“किरदार और मुखौटे”
_ मैं तो अपने किरदार में ही रहना चाहता था और चाहता हूँ,
_ पर क्या करूँ ? लोग मुखौटा मांगते और चाहते हैं.
_ कभी-कभी लगता है, मेरा अपना असली रूप ही लोगों को कम पड़ जाता है.
_ मैं जितना सरल होकर जीना चाहता हूँ — उतना ही दुनिया मुझे किसी और रूप में देखना चाहती है.
_ लोग अक्सर मुखौटे मांगते हैं, क्योंकि सच्चाई उन्हें असहज कर देती है.
_ और मैं अपने किरदार में रहना चाहता हूँ, क्योंकि वही मेरा सत्य है, वही मेरा सुकून है.
_ शायद यही संघर्ष है..- दुनिया की अपेक्षाओं और अपने भीतर की सच्चाई के बीच.
_ लेकिन दिन के अंत में, मैं खुद से यही पूछता हूँ :
_ क्या मैं अपनी आत्मा के प्रति ईमानदार हूँ ?
_ अगर हाँ…- तो भले ही दुनिया मुखौटे चाहे,
_ मैं अपने किरदार में ही रहूँगा… क्योंकि वही मेरा घर है.!!






