“मैं कौन हूँ” तक पहुँचने के लिए.. – हमें “मेरा कौन है” से होकर गुजरना होगा.!!”
1. _ जो बना हो घर में, वह खा लेता हूँ. न बना हो तो भी कोई प्रॉब्लम नहीं, कुछ भी खा लेता हूँ.
_ मैं जो कर सका, किया : पैसा दिया, भरोसा किया ” जो मेरे हाथ में था, वो मैंने ईमानदारी से किया- अब बाकी सब ‘समय’ और ‘उसके हाथ’ में है.!!
_ अब मुझे केवल तीन जोड़ी कपड़े, कुछ किताबें, एक डायरी-पेन, एक पिट्ठू बैग, एक लैपटॉप और एक मोबाइल चाहिए.
_ मैं उन सभी सामानों से छुटकारा पा लूंगा, जिनका मैं उपयोग नहीं करूँगा..!!
_ मुझे किसी से कुछ भी नहीं लेना है, अपने सामर्थ्य से जीवन को खुशहाल रखना है.!!
_ मैंने अपनी जरूरतें सीमित कर ली हैं, ताकि मैं बीमारी से मुक्त हो सकूं..
_ मैं अब व्यर्थ के सामान नहीं खरीदता, सीमित सामान में ही अपनी जिंदगी जीता हूं.!!
_ भौतिक जीवन की विपदाएँ सहते रहता हूँ, घर में रहता हूँ लेकिन दिल से फ़क़ीर होता हूँ..!!
_ मेरी इच्छाएँ बहुत कम हैं..&_ मैं न तो उन्हें जाने देना चाहता हूं और न ही उन्हें पकड़कर रखना चाहता हूं..!!
_ अब मैं खुद को इतनी वैल्यू देता हूँ कि ख़ुद पर खर्च कर सकूँ – पैसा, समय, एहसास और शाबाशियां- प्रशंसाएँ..!!
_ मैं ऐसे दिन का हकदार हूं, जिसमें किसी समस्या का सामना न करना पड़े..कोई समाधान न ढूंढना पड़े.!!
_ मैं जैसा हूँ वैसा कोई मिलता ही नहीं ; लोग वही मिलते हैं जैसे वो होते हैं.!!
_ मैं उन लोगों में से हूँ, जिसे आप दोबारा हासिल नहीं कर सकते हैँ.!!
— तू तो बस इतनी सी कृपा करना कि.. किसी के जीवन में कभी भी बोझ कर न रहूं,
_ जब भी बोझ बनूँ, उससे पहले ही उनके जीवन से हमेशा के लिए दूर कर देना.!!
2. — “अलग हूँ गलत नहीं !!” _ मेरे इनर सर्कल में कोई आसानी से दाख़िल नहीं हो सकता, _ पर अगर कोई हो गया क्लोज़, तो कम से कम मेरी तरफ़ से दूर नहीं होंगे. _ जो हैं, वे रहेंगे, जब तक ख़ुद न दूर हों.
— मैं कभी भी किसी की निजी ज़िंदगी में दख़ल नहीं देता, क्योंकि हर इंसान का अपना एक स्पेस होता है ..जो सिर्फ और सिर्फ उसका होता है.!!
— लोगों के समझने से क्या होता है..मैं क्या हूँ मैं जानता हूँ और वो जानता है … _ कहने दीजिए ‘लोगों का काम है कहना’ ..मेरा जन्म लोगों को खुश करने के लिए नहीं हुआ है.!!
— मेरे शब्दो को वो नही समझेंगे, जिसके लिए वो कहे या लिखे गए हैं, बल्कि वो लोग समझेंगे.. जो उस दौर से गुजरे हैं.. जिनसे मैं गुजरा हूँ…!
_ अपनी मेंटल हेल्थ और Peace के ऊपर किसी को नहीं रखना, अगर कोई भी मेरी जिंदगी के Peace के Cost के ऊपर आ रहे हैं तो.. मुझे नहीं चाहिए.!!
3. — मैं न तो अपनी गलतियाँ स्वीकार करने में झिझकता हूँ और न ही अज्ञानता स्वीकार करने में.. _ कोशिश करता हूं कि पुरानी गलतियां दोबारा न दोहराऊं. _ ‘नया सीखने को हमेशा तैयार रहता हूँ.’ [I am a fast learner.]
4. — अपडेट रहने की सनक नहीं है. _ इसलिये बहुत किफ़ायत में बहुत कुछ किया जा सकता है, यह मानता हूँ. _ कुछ भी बहुत महँगा, ब्रांडेड नहीं मिलेगा, न ही हर गैजेट, इक्विपमेंट का लेटेस्ट मॉडल. _ जो चीज़ जब तक सही काम दे रही, बस अपडेट करने के लिये नहीं बदल देता.
5. — ख़ूबसूरत चीज़ों को देखकर ख़ुश होता हूँ, तारीफ़ करता हूँ, आगे बढ़ जाता हूँ. _ यह मेरे पास भी होना चाहिये ..या इसके पास है तो अब मुझे भी लेना होगा, _ ऐसी इच्छा नहीं पनपती दिल में तो दिमाग़ में सुकून रहता है.
6. — वक़्त से पहले, क़िस्मत से ज़्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता, यह मानता हूँ, _ जो अपना है, मिल ही जाएगा, कोई छीन नहीं सकता.. _ और जिसके पास जो है, नसीब है, यह सोचकर तसल्ली रहती है, सुकून रहता है.
7. — समझदार लोग किसी पर तब तक भरोसा नहीं करते, जब तक वे यक़ीन न दिला दें कि भरोसे के लायक़ हैं, _ लेकिन मैं सबको शक की नज़र से देखता हूँ, _ मैं आप पर भरोसा कर लूँगा, जब आप यक़ीन दिला दें कि आप भरोसे के लायक़ हैं. _ फाइनैंशली, इमोशनली बहुत चोट खाई है इस कारण.. _ लेकिन आगे भी मुझमें इसमें सुधार की गुंजाइश दिखती नहीं..
8. — apology accepted, access denied मोड पर हूँ. _ zero tolerance for shit, और ख़ुद को एक्सप्लेन करना भी बन्द कर दिया है. _ जो हूँ, जैसा हूँ, सामने हूँ. leave it or take it.
— अब मैंने स्वयं को ऐसा बना लिया है जहाँ से कोई भी मेरे सुख या दुःख का कारण नहीं बन सकेगा, बाह्य वातावरण में चाहे जो भी हो,
_ किन्तु मेरे अंदर क्या मुझे अनुभव करना है.. उसकी प्रकृति सिर्फ मैं तय करूंगा…!
9. — I am a patient listener. _ मैं बिन रोक-टोक बहुत धैर्य से सामने वाले की पूरी बात सुन सकता हूँ. _ जजमेंटल नहीं हूँ, फ़ालतू की मोरैलिटी [नैतिकता] के फेर में पड़ना छोड़ दिया है.
— मैं क्या हूं, मैं ऐसा क्युं हूं, अब मुझे किसी के आगे एक्सप्लेन नहीं करना,, मैं आपको सही लगता हूं अच्छी बात है अगर मैं आपको सही नहीं लगता.. उससे भी अच्छी बात है.!!
10. — How i want to live.
मुझे याद है कि मैं कैसे जीना चाहता हूं और इसके लिए एक ईमानदार प्रयास करता हूँ,
_ मैं अपना सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए अपना सब कुछ दे रहा हूं.!!
_ मुझे बस इतना करना है कि मैं आगे बढ़ूं और वही करूं.. जो मैं महसूस करता हूं..
– मैं हवा को, संगीत को सुनता हूं, आकाश, नदियों, पक्षियों को देखता हूं और खूब नाचता हूं.
– मेरी सबसे अच्छी बात यह है कि मेरे बाहर और मेरे अंदर कोई अंतर नहीं है.
– बाहर और भीतर दोनों जगह एक ही चीज महसूस करने के लिए मैंने बहुत मेहनत की है.
– इधर तो एक ही मसला है–जो अंदर है, वो बाहर है…अपने के नाम पर अपना कुछ भी नहीं..!!
_ मैं ऐसी स्थिति में पहुँच गया हूँ.. जहाँ मैं जो कुछ भी करता हूँ, उसका स्वामी मैं हूँ.
_ मैं वही करता हूँ जो मैं महसूस करता हूँ और वही कहता हूँ जो मेरे दिल में है
_मैं इसका भरपूर आनंद उठाता हूं और अंदर से सुंदर महसूस करता हूँ.
_ बल्कि सबों के भीतर की बेचैनी को शब्द देता हूँ.!!
_ जो सच में [Deserve] करता हो..!!
_ पर सामाजिकता के चलते मुझे अपने को चिंता में निमग्न दिखाना भी आवश्यक होता है.!!
_ आराम बड़ी चीज है मुंह ढक कर सोएं.!!
_ मैं जहाँ से गुजरता हूँ.. वही मुझे नशीला बना देता है.!!
_ ज़िन्दगी की वास्तविक आज़ादी यहीं है, जहां तुम भीतर से भी आज़ाद रहो..
_ भीतर से “खाली” हो जाना, “मर” जाना नहीं होता.!!
_ आख़िर क्यों हो वह इसके, उसके या आपकी तरह..
_ वह अपनी तरह है, क्या यह उसकी ख़ासियत नहीं ?
_ वह अपनी तरह रहे, क्या यह ज़रूरी नहीं ?
_ इस दुनिया में किसी की तरह हो जाना बहुत आसान है..
_ लेकिन किसी से सीखना और सीखते हुए अपनी तरह होना बहुत मुश्किल.!!
_ लोगों को पसंद है जी हुजूरिया… मेरी बातें कहां कोई, हर कोई सह पाएगा.!!
_ फिर वह कोई हि क्यों ना हो…. मैं ऐसा ही हूँ..!!
_ नजदीकियां बढने से लोग आपसे अपेक्षा [Expectation] रखने लगते हैं
_ और फिर अपनापन कुछ देर बाद बोझिल लगने लगता है,
_ नजदीकियां न होने से दूरियां होने की भी संभावनाएं नहीं रहतीं.!!
_ जबतक अंतर्मन स्वीकृति न दे तब तक मैं किसी के पास भी नहीं फटकता,
_ अब इसे खूबी समझो या खराबी.. पर मैं ऐसा ही हूँ….!
_ इस दुनियाँ में जीवन व्यतीत करने के लिए मैंने एक आवरण बना लिया है,
_ उसके पीछे दुःख, उदासी, वेदना, कष्ट को बखूबी तरीके से छिपाने की कोशिश करता हूँ और अन्तत: सफल भी होता हूँ,
_ क्योंकि इस दुनियाँ को फरेब देखने की आदत लग चुकी है…!
_ मैं चाहता हूं कि लोग मुझे न समझें, मैं नहीं चाहता लोगों के सामने अच्छा बनके रहना, _ मैं कतई नहीं चाहता कि लोग मेरे अच्छाईयों को जाने..
_ मैं हमेशा लोगों के सामने छोटा बन के रहना चाहता हूं,
_ क्योंकि मैं दूसरों के सामने से ज्यादा खुद के सामने बेहतर बनना ज्यादा बेहतर समझता हूं.!!
_ उस पेड़ के पास यह सोचने तक का अधिकार नही होता कि उसने क्या पाया..
_ क्योंकि उसकी नियति में कुछ भी पाना है ही नही…!
_ अध्यात्म पथ का पथिक किसी की समझ का मोहताज नहीं होता, क्योंकि उसे खुद ही खुद को समझना जरूरी होता है.!!
_ शायद मैं एक ही पैटर्न पर चलते-चलते थक गया था.
_ अंदर की आवाज़ों को कभी शब्द नहीं दिए.
_ क्योंकि अंदर की आवाज़ों का कोई जिम्मेदार नहीं कि किसी को दोष दूं.
_ शायद इसे ही खुद से प्यार करना कहते हैं,,, बाहरी चीज़ों में न उलझना..
_ कई वर्षों के बाद मुझे कुछ नया समझ में आने लगा.
_ जो इंसान के दुख और उसके मन को आजादी दे पाए.
_ नई विचारधारा और बस चलते जाना है.
_ मैं ज़्यादा बोलना नहीं जानता लेकिन जो भी कहता हूँ दिल से कहता हूँ.!!
_ मुझे महसूस हो जाता है कि कौन वास्तविक है.!!
_ मैं खुद को बेहतर बनाने में लगा हुआ हूँ.!!
_ मैं इसकी भाषा नहीं समझता, यह मेरी खामोशी नहीं समझती.!!
_ अब मुझ पर बाह्य परिस्थितियों का असर कम होता है.!!
_ आज तक खुद को कुछ नहीं पाया …बस अपनी presence देता हूं – इसके इलावा मुझे कुछ भी नहीं पता.!!
_ मुझे लोगों से इतना खुलकर बात करने का पछतावा है.
_ मुझे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि सिर्फ़ एक इंसान के सामने यह दिखाना कभी अच्छा नहीं होता कि आप पीड़ित- कमज़ोर हैं.
_ क्योंकि सालों से मैं दुनिया से अनजान था कि लोग भरोसे के लायक नहीं हैं..
_ या दूसरों को चोट पहुँचाने से पहले मैं कितना सोचता हूँ, यह नहीं सोचते.
_ आजकल लोग बस यही करते हैं.!!
_ ये सवाल अतीत के जीवन को सामने ला देता है.
_ फिर यह भी कि.. जो चाहता था.. उसमें मेरी चाह कितनी थी ?
_ मेरे ख़ुद के विचार, इच्छाएं कैसे थे..
_ स्कूल ख़त्म होते-होते डरने लगा कि.. जीवन में कुछ कर भी पाऊंगा कि नहीं,,
_ कुछ ऐसा.. जो ‘अर्थवान’ हो.
_ कुछ ऐसा.. जिससे सामाजिक स्वीकार्यता मिले.
_ धीरे-धीरे मन ने एक विद्रोही तेवर अख्तियार कर लिया.
_ सवाल आया कि.. मैं क्या करना चाहता हूँ ?
_ भीतर से बहुत स्पष्ट तो नहीं, पर जवाब मिला..
_ जो और लोग कर रहे हैं.. वो नहीं करना चाहता हूँ.
_ पर बहुत आश्वस्त नहीं था..
_ ज़हन में डर था कि क्या होगा..
_ क्या होगा का जवाब जानने बहोत जगह भटका..
_ सोचा कहीं तो पनाह मिलेगी..!
_ हर सुबह इस इच्छा के साथ उठता था, हर रात आशंका के साथ सोता था कि.. आगे क्या..!
_ मुझे गहरा अँधेरा दिखता था.!
_ मेरी चिंता यह थी कि.. इस अँधेरे को ही लोग रोशनी बताते थे..!!
_ खुद को तलाश करता फ़िर रहा हूं मैं
_ घर मे ढूंढता हूँ.. नहीं मिलता मैं..
_ आईने में नज़र नही आता हूं मैं..
_ बाहर भीड़ में खो जाता हूँ मैं..
_ बस भटक रहा हूँ.. तलाश रहा हूँ.. ‘ख़ुद को मैं’
_ मैं तो कहूँगा, आप मेरे इधर हेरो भी नहीं, यही आपका मेरे ऊपर उपकार रहेगा.
_ मैं आपकी सीमाओं में नहीं बँधा हूँ.
_ आप बेवजह ही मुझसे कोई लिबर्टी नहीं ले सकते.
_ मुझे खुशी है मैंने “मानसिक विकृति की नुमाइश” करने वाले लोगों से ठीक-ठाक दूरी बनाई.
_ मुझसे मिलना है या मेरा आकलन करना है तो रू-ब-रू मिलो.!!
_ एकाध दिन परेशान रहने के बाद खुद से कहता हूं, ‘तुम तो दूसरों की समस्याएं सुलझाने का दावा करते हो, फिर अपनी क्यों नहीं सुलझा सकते ?’
_ अपनी यह बात सुन कर मुझे फौरन कोई न कोई हल सूझ जाता है और बेचैन मन शांत हो जाता है.
_ खुद की काउंसलिंग भी बहुत ज़रूरी है.
_ दूसरों को समझाने के साथ-साथ खुद को भी समझाते रहना चाहिए.!!
_ कभी सुनना.. उन्होंने क्या क्या कीमत चुकाई है.!!
_ हाँ मैं अपनी और से परवाह जरूर करूँगा, ये जरूर वादा करता हूँ..!!
_ वही सारी समस्या की जड़ है.. वो हमसे हमारा ही परिचय नहीं होने देता.!!
_ मैं परफेक्ट नहीं हूँ, लेकिन मैं सोचता हूँ, महसूस करता हूँ, बदलने की चेष्टा करता हूँ – और यही मेरी खूबसूरती है.!!
_ मै यहां अपने लिए आया हूं दुनिया को खुश करने नहीं.!!
_ और जैसा मैं हूँ, वैसा आप सोच भी नहीं सकते.!!
_ इधर नहीं लगता तो उधर लगा लेता हूँ.!!
_(फूल जितने खूबसूरत पृथ्वी का सौंदर्य बढ़ाते हुए लगते हैं,
इतने ख़ूबसूरत वो टूटकर, मुरझाकर नहीं लगते.)
_ जब आपको कोई फूल अच्छा लगता है तो आप उसे तोड़ लेते हो.
_ जब आप किसी फूल से प्यार करते हैं, तो आप उसे पानी देते हो.
What is the difference between like and love? When you like a flower, you pluck it. When you love a flower, you water it.
_ जिससे आपका कोई वास्ता न हो,
_ उस बात पे टोक के उन्हें परेशान न करें तो..
_ यकीन मानीये लोग आपको पसंद करेंगे और आपका सम्मान भी करेंगे,
_ ऐसे लोगों का सम्मान करना चाहिए..
_जो अपने काम से काम रखते हैं,
_ किसी को राह चलते छेड़ नही करते…!!
_ कभी किन्हीं वजहों से ज़िंदगी हमें स्लो डाउन कर देती है.
_ इतना स्लो डाउन कि ‘मैं हूँ भी’ अक्सर यह एहसास भी मुझसे छूटने लगता है.
_ दिन पर दिन, हफ्ते दर हफ्ते, महीनों पे महीने बस बीतते जाते हैं;
_ ऐसे मौसम, ऐसे हालात ज़िंदगी में ..कोई नई बात नहीं रह जाती है,
_ ऐसे में शरीर भी साथ नहीं देता, उसके लिए भी कड़ा संघर्ष करना पड़ता है.
— पर बात यहाँ यह सब नहीं है.
_ बात यह सब है कि ऐसे में किया किया जाए !
_ दो रास्ते हैं !!
_ या तो स्लो डाउन होने के साथ आराम से परास्त होकर खुद को ज़िंदा लाश सा होने दिया जाए..
_ या फिर जितना शरीर और मन से बने उतना काम किया जाए “कि ज़िंदा होने का एहसास बचा रहे”
_ शरीर में ज़्यादा आने-जाने की, बाहर निकलने की जान ना भी हो, तब भी बीच-बीच में जितना काम उठाया जा सके.. उठाना चाहिए.
_ पर अगर मैं सारी बातें सबकी मान लूंगा.. “तो ठीक जब होऊँगा, तब होऊँगा” पर मर यक़ीनन जाऊँगा.
_ दर्द हर वक़्त बना ही रहता है और बार-बार बिल्कुल सब कुछ बंद करना पड़ता है,
_ पर अब सोचा है जितना हो सकेगा.. उतना फिर से किताबों की तरफ़, पढ़ने की तरफ़, घूमने की तरफ लौटूँगा..!!
— जिसने ज़िंदगी भर मेहनत की हो.. उसको आराम यूँ भी रास नहीं आता.
_ आराम, और बीमार करने लगता है.
_ इसलिए इतना स्लो डाउन होना ही नहीं है कि.. “भूल ही जाऊँ कि ज़िंदा भी हूँ”
_ बस बात सिर्फ इतनी करनी है कि अब कुछ भी उतना ही करूंगा, जितना मन कहेगा.
_ सिर्फ़ उनसे मिलूँगा, जो अच्छे लगते हैं.
_ उतनी ही बात करूंगा, जितनी में दबाव महसूस ना हो.
— हालांकि अपनी फितरत कोई नहीं बदल पाता,
_ चाहे उसकी कीमत मन, देह सब को चुकानी पड़े ..तो वह मैं चुकाता ही रहूँगा,
_ पर उसके बावजूद..
_ “जितना हो सकेगा.. उतना मन का करूँगा”
_ ज़्यादा नहीं तो दो-तीन महीने में एक बार बाहर घूमने निकल सकूँ.
_ “””वो क्या कहते हैं…यूँ ही कट जाएगा सफर ..”””
—————————————-
– कभी कभी दिल करता है एक लंबे सफ़र पर निकल जाऊं,
_ प्यारे गाने सुनते हुए, रात हो तो चाँद को खामोश बैठे देखते हुए,
_ दिन हो तो खिड़की से पेड़, नदी ,पहाड़ निहारते हुए.
_ उसमे थोड़ी रिमझिम बारिश हो जाये तो क्या बात..
_ ..ठहरें तो बस सड़क किनारे टपरी की चाय पीने या बीच जंगल वाले रास्ते पर..
_ पलाश, रातरानी, या रंग बिरंगे जंगली फूल देखने …
_ बस मन करता है कि बस एक लंबे शांत सफ़र पर जाना है..
सफलता और खुशी दो अलग-अलग चीजें हैं, इन्हें जोड़ने की कोशिश ना करें..
_ व्यक्ति को जीवन में सफल होने के बजाय अपनी तरफ से खुश रहने का ईमानदार प्रयास करना चाहिए,
_ क्योंकि हर व्यक्ति सफल ही इसलिए होना चाहता है ताकि अंत में खुश रह सके..
_यानी हर क्रिया इसलिए की जाती है ताकि प्रतिक्रिया में खुशी प्राप्त हो,
_ सफल होने के बाद भी जीवन में खुशी ना हो तो बड़ी से बड़ी सफलता भी निरर्थक लगती है.
_ मैं घंटों तक कभी किसी से बात नहीं करता,
_ मन बहलाने के लिए किसी से चुगली-चारी नहीं करता,
_ अनावश्यक शॉपिंग करने बाजार जा कर पैसे बर्बाद नहीं करता,
_ मैं रहता हूँ, विकल्प की दुनिया में भी एकनिष्ठ होकर रहना,
_ अपने वक्त को किताबों और गीत संगीत की दुनिया में बिताना,
_ ख़ुद को व्यस्त कर लेना, हल पल कुछ नया सीखते रहना,
_ मुश्किल हालातों का डटकर सामना करना,
_ बुराई में भी अच्छाई को खोजना,
_ बिना कुछ कहे ही औरों के मन की बात को समझ लेना,
मैं सीख रहा हूं हुनर !!
_ सबसे जरूरी चीज है सिनेमा देखना, इसमें चाहे फिल्म हों डॉक्यूमेंट्री हों या बेवसीरीज हों, अगर हो सके दूसरे देशों और दूसरी भाषाओं की फिल्में देखिए, जैसे अभी मलयालम सिनेमा में कमाल का काम हो रहा है. — अच्छे सिनेमा से आपको बहुत सी नई चीजें सीखने को मिलेंगी.
_ सारी पृथ्वी तो घूम नही सकता, न ही समुंदर में जा सकता _ तो ऐसे में एक ही चीज बचती है कि _रुम में बैठकर ये चैनल देख लो.
_ महा सागरों में ऐसे विचित्र ओर अद्भुत जीव है कि कल्पना से बाहर की बात है ;
_ पूरी दुनिया में लोग अलग अलग से ढंग से जी रहे हैं.!!
_ धरती पर या पानी मे या हवा में न जाने कितने अनगिनत जीव और लोग कितनी तरह से जी रहे हैं ; _ ये सोचकर ही मैं रोमांचित हो उठता हूँ..!!
_ पेड़ पौधों की चालाकियां ओर छोटी चींटी की समझदारी का फिर मछलियों की बुद्धि ! _ ये सब देखकर मैं अवाक् रह जाता हूँ.!!!
_ मुझे लगता है कि ये तीन चार चेनल ही देख लो तो “जीवन क्या है” समझ आ जाएगा..
_ स्पेस में ग्रह हो या फिर महा सागरों के विशाल या छोटे जीव ! और लोग ____ सब एक माला में जुड़े हुए हैं.
_ये सारा अस्तित्व [ Existence ] एक दूसरे की सांस लेकर जी रहा है,
_ सबका जीवन जुड़ा है आपस में.!!
_ और कहीं कोई एक जीवन बिगड़ता है तो _उसका प्रभाव सारे eco सिस्टम पर पड़ता है.!
_पर मनुष्य इतना बेहोश है कि _मनुष्यता ही ताक पर रखी हो _तब भी आराम से सोता है;
– फिर अन्य जीवों की फिक्र कौन करे..
_ “सच मे मूर्छित है व्यक्ति”
– इतनी बेहोशी भरा जीवन है कि “कब होश आएगा नहीं पता..”
_ जब कोई मुझे अपने दुख सुनाता है तो मुझे समझ ही ना आता.. मुझे रिएक्ट क्या करना होता है.
_ मै बस सुनता हूं और सुनाने वाला बंदे को ये लगने लगता है कि मै उसकी बातों मे इंटरेस्ट नहीं ले रहा.. जबकि ऐसा नही है.
_ दरअसल मुझे सहानुभूति भी देना नहीं आता.
_ मुझे समझ नही आता कि.. क्या बोलूं कि इन्हें लगे ..मै उनके साथ हूं.
_ पर बोलने से पहले ही मन मे संशय हो जाता है ..पता नहीं अगले का क्या रिएक्ट होगा.
_ मुझे तो अपने दुख पर भी कोई सहानुभूति नही पसंद..
_ कोई देता भी है तो.. मै खुद को कमजोर फील करने लगता हूं और ये मुझे बिल्कुल पसंद नही.
_ मै बस अपनी संवेदनाओं का ठीकरा खुद पर फोड़ता हूं.
_ मुझे व्यक्तिगत संबंध समझ नहीं आते अब, क्योंकि मानवता कहीं बहुत दूर जा चुकी..
_ “ऐसा ही हूं मैं”
_ परन्तु मै आपके लिए किसी भी चाँद तारें जैसी अंतरिक्ष या अन्य किसी भौतिक असाध्य वस्तु को ले आने का दावा नहीं कर सकता ;
_ मुझे अगर मेरी सादगी के साथ अपना सको तो अपनाओ.!!
_ मै जहाँ भी हूँ ‘वही हूँ’.. जो मै रियल में हूँ,
_ आजतक मुझे इससे कोई इम्ब्रेसिंग नहीं हुई है.
_ क्योंकि ? ये मेरी रियलिटी है.
_ किसी और की वजह से गिल्ट मे मत जियो, बेखौफ़ मुस्कराते हुए अपने बेसिक पर बने रहो.!!
_ मैंने बहुत कुछ सीखा है, बढ़ा हूं, और समय और अनुभव के द्वारा जिन बदलावों का मैं हिस्सा बना हूं, वही मेरी पहचान बन गए हैं.
_ अब मुझे खुद को किसी के सामने समझाने की जरूरत नहीं महसूस होती.
_ अगर कोई मेरे बारे में राय रखता है—चाहे वह अच्छी हो या बुरी—तो उसे रखे.
_ मैं अपनी ऊर्जा उन लोगों को साबित करने में बर्बाद नहीं करूंगा.. जिन्होंने पहले ही अपना फैसला कर लिया है.
_ मैंने उन लोगों से बहस करना छोड़ दिया है.. जो मेरी ऊर्जा के लायक नहीं हैं.
_ उन्हें बात करने दो,, उन्हें अनुमान लगाने दो,, मुझे कुछ साबित नहीं करना है.
_ मैं अभी भी उन लोगों की मौजूदगी की कद्र करता हूं.. जो मेरी जिंदगी में मायने रखते हैं, लेकिन अब मैं किसी से यह नहीं कहता कि रुक जाए.
_ अगर कोई जाने का निर्णय लेता है, तो मैं दरवाजा खुला छोड़ देता हूं.
_ मैं जीवन से जो मिला है, उसकी सराहना करता हूं, और अब मैं उससे अधिक नहीं मांगता.. जो मेरे लिए लिखा गया है.
_ मैं उन लोगों के लिए हूं.. जिन्हें मेरी जरूरत है, लेकिन मैं अपनी मौजूदगी को उन जगहों पर नहीं थोपता.. जहां मुझे होना चाहिए.
_ मैं दयालु हूं, लेकिन अब मैं भोला नहीं हूं.
_ मैं अपना विश्वास देता हूं, लेकिन अब किसी को इसे गलत इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दूंगा.
_ मैंने अपनी शांति की रक्षा करना सीख लिया है.
_ मैं खुद को किसी पर नहीं थोपता, और मैं अपनी राय को अपने तक ही रखता हूं.
_ कुछ लड़ाइयाँ लड़ने के लायक नहीं होतीं.
_ कुछ लोग पीछा करने के लायक नहीं होते.
— देखिए, मैंने विकास किया है. मैंने खुद को बदला है..
_ और पहली बार, बहुत समय बाद—यह यात्रा अब मेरे बारे में है..!!
_ जैसे भीतर कोई और है, बाहर कोई और..
_ सोचना भी वैसा नहीं होता.. जैसा होना चाहिए..
_ और फिर, धीरे-धीरे मेरे असली “मैं” और मेरे कहे गए शब्दों के बीच एक अंधेरी-गहरी खाई बनती जाती है,
_ जिसमें गिरते हैं मेरे कुछ अधूरे सच, कुछ अनकहे सवाल, और कुछ ऐसे जवाब जिन्हें मैं कभी दे नहीं पाया..!!
_ मैं जो सोचता हूँ — वो अक्सर चुप रह जाता है,
_ जैसे मन की किसी पुरानी तह में खुद को समेटे बैठा हो.
_ मैं जो बोलता हूँ — वो कभी-कभी इतना अलग होता है,
_ कि खुद मेरी ही आवाज़ मुझे परायी लगती है.
_ मैं जो लिखता हूँ — वो सुंदर तो लगता है, पर सच्चा नहीं लगता.
_ जैसे मैं धीरे-धीरे — अपने शब्दों से दूर होता जा रहा हूँ,
_ जैसे मैं और मेरी आत्मा.. दो किनारों पर बैठकर सिर्फ चुप्पी साझा कर रहे हों.
_ बीच में जो खाई है — वहीं गिरते हैं कुछ अधूरे सच, कुछ न बोले गए सवाल,
और कुछ ऐसे जवाब… जो शायद मैं कभी दे ही नहीं पाऊँगा.
> “शब्दों से बाहर जो मैं हूँ, वही शायद मेरा असली घर है..”
_ मेरा स्थान कोई ऐसा स्थान नहीं है _ जहाँ आप अपनी मनोकामना पूरी करने या सुख-सुविधा के लिए आ सको.
_ मेरा स्थान केवल आपको अधिक जागरूक, सतर्क बनने में मदद करने के लिए मौजूद है, ताकि आप स्वयं के लिए एक प्रकाश बन सकें.
_ मेरे पास देने के लिए बहुत कुछ है ; जितना आप सोचते हैं उससे कहीं अधिक _आप एक जगह से प्राप्त कर सकते हैं.
_ यदि आप कभी यहां हो तो, चौकस रहो, और ज्ञान बटोरो ;
_ आप मेरे शब्दों से कहीं अधिक अनुभव करेंगे..
_ जीना दुनिया की सबसे नायाब चीज है ; _ज्यादातर लोग बस जिंदा हैं.!!
_ कदम दर कदम, अपने सुधार से, _आप देखेंगे कि आपका जीवन कैसे बेहतर “और बेहतर होता जाता है..”.!!
_ ये मेरा प्रारब्ध ही है.. जो मुझको फंसाके रखा है.. अभी तक यहां पे,
_ प्रारब्ध पूरा हो जाए एक बार.. फिर करते रहना छल कपट धोखाधड़ी..
_ मैं तो चला जाऊंगा अपने घर.!!
_ कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे मैं किसी और दिशा में जा रहा हूं – एक शांत, गहरी और सत्य की दिशा में – लेकिन मेरे आस-पास के लोग वही पुरानी दुनिया में ही फंसे हुए हैं.
_ मैं झूठ नहीं बोल पाता, लेकिन यहां हर व्यवहार में नाटक है.
_ मैं अंतर-मौन में विश्राम चाहता हूं, लेकिन यहां सब कुछ शब्द और दिखावे से भरा है.
_ मैं विश्वास और दयाभाव लेकर चलता हूं, लेकिन सामने से द्वेष और इरादे का सामना होता है.
_ मुझे सबके मध्य में रहते हुए भी अपनी शांति और सत्य में स्थिर रहने की शक्ति दे.!!
_ शुरूआत में ये सब संभालना कठिन था.
_ कभी गुस्सा आया, कभी तन्हापन महसूस हुआ.
_ लगा जैसा गलत जगह आ गया हूं.
_ पर फिर समझा..
🌼 _ ये सफर मेरे लिए है, सबके लिए नहीं..
_ सभी अपनी जगह सही हैं, बस उनका समय अभी नहीं आया.
_ मैं अब किसी को बदलने की कोशिश नहीं करता.
_ मैं सिर्फ खुद को और गहरा करता हूं.
_ जब मैं अपने सत्य में स्थिर हो जाता हूँ,
_ तो वो लोग भी धीरे-धीरे बदलने लगते हैं – बिना बोले..!
🌱 मैं एक बीज हूं. पहले अँधेरा, फिर तन्हाई, और फिर उदय.
_ और शायद यही है जीवन का असली रूप – अपनी रोशनी में खिलना, बिना किसी शोर के.!!
_ ये परिवर्तन पहले तन्हा बनाता है, फिर मजबूत और अंत में आपको सबके लिए रोशनी बना देता है.!!
🌿 1. “मैं खुद को ढूंढ रहा हूं, और सब मुझे खोया हुआ कह रहे हैं”
2. “मैं चुप हो गया हूं, इसलिए लोग समझने लगे हैं कि कुछ तो गलत है”
3. “जब अंदर प्रकाश जगता है, तो बाहर का अंधेरा और ज़्यादा दिखाई देने लगता है”
4. “जो मुझे समझ नहीं पाये, उनके लिए मैं बदल गया हूं ; _ जो समझे, उनके लिए मैं निखर गया हूं”
5. “मेरा सफ़र अंदर की तरफ है, इसलिए लोग मुझे दूर होता हुआ महसूस करते हैं”
6. “मैं सच बोलता हूं, इसलिए मुझे अकेला रहना पड़ता है”
7. “मैंने व्यवहार में सहजता ढूंढी, लोगों ने मुझे असहज कह दिया”
8. “मैं रोशनी हो गया हूं, इसलिए मुझे अँधेरे पसंद नहीं आते”
_ आज अचानक.. अपनी ही याद आ गयी…क्या हुआ करता था मैं..”
_ मुझे अपने पुराने रूप में रहना बिल्कुल पसंद नहीं, वह एक दुःखी व्यक्ति था.!!
_ कभी-कभी पुराना रूप याद आकर मुझे झकझोर देता है..
_ वह मुझे यह दिखाता है कि.. मैंने कितनी दूर की यात्रा तय कर ली है.
_ वह दुःखी स्वरूप आज भी भीतर कहीं छाया-सा मौजूद हो सकता है,
_ लेकिन वह मुझे यह भी याद दिलाता है कि.. अब मैं उससे मुक्त हो चुका हूँ..
_ अपने बदल चुके स्वरूप को देखकर, मन को एक गहरी राहत मिलती है —
_ पुराने दुखों को छोड़ देने से जीवन में नई चमक आती है”
_ “मैं अब वही नहीं हूँ”