कर्तव्य भी नहीं है, लेकिन यह आपकी खुशी के लिए है.
_ आपको अपने सारे काम खुद को खुश रखने के लिए करने चाहिए.
_ आपको अपना ख्याल उसी तरह रखना चाहिए.. जिस तरह आप दूसरों का रखते हैं.!!
_ लोग, वस्तु, संसार से लगाव कम कीजिए.
_ आपको सिर्फ और सिर्फ आप ही बचा सकते हैं, कोई दूजा न आएगा.!!
_ अब खुद को खुद से मिलवाऊँगा, मैं अब उन सपनों तक जाऊंगा, जो मैंने कभी देखे थे, लेकिन औरों की देखभाल या अपनी ज़िम्मेदारियों में इतना व्यस्त हो गया कि खुद को ही भूल गया,
_ क्योंकि इस सारी उथल-पुथल के बाद, मैं एक ऐसी खुशहाल जगह का हक़दार हूँ,
_ जहाँ मेरे सारे छोटे-छोटे सपने मुझमे में बसने के बजाय दीवारों पर टंगे न हों.!!
मैं कैसा हूँ !!! How am I !!!
“मैं कौन हूँ” तक पहुँचने के लिए.. – हमें “मेरा कौन है” से होकर गुजरना होगा.!!”
1. _ जो बना हो घर में, वह खा लेता हूँ. न बना हो तो भी कोई प्रॉब्लम नहीं, कुछ भी खा लेता हूँ.
_ मैं जो कर सका, किया : पैसा दिया, भरोसा किया ” जो मेरे हाथ में था, वो मैंने ईमानदारी से किया- अब बाकी सब ‘समय’ और ‘उसके हाथ’ में है.!!
_ अब मुझे केवल तीन जोड़ी कपड़े, कुछ किताबें, एक डायरी-पेन, एक पिट्ठू बैग, एक लैपटॉप और एक मोबाइल चाहिए.
_ “अब शोर अच्छा नहीं लगता, बस किताब, डायरी, पेन अच्छे लगते हैं”
_ मैं उन सभी सामानों से छुटकारा पा लूंगा, जिनका मैं उपयोग नहीं करूँगा..!!
_ मुझे किसी से कुछ भी नहीं लेना है, अपने सामर्थ्य से जीवन को खुशहाल रखना है.!!
_ मैंने अपनी जरूरतें सीमित कर ली हैं, ताकि मैं बीमारी से मुक्त हो सकूं..
_ मैं अब व्यर्थ के सामान नहीं खरीदता, सीमित सामान में ही अपनी जिंदगी जीता हूं.!!
_ भौतिक जीवन की विपदाएँ सहते रहता हूँ, घर में रहता हूँ लेकिन दिल से फ़क़ीर होता हूँ..!!
_ मेरी इच्छाएँ बहुत कम हैं..&_ मैं न तो उन्हें जाने देना चाहता हूं और न ही उन्हें पकड़कर रखना चाहता हूं..!!
_ अब मैं खुद को इतनी वैल्यू देता हूँ कि ख़ुद पर खर्च कर सकूँ – पैसा, समय, एहसास और शाबाशियां- प्रशंसाएँ..!!
_ मैं ऐसे दिन का हकदार हूं, जिसमें किसी समस्या का सामना न करना पड़े..कोई समाधान न ढूंढना पड़े.!!
_ मैं जैसा हूँ वैसा कोई मिलता ही नहीं ; लोग वही मिलते हैं जैसे वो होते हैं.!!
_ मैं उन लोगों में से हूँ, जिसे आप दोबारा हासिल नहीं कर सकते हैँ.!!
_ मेरे लिए किसी को पूरे दिल से मानना मुश्किल है, मैं बस अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनता हूँ.!!
— तू तो बस इतनी सी कृपा करना कि.. किसी के जीवन में कभी भी बोझ कर न रहूं,
_ जब भी बोझ बनूँ, उससे पहले ही उनके जीवन से हमेशा के लिए दूर कर देना.!!
2. — “अलग हूँ गलत नहीं !!” _ मेरे इनर सर्कल में कोई आसानी से दाख़िल नहीं हो सकता, _ पर अगर कोई हो गया क्लोज़, तो कम से कम मेरी तरफ़ से दूर नहीं होंगे. _ जो हैं, वे रहेंगे, जब तक ख़ुद न दूर हों.
— मैं कभी भी किसी की निजी ज़िंदगी में दख़ल नहीं देता, क्योंकि हर इंसान का अपना एक स्पेस होता है ..जो सिर्फ और सिर्फ उसका होता है.!!
— लोगों के समझने से क्या होता है..मैं क्या हूँ मैं जानता हूँ और वो जानता है … _ कहने दीजिए ‘लोगों का काम है कहना’ ..मेरा जन्म लोगों को खुश करने के लिए नहीं हुआ है.!!
— मेरे शब्दो को वो नही समझेंगे, जिसके लिए वो कहे या लिखे गए हैं, बल्कि वो लोग समझेंगे.. जो उस दौर से गुजरे हैं.. जिनसे मैं गुजरा हूँ…!
_ अपनी मेंटल हेल्थ और Peace के ऊपर किसी को नहीं रखना, अगर कोई भी मेरी जिंदगी के Peace के Cost के ऊपर आ रहे हैं तो.. मुझे नहीं चाहिए.!!
3. — मैं न तो अपनी गलतियाँ स्वीकार करने में झिझकता हूँ और न ही अज्ञानता स्वीकार करने में.. _ कोशिश करता हूं कि पुरानी गलतियां दोबारा न दोहराऊं. _ ‘नया सीखने को हमेशा तैयार रहता हूँ.’ [I am a fast learner.]
4. — अपडेट रहने की सनक नहीं है. _ इसलिये बहुत किफ़ायत में बहुत कुछ किया जा सकता है, यह मानता हूँ. _ कुछ भी बहुत महँगा, ब्रांडेड नहीं मिलेगा, न ही हर गैजेट, इक्विपमेंट का लेटेस्ट मॉडल. _ जो चीज़ जब तक सही काम दे रही, बस अपडेट करने के लिये नहीं बदल देता.
5. — ख़ूबसूरत चीज़ों को देखकर ख़ुश होता हूँ, तारीफ़ करता हूँ, आगे बढ़ जाता हूँ. _ यह मेरे पास भी होना चाहिये ..या इसके पास है तो अब मुझे भी लेना होगा, _ ऐसी इच्छा नहीं पनपती दिल में तो दिमाग़ में सुकून रहता है.
6. — वक़्त से पहले, क़िस्मत से ज़्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता, यह मानता हूँ, _ जो अपना है, मिल ही जाएगा, कोई छीन नहीं सकता.. _ और जिसके पास जो है, नसीब है, यह सोचकर तसल्ली रहती है, सुकून रहता है.
7. — समझदार लोग किसी पर तब तक भरोसा नहीं करते, जब तक वे यक़ीन न दिला दें कि भरोसे के लायक़ हैं, _ लेकिन मैं सबको शक की नज़र से देखता हूँ, _ मैं आप पर भरोसा कर लूँगा, जब आप यक़ीन दिला दें कि आप भरोसे के लायक़ हैं. _ फाइनैंशली, इमोशनली बहुत चोट खाई है इस कारण.. _ लेकिन आगे भी मुझमें इसमें सुधार की गुंजाइश दिखती नहीं..
8. — apology accepted, access denied मोड पर हूँ. _ zero tolerance for shit, और ख़ुद को एक्सप्लेन करना भी बन्द कर दिया है. _ जो हूँ, जैसा हूँ, सामने हूँ. leave it or take it.
— अब मैंने स्वयं को ऐसा बना लिया है जहाँ से कोई भी मेरे सुख या दुःख का कारण नहीं बन सकेगा, बाह्य वातावरण में चाहे जो भी हो,
_ किन्तु मेरे अंदर क्या मुझे अनुभव करना है.. उसकी प्रकृति सिर्फ मैं तय करूंगा…!
9. — I am a patient listener. _ मैं बिन रोक-टोक बहुत धैर्य से सामने वाले की पूरी बात सुन सकता हूँ. _ जजमेंटल नहीं हूँ, फ़ालतू की मोरैलिटी [नैतिकता] के फेर में पड़ना छोड़ दिया है.
— मैं क्या हूं, मैं ऐसा क्युं हूं, अब मुझे किसी के आगे एक्सप्लेन नहीं करना,, मैं आपको सही लगता हूं अच्छी बात है अगर मैं आपको सही नहीं लगता.. उससे भी अच्छी बात है.!!
10. — How i want to live.
मुझे याद है कि मैं कैसे जीना चाहता हूं और इसके लिए एक ईमानदार प्रयास करता हूँ,
_ मैं अपना सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए अपना सब कुछ दे रहा हूं.!!
_ मुझे बस इतना करना है कि मैं आगे बढ़ूं और वही करूं.. जो मैं महसूस करता हूं..
– मैं हवा को, संगीत को सुनता हूं, आकाश, नदियों, पक्षियों को देखता हूं और खूब नाचता हूं.
– मेरी सबसे अच्छी बात यह है कि मेरे बाहर और मेरे अंदर कोई अंतर नहीं है.
– बाहर और भीतर दोनों जगह एक ही चीज महसूस करने के लिए मैंने बहुत मेहनत की है.
– इधर तो एक ही मसला है–जो अंदर है, वो बाहर है…अपने के नाम पर अपना कुछ भी नहीं..!!
_ मैं ऐसी स्थिति में पहुँच गया हूँ.. जहाँ मैं जो कुछ भी करता हूँ, उसका स्वामी मैं हूँ.
_ मैं वही करता हूँ जो मैं महसूस करता हूँ और वही कहता हूँ जो मेरे दिल में है
_मैं इसका भरपूर आनंद उठाता हूं और अंदर से सुंदर महसूस करता हूँ.
_ बल्कि सबों के भीतर की बेचैनी को शब्द देता हूँ.!!
_ जो सच में [Deserve] करता हो..!!
_ पर सामाजिकता के चलते मुझे अपने को चिंता में निमग्न दिखाना भी आवश्यक होता है.!!
_ आराम बड़ी चीज है मुंह ढक कर सोएं.!!
_ मैं जहाँ से गुजरता हूँ.. वही मुझे नशीला बना देता है.!!
_ ज़िन्दगी की वास्तविक आज़ादी यहीं है, जहां तुम भीतर से भी आज़ाद रहो..
_ भीतर से “खाली” हो जाना, “मर” जाना नहीं होता.!!
_ आख़िर क्यों हो वह इसके, उसके या आपकी तरह..
_ वह अपनी तरह है, क्या यह उसकी ख़ासियत नहीं ?
_ वह अपनी तरह रहे, क्या यह ज़रूरी नहीं ?
_ इस दुनिया में किसी की तरह हो जाना बहुत आसान है..
_ लेकिन किसी से सीखना और सीखते हुए अपनी तरह होना बहुत मुश्किल.!!
_ लोगों को पसंद है जी हुजूरिया… मेरी बातें कहां कोई, हर कोई सह पाएगा.!!
_ फिर वह कोई हि क्यों ना हो…. मैं ऐसा ही हूँ..!!
_ नजदीकियां बढने से लोग आपसे अपेक्षा [Expectation] रखने लगते हैं
_ और फिर अपनापन कुछ देर बाद बोझिल लगने लगता है,
_ नजदीकियां न होने से दूरियां होने की भी संभावनाएं नहीं रहतीं.!!
_ जबतक अंतर्मन स्वीकृति न दे तब तक मैं किसी के पास भी नहीं फटकता,
_ अब इसे खूबी समझो या खराबी.. पर मैं ऐसा ही हूँ….!
_ इस दुनियाँ में जीवन व्यतीत करने के लिए मैंने एक आवरण बना लिया है,
_ उसके पीछे दुःख, उदासी, वेदना, कष्ट को बखूबी तरीके से छिपाने की कोशिश करता हूँ और अन्तत: सफल भी होता हूँ,
_ क्योंकि इस दुनियाँ को फरेब देखने की आदत लग चुकी है…!
_ मैं चाहता हूं कि लोग मुझे न समझें, मैं नहीं चाहता लोगों के सामने अच्छा बनके रहना, _ मैं कतई नहीं चाहता कि लोग मेरे अच्छाईयों को जाने..
_ मैं हमेशा लोगों के सामने छोटा बन के रहना चाहता हूं,
_ क्योंकि मैं दूसरों के सामने से ज्यादा खुद के सामने बेहतर बनना ज्यादा बेहतर समझता हूं.!!
_ जब जवाब हाँ होता है, चाहे थोड़ा सा ही क्यों न हो, तो मुझे पता है कि मैं सही रास्ते पर चल रहा हूँ.
_ आज़ादी दुनिया को समझाने में नहीं है… “आज़ादी खुद के साथ शांति से रहने में है”
_ मैंने बार-बार यह देखा है कि चुप रहना कमज़ोरी नहीं—यह ताक़त है.
_ जब मैं बहस करना या खुद को सही ठहराना बंद कर देता हूँ, तो खामोशी मेरे लिए बोलती है.
_ मैं अब कुछ साबित करने के लिए नहीं जीता.
_ मुझे पता है कि यही मेरा इरादा है और अगर दूसरा इसे नहीं देख पा रहा है, तो मैं चाहे कितनी भी कोशिश कर लूँ, मैं उसे यह नहीं दिखा पाऊँगा.
_ मैं किसी को यह समझाने की कोशिश नहीं करता कि मैं अच्छा हूँ.
_ मेरा सच कोई विज्ञापन नहीं, एक खुशबू है—चाहे महसूस हो या न हो.!!
_ बस इतना समझ लीजिए कि.. हर बात टालकर दूर हो जाना ‘मेरी आदत में शुमार है.!’
_ उस पेड़ के पास यह सोचने तक का अधिकार नही होता कि उसने क्या पाया..
_ क्योंकि उसकी नियति में कुछ भी पाना है ही नही…!
_ अध्यात्म पथ का पथिक किसी की समझ का मोहताज नहीं होता, क्योंकि उसे खुद ही खुद को समझना जरूरी होता है.!!
_ शायद मैं एक ही पैटर्न पर चलते-चलते थक गया था.
_ अंदर की आवाज़ों को कभी शब्द नहीं दिए.
_ क्योंकि अंदर की आवाज़ों का कोई जिम्मेदार नहीं कि किसी को दोष दूं.
_ शायद इसे ही खुद से प्यार करना कहते हैं,,, बाहरी चीज़ों में न उलझना..
_ कई वर्षों के बाद मुझे कुछ नया समझ में आने लगा.
_ जो इंसान के दुख और उसके मन को आजादी दे पाए.
_ नई विचारधारा और बस चलते जाना है.
_ मैं ज़्यादा बोलना नहीं जानता लेकिन जो भी कहता हूँ दिल से कहता हूँ.!!
_ मुझे महसूस हो जाता है कि कौन वास्तविक है.!!
_ मैं ऐसे लोगों से दूर ही रहता हूं जिनकी ऊर्जा मुझसे मिलती–जुलती बिल्कुल भी नहीं,
_ क्योंकि वे मुझे नहीं समझ पाएंगे और मैं उन्हें समझा नहीं पाऊंगा..
_ क्योंकि उन्हें समझाने के लिए मुझे उनके लेवल में आना पड़ेगा, और मैं उनके लेवल पर नहीं उतर सकता,
_ क्योंकि मेरी योग्यता और पात्रता [Qualification and Eligibility] उस लेवल की है ही नहीं.!
_ मैं खुद को बेहतर बनाने में लगा हुआ हूँ.!!
_ मैं इसकी भाषा नहीं समझता, यह मेरी खामोशी नहीं समझती.!!
_ अब मुझ पर बाह्य परिस्थितियों का असर कम होता है.!!
_ आज तक खुद को कुछ नहीं पाया …बस अपनी presence देता हूं – इसके इलावा मुझे कुछ भी नहीं पता.!!
_ मुझे लोगों से इतना खुलकर बात करने का पछतावा है.
_ मुझे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि सिर्फ़ एक इंसान के सामने यह दिखाना कभी अच्छा नहीं होता कि आप पीड़ित- कमज़ोर हैं.
_ क्योंकि सालों से मैं दुनिया से अनजान था कि लोग भरोसे के लायक नहीं हैं..
_ या दूसरों को चोट पहुँचाने से पहले मैं कितना सोचता हूँ, यह नहीं सोचते.
_ आजकल लोग बस यही करते हैं.!!
_ लोग मेरी समझ को छीनने की कोशिश कर सकते हैं,
_ पर मेरी अंतरात्मा से निकली रोशनी— कभी कोई छीन नहीं सकता”
_ दुनिया हमें उलझाकर हमारी समझ, हमारी स्पष्टता छीन लेना चाहती है, लेकिन मेरी सच्चाई मेरी आत्मा से जुड़ी है—वह कोई छीन नहीं सकता.!!
_ ये सवाल अतीत के जीवन को सामने ला देता है.
_ फिर यह भी कि.. जो चाहता था.. उसमें मेरी चाह कितनी थी ?
_ मेरे ख़ुद के विचार, इच्छाएं कैसे थे..
_ स्कूल ख़त्म होते-होते डरने लगा कि.. जीवन में कुछ कर भी पाऊंगा कि नहीं,,
_ कुछ ऐसा.. जो ‘अर्थवान’ हो.
_ कुछ ऐसा.. जिससे सामाजिक स्वीकार्यता मिले.
_ धीरे-धीरे मन ने एक विद्रोही तेवर अख्तियार कर लिया.
_ सवाल आया कि.. मैं क्या करना चाहता हूँ ?
_ भीतर से बहुत स्पष्ट तो नहीं, पर जवाब मिला..
_ जो और लोग कर रहे हैं.. वो नहीं करना चाहता हूँ.
_ पर बहुत आश्वस्त नहीं था..
_ ज़हन में डर था कि क्या होगा..
_ क्या होगा का जवाब जानने बहोत जगह भटका..
_ सोचा कहीं तो पनाह मिलेगी..!
_ हर सुबह इस इच्छा के साथ उठता था, हर रात आशंका के साथ सोता था कि.. आगे क्या..!
_ मुझे गहरा अँधेरा दिखता था.!
_ मेरी चिंता यह थी कि.. इस अँधेरे को ही लोग रोशनी बताते थे..!!
_ खुद को तलाश करता फ़िर रहा हूं मैं
_ घर मे ढूंढता हूँ.. नहीं मिलता मैं..
_ आईने में नज़र नही आता हूं मैं..
_ बाहर भीड़ में खो जाता हूँ मैं..
_ बस भटक रहा हूँ.. तलाश रहा हूँ.. ‘ख़ुद को मैं’
_ मैं तो कहूँगा, आप मेरे इधर हेरो भी नहीं, यही आपका मेरे ऊपर उपकार रहेगा.
_ मैं आपकी सीमाओं में नहीं बँधा हूँ.
_ आप बेवजह ही मुझसे कोई लिबर्टी नहीं ले सकते.
_ मुझे खुशी है मैंने “मानसिक विकृति की नुमाइश” करने वाले लोगों से ठीक-ठाक दूरी बनाई.
_ मुझसे मिलना है या मेरा आकलन करना है तो रू-ब-रू मिलो.!!
_ एकाध दिन परेशान रहने के बाद खुद से कहता हूं, ‘तुम तो दूसरों की समस्याएं सुलझाने का दावा करते हो, फिर अपनी क्यों नहीं सुलझा सकते ?’
_ अपनी यह बात सुन कर मुझे फौरन कोई न कोई हल सूझ जाता है और बेचैन मन शांत हो जाता है.
_ खुद की काउंसलिंग भी बहुत ज़रूरी है.
_ दूसरों को समझाने के साथ-साथ खुद को भी समझाते रहना चाहिए.!!
_ कभी सुनना.. उन्होंने क्या क्या कीमत चुकाई है.!!
_ हाँ मैं अपनी और से परवाह जरूर करूँगा, ये जरूर वादा करता हूँ..!!
_ वही सारी समस्या की जड़ है.. वो हमसे हमारा ही परिचय नहीं होने देता.!!
_ मैं परफेक्ट नहीं हूँ, लेकिन मैं सोचता हूँ, महसूस करता हूँ, बदलने की चेष्टा करता हूँ – और यही मेरी खूबसूरती है.!!
_ मै यहां अपने लिए आया हूं दुनिया को खुश करने नहीं.!!
_ और जैसा मैं हूँ, वैसा आप सोच भी नहीं सकते.!!
_ इधर नहीं लगता तो उधर लगा लेता हूँ.!!
_(फूल जितने खूबसूरत पृथ्वी का सौंदर्य बढ़ाते हुए लगते हैं,
इतने ख़ूबसूरत वो टूटकर, मुरझाकर नहीं लगते.)
_ जब आपको कोई फूल अच्छा लगता है तो आप उसे तोड़ लेते हो.
_ जब आप किसी फूल से प्यार करते हैं, तो आप उसे पानी देते हो.
What is the difference between like and love? When you like a flower, you pluck it. When you love a flower, you water it.
_ जिससे आपका कोई वास्ता न हो,
_ उस बात पे टोक के उन्हें परेशान न करें तो..
_ यकीन मानीये लोग आपको पसंद करेंगे और आपका सम्मान भी करेंगे,
_ ऐसे लोगों का सम्मान करना चाहिए..
_जो अपने काम से काम रखते हैं,
_ किसी को राह चलते छेड़ नही करते…!!
_ कभी किन्हीं वजहों से ज़िंदगी हमें स्लो डाउन कर देती है.
_ इतना स्लो डाउन कि ‘मैं हूँ भी’ अक्सर यह एहसास भी मुझसे छूटने लगता है.
_ दिन पर दिन, हफ्ते दर हफ्ते, महीनों पे महीने बस बीतते जाते हैं;
_ ऐसे मौसम, ऐसे हालात ज़िंदगी में ..कोई नई बात नहीं रह जाती है,
_ ऐसे में शरीर भी साथ नहीं देता, उसके लिए भी कड़ा संघर्ष करना पड़ता है.
— पर बात यहाँ यह सब नहीं है.
_ बात यह सब है कि ऐसे में किया किया जाए !
_ दो रास्ते हैं !!
_ या तो स्लो डाउन होने के साथ आराम से परास्त होकर खुद को ज़िंदा लाश सा होने दिया जाए..
_ या फिर जितना शरीर और मन से बने उतना काम किया जाए “कि ज़िंदा होने का एहसास बचा रहे”
_ शरीर में ज़्यादा आने-जाने की, बाहर निकलने की जान ना भी हो, तब भी बीच-बीच में जितना काम उठाया जा सके.. उठाना चाहिए.
_ पर अगर मैं सारी बातें सबकी मान लूंगा.. “तो ठीक जब होऊँगा, तब होऊँगा” पर मर यक़ीनन जाऊँगा.
_ दर्द हर वक़्त बना ही रहता है और बार-बार बिल्कुल सब कुछ बंद करना पड़ता है,
_ पर अब सोचा है जितना हो सकेगा.. उतना फिर से किताबों की तरफ़, पढ़ने की तरफ़, घूमने की तरफ लौटूँगा..!!
— जिसने ज़िंदगी भर मेहनत की हो.. उसको आराम यूँ भी रास नहीं आता.
_ आराम, और बीमार करने लगता है.
_ इसलिए इतना स्लो डाउन होना ही नहीं है कि.. “भूल ही जाऊँ कि ज़िंदा भी हूँ”
_ बस बात सिर्फ इतनी करनी है कि अब कुछ भी उतना ही करूंगा, जितना मन कहेगा.
_ सिर्फ़ उनसे मिलूँगा, जो अच्छे लगते हैं.
_ उतनी ही बात करूंगा, जितनी में दबाव महसूस ना हो.
— हालांकि अपनी फितरत कोई नहीं बदल पाता,
_ चाहे उसकी कीमत मन, देह सब को चुकानी पड़े ..तो वह मैं चुकाता ही रहूँगा,
_ पर उसके बावजूद..
_ “जितना हो सकेगा.. उतना मन का करूँगा”
_ ज़्यादा नहीं तो दो-तीन महीने में एक बार बाहर घूमने निकल सकूँ.
_ “””वो क्या कहते हैं…यूँ ही कट जाएगा सफर ..”””
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– कभी कभी दिल करता है एक लंबे सफ़र पर निकल जाऊं,
_ प्यारे गाने सुनते हुए, रात हो तो चाँद को खामोश बैठे देखते हुए,
_ दिन हो तो खिड़की से पेड़, नदी ,पहाड़ निहारते हुए.
_ उसमे थोड़ी रिमझिम बारिश हो जाये तो क्या बात..
_ ..ठहरें तो बस सड़क किनारे टपरी की चाय पीने या बीच जंगल वाले रास्ते पर..
_ पलाश, रातरानी, या रंग बिरंगे जंगली फूल देखने …
_ बस मन करता है कि बस एक लंबे शांत सफ़र पर जाना है..
सफलता और खुशी दो अलग-अलग चीजें हैं, इन्हें जोड़ने की कोशिश ना करें..
_ व्यक्ति को जीवन में सफल होने के बजाय अपनी तरफ से खुश रहने का ईमानदार प्रयास करना चाहिए,
_ क्योंकि हर व्यक्ति सफल ही इसलिए होना चाहता है ताकि अंत में खुश रह सके..
_यानी हर क्रिया इसलिए की जाती है ताकि प्रतिक्रिया में खुशी प्राप्त हो,
_ सफल होने के बाद भी जीवन में खुशी ना हो तो बड़ी से बड़ी सफलता भी निरर्थक लगती है.
_ मैं घंटों तक कभी किसी से बात नहीं करता,
_ मन बहलाने के लिए किसी से चुगली-चारी नहीं करता,
_ अनावश्यक शॉपिंग करने बाजार जा कर पैसे बर्बाद नहीं करता,
_ मैं रहता हूँ, विकल्प की दुनिया में भी एकनिष्ठ होकर रहना,
_ अपने वक्त को किताबों और गीत संगीत की दुनिया में बिताना,
_ ख़ुद को व्यस्त कर लेना, हल पल कुछ नया सीखते रहना,
_ मुश्किल हालातों का डटकर सामना करना,
_ बुराई में भी अच्छाई को खोजना,
_ बिना कुछ कहे ही औरों के मन की बात को समझ लेना,
मैं सीख रहा हूं हुनर !!
_ सबसे जरूरी चीज है सिनेमा देखना, इसमें चाहे फिल्म हों डॉक्यूमेंट्री हों या बेवसीरीज हों, अगर हो सके दूसरे देशों और दूसरी भाषाओं की फिल्में देखिए, जैसे अभी मलयालम सिनेमा में कमाल का काम हो रहा है. — अच्छे सिनेमा से आपको बहुत सी नई चीजें सीखने को मिलेंगी.
_ सारी पृथ्वी तो घूम नही सकता, न ही समुंदर में जा सकता _ तो ऐसे में एक ही चीज बचती है कि _रुम में बैठकर ये चैनल देख लो.
_ महा सागरों में ऐसे विचित्र ओर अद्भुत जीव है कि कल्पना से बाहर की बात है ;
_ पूरी दुनिया में लोग अलग अलग से ढंग से जी रहे हैं.!!
_ धरती पर या पानी मे या हवा में न जाने कितने अनगिनत जीव और लोग कितनी तरह से जी रहे हैं ; _ ये सोचकर ही मैं रोमांचित हो उठता हूँ..!!
_ पेड़ पौधों की चालाकियां ओर छोटी चींटी की समझदारी का फिर मछलियों की बुद्धि ! _ ये सब देखकर मैं अवाक् रह जाता हूँ.!!!
_ मुझे लगता है कि ये तीन चार चेनल ही देख लो तो “जीवन क्या है” समझ आ जाएगा..
_ स्पेस में ग्रह हो या फिर महा सागरों के विशाल या छोटे जीव ! और लोग ____ सब एक माला में जुड़े हुए हैं.
_ये सारा अस्तित्व [ Existence ] एक दूसरे की सांस लेकर जी रहा है,
_ सबका जीवन जुड़ा है आपस में.!!
_ और कहीं कोई एक जीवन बिगड़ता है तो _उसका प्रभाव सारे eco सिस्टम पर पड़ता है.!
_पर मनुष्य इतना बेहोश है कि _मनुष्यता ही ताक पर रखी हो _तब भी आराम से सोता है;
– फिर अन्य जीवों की फिक्र कौन करे..
_ “सच मे मूर्छित है व्यक्ति”
– इतनी बेहोशी भरा जीवन है कि “कब होश आएगा नहीं पता..”
_ जब कोई मुझे अपने दुख सुनाता है तो मुझे समझ ही ना आता.. मुझे रिएक्ट क्या करना होता है.
_ मै बस सुनता हूं और सुनाने वाला बंदे को ये लगने लगता है कि मै उसकी बातों मे इंटरेस्ट नहीं ले रहा.. जबकि ऐसा नही है.
_ दरअसल मुझे सहानुभूति भी देना नहीं आता.
_ मुझे समझ नही आता कि.. क्या बोलूं कि इन्हें लगे ..मै उनके साथ हूं.
_ पर बोलने से पहले ही मन मे संशय हो जाता है ..पता नहीं अगले का क्या रिएक्ट होगा.
_ मुझे तो अपने दुख पर भी कोई सहानुभूति नही पसंद..
_ कोई देता भी है तो.. मै खुद को कमजोर फील करने लगता हूं और ये मुझे बिल्कुल पसंद नही.
_ मै बस अपनी संवेदनाओं का ठीकरा खुद पर फोड़ता हूं.
_ मुझे व्यक्तिगत संबंध समझ नहीं आते अब, क्योंकि मानवता कहीं बहुत दूर जा चुकी..
_ “ऐसा ही हूं मैं”
_ परन्तु मै आपके लिए किसी भी चाँद तारें जैसी अंतरिक्ष या अन्य किसी भौतिक असाध्य वस्तु को ले आने का दावा नहीं कर सकता ;
_ मुझे अगर मेरी सादगी के साथ अपना सको तो अपनाओ.!!
_ मै जहाँ भी हूँ ‘वही हूँ’.. जो मै रियल में हूँ,
_ आजतक मुझे इससे कोई इम्ब्रेसिंग नहीं हुई है.
_ क्योंकि ? ये मेरी रियलिटी है.
_ किसी और की वजह से गिल्ट मे मत जियो, बेखौफ़ मुस्कराते हुए अपने बेसिक पर बने रहो.!!
_ इसलिए मैं सबसे अलग, सबसे विचित्र हूँ.!!
_ मैंने बहुत कुछ सीखा है, बढ़ा हूं, और समय और अनुभव के द्वारा जिन बदलावों का मैं हिस्सा बना हूं, वही मेरी पहचान बन गए हैं.
_ अब मुझे खुद को किसी के सामने समझाने की जरूरत नहीं महसूस होती.
_ अगर कोई मेरे बारे में राय रखता है—चाहे वह अच्छी हो या बुरी—तो उसे रखे.
_ मैं अपनी ऊर्जा उन लोगों को साबित करने में बर्बाद नहीं करूंगा.. जिन्होंने पहले ही अपना फैसला कर लिया है.
_ मैंने उन लोगों से बहस करना छोड़ दिया है.. जो मेरी ऊर्जा के लायक नहीं हैं.
_ उन्हें बात करने दो,, उन्हें अनुमान लगाने दो,, मुझे कुछ साबित नहीं करना है.
_ मैं अभी भी उन लोगों की मौजूदगी की कद्र करता हूं.. जो मेरी जिंदगी में मायने रखते हैं, लेकिन अब मैं किसी से यह नहीं कहता कि रुक जाए.
_ अगर कोई जाने का निर्णय लेता है, तो मैं दरवाजा खुला छोड़ देता हूं.
_ मैं जीवन से जो मिला है, उसकी सराहना करता हूं, और अब मैं उससे अधिक नहीं मांगता.. जो मेरे लिए लिखा गया है.
_ मैं उन लोगों के लिए हूं.. जिन्हें मेरी जरूरत है, लेकिन मैं अपनी मौजूदगी को उन जगहों पर नहीं थोपता.. जहां मुझे होना चाहिए.
_ मैं दयालु हूं, लेकिन अब मैं भोला नहीं हूं.
_ मैं अपना विश्वास देता हूं, लेकिन अब किसी को इसे गलत इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दूंगा.
_ मैंने अपनी शांति की रक्षा करना सीख लिया है.
_ मैं खुद को किसी पर नहीं थोपता, और मैं अपनी राय को अपने तक ही रखता हूं.
_ कुछ लड़ाइयाँ लड़ने के लायक नहीं होतीं.
_ कुछ लोग पीछा करने के लायक नहीं होते.
— देखिए, मैंने विकास किया है. मैंने खुद को बदला है..
_ और पहली बार, बहुत समय बाद—यह यात्रा अब मेरे बारे में है..!!
_ जैसे भीतर कोई और है, बाहर कोई और..
_ सोचना भी वैसा नहीं होता.. जैसा होना चाहिए..
_ और फिर, धीरे-धीरे मेरे असली “मैं” और मेरे कहे गए शब्दों के बीच एक अंधेरी-गहरी खाई बनती जाती है,
_ जिसमें गिरते हैं मेरे कुछ अधूरे सच, कुछ अनकहे सवाल, और कुछ ऐसे जवाब जिन्हें मैं कभी दे नहीं पाया..!!
_ अब ये दुनिया बेरंग सी लगती है और इस वजह से खोजता हूँ स्वयं को स्वयं में.!!
_ मैं जो सोचता हूँ — वो अक्सर चुप रह जाता है,
_ जैसे मन की किसी पुरानी तह में खुद को समेटे बैठा हो.
_ मैं जो बोलता हूँ — वो कभी-कभी इतना अलग होता है,
_ कि खुद मेरी ही आवाज़ मुझे परायी लगती है.
_ मैं जो लिखता हूँ — वो सुंदर तो लगता है, पर सच्चा नहीं लगता.
_ जैसे मैं धीरे-धीरे — अपने शब्दों से दूर होता जा रहा हूँ,
_ जैसे मैं और मेरी आत्मा.. दो किनारों पर बैठकर सिर्फ चुप्पी साझा कर रहे हों.
_ बीच में जो खाई है — वहीं गिरते हैं कुछ अधूरे सच, कुछ न बोले गए सवाल,
और कुछ ऐसे जवाब… जो शायद मैं कभी दे ही नहीं पाऊँगा.
> “शब्दों से बाहर जो मैं हूँ, वही शायद मेरा असली घर है..”
_ मेरा स्थान कोई ऐसा स्थान नहीं है _ जहाँ आप अपनी मनोकामना पूरी करने या सुख-सुविधा के लिए आ सको.
_ मेरा स्थान केवल आपको अधिक जागरूक, सतर्क बनने में मदद करने के लिए मौजूद है, ताकि आप स्वयं के लिए एक प्रकाश बन सकें.
_ मेरे पास देने के लिए बहुत कुछ है ; जितना आप सोचते हैं उससे कहीं अधिक _आप एक जगह से प्राप्त कर सकते हैं.
_ यदि आप कभी यहां हो तो, चौकस रहो, और ज्ञान बटोरो ;
_ आप मेरे शब्दों से कहीं अधिक अनुभव करेंगे..
_ जीना दुनिया की सबसे नायाब चीज है ; _ज्यादातर लोग बस जिंदा हैं.!!
_ कदम दर कदम, अपने सुधार से, _आप देखेंगे कि आपका जीवन कैसे बेहतर “और बेहतर होता जाता है..”.!!
_ ये मेरा प्रारब्ध ही है.. जो मुझको फंसाके रखा है.. अभी तक यहां पे,
_ प्रारब्ध पूरा हो जाए एक बार.. फिर करते रहना छल कपट धोखाधड़ी..
_ मैं तो चला जाऊंगा अपने घर.!!
_ कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे मैं किसी और दिशा में जा रहा हूं – एक शांत, गहरी और सत्य की दिशा में – लेकिन मेरे आस-पास के लोग वही पुरानी दुनिया में ही फंसे हुए हैं.
_ मैं झूठ नहीं बोल पाता, लेकिन यहां हर व्यवहार में नाटक है.
_ मैं अंतर-मौन में विश्राम चाहता हूं, लेकिन यहां सब कुछ शब्द और दिखावे से भरा है.
_ मैं विश्वास और दयाभाव लेकर चलता हूं, लेकिन सामने से द्वेष और इरादे का सामना होता है.
_ मुझे सबके मध्य में रहते हुए भी अपनी शांति और सत्य में स्थिर रहने की शक्ति दे.!!
_ शुरूआत में ये सब संभालना कठिन था.
_ कभी गुस्सा आया, कभी तन्हापन महसूस हुआ.
_ लगा जैसा गलत जगह आ गया हूं.
_ पर फिर समझा..
🌼 _ ये सफर मेरे लिए है, सबके लिए नहीं..
_ सभी अपनी जगह सही हैं, बस उनका समय अभी नहीं आया.
_ मैं अब किसी को बदलने की कोशिश नहीं करता.
_ मैं सिर्फ खुद को और गहरा करता हूं.
_ जब मैं अपने सत्य में स्थिर हो जाता हूँ,
_ तो वो लोग भी धीरे-धीरे बदलने लगते हैं – बिना बोले..!
🌱 मैं एक बीज हूं. पहले अँधेरा, फिर तन्हाई, और फिर उदय.
_ और शायद यही है जीवन का असली रूप – अपनी रोशनी में खिलना, बिना किसी शोर के.!!
_ ये परिवर्तन पहले तन्हा बनाता है, फिर मजबूत और अंत में आपको सबके लिए रोशनी बना देता है.!!
🌿 1. “मैं खुद को ढूंढ रहा हूं, और सब मुझे खोया हुआ कह रहे हैं”
2. “मैं चुप हो गया हूं, इसलिए लोग समझने लगे हैं कि कुछ तो गलत है”
3. “जब अंदर प्रकाश जगता है, तो बाहर का अंधेरा और ज़्यादा दिखाई देने लगता है”
4. “जो मुझे समझ नहीं पाये, उनके लिए मैं बदल गया हूं ; _ जो समझे, उनके लिए मैं निखर गया हूं”
5. “मेरा सफ़र अंदर की तरफ है, इसलिए लोग मुझे दूर होता हुआ महसूस करते हैं”
6. “मैं सच बोलता हूं, इसलिए मुझे अकेला रहना पड़ता है”
7. “मैंने व्यवहार में सहजता ढूंढी, लोगों ने मुझे असहज कह दिया”
8. “मैं रोशनी हो गया हूं, इसलिए मुझे अँधेरे पसंद नहीं आते”
_ आज अचानक.. अपनी ही याद आ गयी…क्या हुआ करता था मैं..”
_ मुझे अपने पुराने रूप में रहना बिल्कुल पसंद नहीं, वह एक दुःखी व्यक्ति था.!!
_ कभी-कभी पुराना रूप याद आकर मुझे झकझोर देता है..
_ वह मुझे यह दिखाता है कि.. मैंने कितनी दूर की यात्रा तय कर ली है.
_ वह दुःखी स्वरूप आज भी भीतर कहीं छाया-सा मौजूद हो सकता है,
_ लेकिन वह मुझे यह भी याद दिलाता है कि.. अब मैं उससे मुक्त हो चुका हूँ..
_ अपने बदल चुके स्वरूप को देखकर, मन को एक गहरी राहत मिलती है —
_ पुराने दुखों को छोड़ देने से जीवन में नई चमक आती है”
_ “मैं अब वही नहीं हूँ”
_ यहाँ मेरे होने का कोई निशान नहीं है..
_ मैंने अपने सपनों की सारी धूल समेट कर फेंक दी है और अपने आँसू पोंछ दिए हैं.
_ कोई नहीं कह सकता कि.. मैं यहाँ था.
_ नहीं, मैं यहाँ बिल्कुल नहीं था,
_ मैं ऐसे दूर हूँ.. जैसे मैं यहाँ कभी था ही नहीं..
_ इस उम्मीद में कि.. मैं कोई निशान पीछे नहीं छोड़ गया हूँ.
_ इतने सालों में, मुझे बस एक ही चिंता थी कि.. मैं हर चीज़ की चिंता छोड़ दूँ.
_ मैं खुद के साथ जी सकता हूँ, पहले जैसा खोया हुआ.!!
मैं ऐसे खो गया हूँ.. जैसे मेरा कभी अस्तित्व ही नहीं था..
_ जो मुझे मेरे भीतर से, उस अस्तित्व से जोड़े रखता है..
_ और एक ऐसी यात्रा है.. जो आंतरिक और बाह्य को मिला देती है..
_ और अंततः यह परत पिघल जाती है और आंतरिक और बाह्य कुछ भी नहीं रह जाता.. _ और फिर यात्रा समाप्त हो जाती है.. और मुझे घर जैसा एहसास होता है.
_ और फिर अगली सुबह, मैं संघर्ष की दुनिया में एक नई यात्रा पर फिर से जागता हूँ.!!