Meditation – मैडिटेशन – 2009

__ ध्यान इसलिए नहीं है कि आपको दुनिया से काटने, कोने में बैठाने की कोई विधि है. _ ज़िन्दगी में और सफल हो सकें, ज्यादा सुखी हो सकें, ज्यादा आनन्द से रह सकें, उस स्थिति का नाम ध्यान है.

” हमें ध्यान समाप्त करने के बाद मन की एक प्राकृतिक स्थिति प्राप्त होती है, हल्कापन महसूस होता है.
गौर करें – देखें अभी मेरी आंतरिक स्थिति क्या है – कंडीशन क्या है ….कुछ समय दें.
उसे अपने अंदर और तीव्र, और गहरा होने दें, उसका आनंद लें, उसे बढ़ने दें, फ़ैलने दें.
अब महसूस करें कि यह कंडीशन मेरे सूक्ष्म शरीर में रिसते जा रही है और विस्तारित होती जा रही है.
सुझाव दें और भाव लें कि यह कंडीशन जिसे मैंने विस्तारित किया है मेरा एक हिस्सा बन गई है और मैं इससे एक हो रहा हूँ इसमें लय हो रहा हूँ.
अंत में यह विचार लें और भाव बनायें कि मैं उस कंडीशन में घुल मिल गया हूँ और अब सिर्फ वह कंडीशन ही शेष बची है.”
प्रश्न : मैं ध्यान करता हूँ तो लोग पता नहीं क्या – क्या समझते हैं ?

उत्तर :- कौन क्या कहता है और क्या समझता है, इसकी फिकर ना करना, तुम तो अपने भीतर पे ध्यान देना,

अगर इससे आनन्द आ रहा है, मस्ती आ रही है, सुरा बरस रही है, तो तुम फिकर मत करना ;

—- इस संसार के पास कुछ भी नहीं है ” इतना मूल्यवान ” तुम्हें देने को,

इसलिए संसार से कोई सौदा मत करना.

A :- 08 – ओशो

तुम जाग कर जीने लगो, ध्यान तुम्हारे चौबीस घंटे पर फैल जाएगा.

ध्यान कोई ऐसी चीज थोड़े ही है कि कर लिया सुबह उठ कर और भूल गए फिर।
ध्यान तो ऐसी धारा है जो तुम्हारे भीतर बहनी चाहिए।
ध्यान तो ऐसा सूत्र है जो तुम्हारे भीतर बना रहना चाहिए;
जो तुम्हारे सारे कृत्यों को पिरो दे एक माला में।
जैसे हम माला बनाते हैं तो फूलों को धागे में पिरो देते हैं,
फूल दिखाई पड़ते, धागा तो दिखाई भी नहीं पड़ता—
ऐसा ही ध्यान होना चाहिए, दिखाई ही न पड़े।
जीवन के सब काम— उठना—बैठना, खाना—पीना, चलना, बोलना,
सुनना, सब—फूल की तरह ध्यान में अनस्थूत हो जाएं,
ध्यान का धागा सब में फैल जाए।
तो ध्यान तो मेरे लिए जागरण और साक्षी— भाव का नाम है।
A :- 24 – ओशो
प्रश्न :- ध्यान में आँखे बंद रह कर जो आनंद महसूस होता है, वो आँखे खोलने पर वैसा नहीं रह पाता है ?

उत्तर :- जब हम भीतर के स्त्रोत से जुड़ जाते हैं, तभी हमें आंनद महसूस होता है, बंद आँखों में ये सरलता से हो पाता है,

लेकिन ध्यान करते करते ऐसा होना चालू हो जाएगा कि फिर खुली आँखों में भी,

कुछ भी कार्य करते हुए भी हम भीतर के स्त्रोत से जुड़े हुए रहेंगे, और आनंदित रहेंगे.

A :- 61 – ओशो

– एकांत के तीन रूप हैं :- 1. अकेलापन, 2. एकांत, 3. केवल्य

तीनों में क्या फर्क है ?

अकेलेपन में दूसरा मौजूद रहता है, यानी कोई दूसरे की कमी खलती है.

एकांत में दूसरा नहीं स्वयं में रस लेता है, ध्यान रहे, अकेलापन सदा उदासी लाता है, एकांत आनंद लाता है।वे उनके लक्षण हैं।
अगर आप घड़ीभर एकांत में रह जाएं, तो आपका रोआं-रोआं आनंद की पुलक से भर जाएगा।
और आप घड़ी भर अकेलेपन में रह जाएं, तो आपका रोआं-रोआं थका और उदास, और कुम्हलाए हुए पत्तों की तरह आप झुक जाएंगे।
अकेलेपन में उदासी पकड़ती है, क्योंकि अकेलेपन में दूसरों की याद आती है।
– एकांत में आनंद आ जाता है, क्योंकि एकांत में रब से मिलन होता है, वही आनंद है, और कोई आनंद नहीं है.
केवल्य में दूसरा भी नहीं, स्वयं भी नहीं, दोनों चले गए, अब सिर्फ अस्तित्व है. उसमें ही आनंद है.
—————-अकेलेपन का मतलब अकेले रहना नहीं है, _ अकेलेपन का अर्थ आप जो भी हैं, आप वहां वापस जा सकते हैं. _ अकेलेपन का विपरीत साथ नहीं, अपने लौटने की जगह _वापसी है.!!
A :- 64 – ओशो
दुनिया के शोर से एकांत की ओर जाने का रास्ता हमेशा खुला रहता है, लेकिन ये रास्ता एकतरफा रास्ता है,एकांत से वापिस शोर में लौटने वाला रास्ता, हमेशा बंद ही मिलता है ; और ना ही कोई इस पर चल कर वापिस लौटना चाहता है ;

एक बार जो इस एकांत में पहुंच गया, उससे संवाद कायम करना, उसके स्तर पर जाकर, उससे बातचीत करना बहुत मुश्किल काम है !!!

– जिसने भी रब को पाया है, अपने भीतर ही पाया है.
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– “कौन था वो शख्स,, जो मेरी जगह जी गया “

दुख को बहोत सहेज कर रखना पड़ा हमें,

सुख तो किसी कपूर की टिकिया सा उड़ गया,

बताओ तो कौन था, वो बदनसीब शख्स, जो मेरी जगह जिया,

अब सबसे पूछता हूँ, कौन था वो शख्स, जो मेरी जगह जिया,

वो कौन था शख्स, जो मेरी जगह जी गया …

A :- 67 – ओशो

प्रश्न :- क्या कभी आपने गलती की है ?

उत्तर :- मेरे भीतर जब ” मैं ” मौजूद था, तब गलतियां होंती थी, लेकिन जब से ” मैं ” गया तब से गलतियां नहीं होती,

मतलब, जब ” मैं ” मौजूद था तो जो भी सही करता तो वो भी गलत हो जाता था

मगर, जब से ” मैं ” चला गया और अब जब ” वो ” मौजूद है तो गलत होता ही नहीं

यानी अब कुछ गलत हो भी जाता है तो अंततः वो सही ही साबित होता है.

A :- 70 – ओशो

प्रश्न:- आप जो एक ध्यान विधि सभी को देते हो, क्या सभी लोगों पर एक ही तरह की ध्यान विधि काम करती है.

उत्तर :- आप इसे एक उदाहरण के द्वारा समझें; जैसे कोई एक आदमी को ८ नम्बर का जूता लगता है और दूसरे आदमी को भी ८ नंबर का जूता लगता है, खरीदते वक्त तो दोनों अपने नंबर का ही जूता खरीदेंगे, मगर जब दोनों इसे कुछ दिन पहनेंगे तो इनका नंबर बदल जाएगा, अब वही दोनों आदमी जिन्होंने ८ नंबर का जूता लिया था, अगर वो एक दूसरे का जूता बदल कर पहनना चाहें तो नहीं पहन सकेंगे, कारण कि पहनने के बाद दोनों के उँगलियों, अंगूठों और एड़ी ने अपने हिसाब से आकार ले लिया होता है, ठीक इसी तरह ध्यान विधि सभी को बताई तो जाती है एक तरह की, मगर सभी की उसकी सुविधा अनुसार थोड़ी- थोड़ी बदल जाती है, इसमें कोई हर्ज नहीं, बल्कि बढ़िया है.

A :- 72 – ओशो

– ” अगर आपको सुख की आदत है तो आप निर्धनता में भी सुखी रहोगे. “

— ज्ञानी पुरुष अपने स्वभाव से चलते हैं, और स्वाभाविक रहते हैं,
वो दूसरे के आदेश के अनुसार नहीं चलते, और न ही वो लोकवत व्यवहार करते हैं,
यानी दूसरे जैसा चाहते हैं वैसा नहीं करते.
A :- 73 – ओशो
– अब मैंने किसी की भी गलती देखना बंद कर दिया है, क्योंकि जब सब कुछ तेरी ही मर्जी से हो रहा है तो मैं बीच में क्यों आऊं.

— अब मैं अपने घर लौट आया हूँ, मेरा कोई भी काम अब तू किसी को भी निमित बना कर करवा देता है.

A :- 76 – ओशो
— प्रश्न :– रब क्या है और कहाँ है ? अगर नहीं है तो हम किसके पीछे भाग रहे हैं ?

उत्तर :- ये प्रश्न ही गलत है, प्रश्न ये होना चाहिए कि “मैं कौन हूँ ” ? इसका जवाब ढूँढ लो तो इसका [ रब क्या है और कहाँ है ? ] भी जवाब मिल जायेगा. रब हमारे ही भीतर है, हमारी शुद्धि की अवस्था ही रब है.

— प्रश्न :– अगर संसार लीला है तो संसार में इतना दुःख क्यों है ?

उत्तर :- लीला का अर्थ है जीवन को समस्त दृष्टिकोण से देखो. लीला मतलब खेल है, इसलिए इसे खेल की तरह देखो, जिसमें हार भी है और जीत भी. इसलिए इसे ज्यादा गंभीरता से न लें. A :- 78 – ओशो

प्रश्न :- पाप और पुण्य क्या है ?

उत्तर :- हमारे अवलोकन में जब शुभ चीजें बढ़ती हैं, और जब अशुभ चीजें घटती हैं, घटने के साथ ही समाप्त भी हो जाती हैं, तो वो पुण्य है, जैसे:- करुणा, दया, प्रेम, मैत्री,

हमारे अवलोकन में जब शुभ चीजें घटती हैं, और जब अशुभ चीजें बढ़ती हैं, तो वो पाप है, जैसे :- क्रोध, लोभ, मोह, अन्धकार, हिंसा,

A :- 79 – ओशो

जो जहाँ है, जैसा है, अगर वहीँ सुखी नहीं है तो, तो फिर वो कहीं भी सुखी नहीं हो सकता.

और जो जहाँ है, जैसा है, वहीँ सुखी है तो वो कहीं भी सुखी हो सकता है.

A :- 86 – ओशो

क्या करना है जीवन में ? किस और बढ़ना है ? यह हमें डिसाइड करना है ! और इसके लिए हमें चुप होना पड़ता है… मौन ! एकदम मौन !!

फिर जो होता है वह काम नहीं है, स्वांत: सुखाय है ! प्रमुदितावस्था है !! गहरे अर्थों में ध्यान है !!!

अकेले रहने की क्षमता प्रेम करने की क्षमता है ; _ यह आपको विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है.

_ यह एक अस्तित्वगत सत्य है: केवल वे लोग जो अकेले होने में सक्षम हैं, वे प्यार करने, साझा करने, दूसरे व्यक्ति के सबसे गहरे केंद्र में जाने में सक्षम हैं – दूसरे पर अधिकार किए बिना, दूसरे पर निर्भर हुए बिना, और दूसरे के आदी हुए बिना.!!

वे दूसरे को पूर्ण स्वतंत्रता देते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि यदि दूसरा चला जाता है, तो वे उतने ही प्रसन्न होंगे जितने कि अभी हैं.

_ उनका सुख दूसरा नहीं ले सकता, क्योंकि वह दूसरे के द्वारा दिया नहीं जाता. ~ ओशो

अंधेरों से लड़ो मत, थक जाओगे _ ध्यान का दिया जलाओ _ अँधेरा चुपचाप विदा हो जायेगा..
मैंने लिख दी हर वो बात जो मेरे जहन में थी..

अब पढ़कर कौन कहाँ पहुंचता है ये उसकी अपनी जिम्मेदारी है…

ध्यान का तो आनंद जिस दिन मिलेगा, उस दिन फिर आप यह नहीं कहेंगे कि चला गया _ वह जाता ही नहीं;

उसके जाने का कोई सवाल नहीं है _ क्योंकि ध्यान का जो आनंद है, वह किसी भी बाहर की कंडीशन पर निर्भर नहीं है.

——जो व्यक्ति ये जानता है कि, सुख, शांति, खुशी और आनन्द उसके भीतर ही है, वो हमेशा प्रसन्न और आनन्द में रहेगा ।चाहे वो एक भिखारी ही क्यों न हो।

जो व्यक्ति ये नहीं जानता कि, सुख, शांति, खुशी और आनन्द उसके भीतर ही है, वो हमेशा दुखी और उदास रहेगा । चाहे वो एक राजा ही क्यों न हो।
स्वयं को जान लेना ही ज्ञान है।
अपनी आती और जाती हुई सांसों को देखना ही ध्यान है ।
जिस व्यक्ति के मन में ध्यान का फूल खिल जायेगा ।__
_ उसको बिना कुछ किए ही, सबकुछ मिल जायेगा ।——-
एक सामान्य आदमी बोलता कुछ है और करता कुछ है.

लेकिन सामान्य आदमी जो करता है वो सच है और जो बोलता है वो झूठ है.

एक ज्ञानी आदमी भी बोलता कुछ है और करता कुछ है.

लेकिन ज्ञानी आदमी जो करता है वो झूठ है और जो बोलता है वो सच है.

—” अज्ञानी ना खुद को समझता है ! ना दूसरों को समझता है ! पर _ समझाता बहुत है !

ज्ञानी खुद को समझता है ! दूसरों को भी समझता है ! पर _ समझाता नहीं ! मौन हो जाता है !!! ” —

जिसे पाकर लगे कि अपने को पा लिया, समझना वह अपना है !

और जिसे पाकर लगे कि अपने को खो दिया, समझना वो और भी अपना है !

खुले नयन से सपने देखो, बंद नयन से अपने,,

अपने तो रहते हैं भीतर, बाहर रहते सपने,,, – ओशो

अपने स्वभाव के अनुसार जियो, दूसरे आपके बारे में जो कुछ भी सोचते हैं _ वह उनकी समस्या है ;

आपको इसके बारे में चिंता करने की जरुरत नहीं है _ अपने जीवन को दिखावे का टुकड़ा मत बनाओ..

—” तुम वह काम करो _ जो तुम करना चाहते हो..

वही काम करना जरुरी नहीं _ जो दूसरे लोग कर रहे हैं… “—

आप अपने जीवन के मालिक हो, आप जीवन को अपने ढंग से जीना, _

ये फिकर ही मत करना कि लोगों का क्या मत है, _

_ लोगों के मत को देखोगे तो आप को पागल कर देंगे !

जिस दिन तुम ये जान लोगे की, यहां स्वयं को जानने के अलावा, कुछ भी जानना, बेकार है _

_ उस दिन से आनंद के द्वार खुल जायेंगे..

कुछ तो देखो, कुछ तो सीखो,,,मुझे और हमे भी शर्म आनी चाहिए।।।

कि हम इनके जैसे, इनके रास्ते पर तूफान की तरह कब चलेंगे..

कईबार हम व्यर्थ की चीजें ही घर में इकट्ठी नहीं करते,

किंतु ध्यान रखना हम व्यर्थ के विचार भी इकट्ठे करते हैं।
कोई आदमी आपको सुना रहा है कुछ भी, और आप सूनते जा रहे हो,
आप यह भी नहीं सोचते कि _ ये विचार इकट्ठे करने हैं या नहीं?
क्या कभी आपने किसी आदमी से कहा कि भाई इन बातों की मुझे कोई भी जरूरत नहीं है ?
कोई व्यक्ति किसी की निन्दा कर रहा है, कोई अफवाह सूना रहा है, आपने कभी बीच में टोका कि इसकी मुझे कोई जरूरत नहीं है?
क्यों आप स्वयं दूसरों का दिया कचरा _ अपनी खोपडी में डाल रहे हो ?
डालना आसान है, निकालना बहूत ही मुश्किल है।
ध्यान करने वालों से पूछो, निकालने वालों से पूछो, जब वे निकालना चाहते हैं तब वह निकलता नहीं है, जड़े जमा ली है उसने।
और अब व्यर्थ के विचार, व्यर्थ का कचरा आपके अन्दर रह कर आपके व्यक्तित्व को, आपके पूरे जीवन को निरंतर बरबाद कर रहा है।
और हमने व्यर्थ की बातें इकट्ठा करते समय होश नहीं रखा।
बचिए इन व्यर्थ के विचारों से, व्यर्थ की निन्दा चुगली से
और बचाइए स्वयं को बर्बाद होने से .!!– ओशो
– “हमारा मन एक बर्तन की तरह है, इसमें कोई दूसरा क्या डाल रहा है, यह महत्वपूर्ण नहीं है ;
_ लेकिन क्या हम इस बर्तन को खाली करने का हुनर जानते हैं, यह महत्वपूर्ण है..!!”
एक काम करो ! आज कुछ मत बोलो, _कल भी कुछ मत बोलना, _और कुछ दिन तक कुछ न बोलकर देखो, और फिर देखो कि बोलने की इच्छा तब भी रहती है क्या ?
_अगर नहीं तो सोचना कि अच्छा हुआ कुछ नहीं बोले, _लेकिन अगर तब भी बोलना चाहो तो _जरूर बोलना और ऐसा बोलना कि _जो बोलो उसका असर हो.
जब भी कोई समस्या और परेशानी हो तो अपने ह्रदय में झांक कर देखें : यदि आप निश्चिंत हैं तो आप सही रास्ते पर हैं ; आप का ह्रदय कसौटी है _ यदि वह बैचेन है तो आप को अपना रास्ता बदलना पड़ेगा, कि कुछ गलत हुआ है; आप रास्ता भटक गये हैं.

” ह्रदय आप का रहनुमा है ” – जब वह निसर्ग [ Nature ] के साथ पूरी तरह ताल मेल में है, तब आप के ह्रदय में संगीत होता है, नृत्य होता है; _ जब आप निसर्ग [ Nature ] से दूर हो जाते हैं, तब वह नृत्य बिगड़ जाता है.

__ ये संकेत है – ह्रदय की भाषा – जो आप को बताते हैं कि आप सही चल रहे हैं या गलत, आप को किसी के मार्गदर्शन की ज़रूरत नहीं रहती, आप का मार्गदर्शक आप के भीतर बैठा हुआ है !

__ ध्यान करें और लगातार परेशान करने वाली चीजों के संपर्क में रहें ; एक दिन कोई भी चीज़ परेशान करने वाली नहीं होगी, और वह बहुत खुशी का दिन होगा.!! — ओशो

जो ध्यान को उपलब्ध हो गया, उसके भीतर व्यर्थ चीजें नहीं आ सकतीं। ध्यान उसका रक्षक हो जाता है। जो ध्यान को उपलब्ध हो गया…. उसको क्रोध नहीं आएगा। लोभ नही आएगा , मोह नही आयेगा। क्यूं…. उसके घर अब दिया जल गया है। और दिया जला हो तो अंधेरा भीतर नही आता और उसके भीतर पहरेदार जग गया है। पहरेदार जगा हो तो चोर नही आते।
स्वयं की अनुभूति से निकला हुआ छोटा – सा विचार, जरा सा बीज तुम्हारी जिंदगी को इतने फूलों से भर देगा की कि तुम हिसाब न लगा पाओगे ; __

” — जिसके हाथ में निर्विचार हो जाने की कला आ गई,_ सोने की कुंजी आ गई, _ जो सब ताले खोल दे..–“

एक बार भी वह स्वाद आ जाए, तो फिर बाहर का कोई भी स्वाद _ उससे कीमती कभी भी नहीं हो पाता _

_ और एक बार इस बात का रस आ जाए कि भीतर भी एक जगत है, _ तो बाहर की सब दौड़ फीकी मालूम होने लगती है _

_ फिर कोई बाहर चले भी तो भी कर्तव्यवश चलता है, वासनावश नहीं !

अगर आपको ध्यान का स्वाद, ध्यान का आनंद, मिल गया है तो, आपने जीवन में जितना खोया था, उससे कहीं अधिक मिला है ;

क्योंकि इतने सारे लोग पृथ्वी पर आते हैं और ध्यान के आनंद के बिना पृथ्वी को छोड़ देते हैं,

हमारे सच्चे अस्तित्व का आनंद, _ इसलिए कहते हैं धन्यवाद, जो आपको मिला है ; _ आप और अधिक गहराई में जाएं.

जब तक ध्यान की रसधार न बहे, तब तक भीतर कुछ अंगारे – सा

जलता ही रहता है, चुभता ही रहता है. –

_” जिसने ध्यान का रस पी लिया, _ मगन हो गया “

— ” कभी यूही …. _ खुद को खाली किया कर..

कभी यूही…. _ खुद को निखारा कर… —“

—– “””जो अपने खालीपन से राजी हो जाता है, उसका खालीपन मिट जाता है””” —–

मैडिटेशन से आप तनाव, डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं से राहत पा सकते हैं. इससे आपका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होने लगता है. मेडिटेशन करने से आपका इम्यून सिस्टम मजबूत होने लगता है.

_क्योंकि, जब आपका दिमाग सही तरीके से काम करता है, तो शरीर के दूसरे कार्य भी सुधर जाते हैं.

जब भी आपको लगे कि आप अपने जीवन से खुश नहीं हैं, जब भी आप अपने जीवन से ऊब महसूस करते हैं, हमेशा याद रखना कि तुम खुद से दूर जा रहे हो, तुम अपने में नहीं हो। क्योंकि सारी खुशियाँ तुम्हारे भीतर हैं…. और जितना अधिक तुम इससे दूर जा रहे हो, उतना ही अधिक तुम आनंद को खो रहे हो। यह स्थिति इंगित करती है कि आपके जीवन में ध्यान की कमी है। ध्यान आपको अपने केंद्र में, अपने आंतरिक अस्तित्व में लौटने के लिए प्रेरित करता है जहां अनंत आनंद है।

Whenever you feel that you are not happy from your life,
whenever you feel bored from your life,
always remember that you are going away from yourself,
you are not into yourself.
Because all the joy is within you….
and the more you are going away from it, the more you are missing the joy.
This situation indicates that you have lack of meditation in your life.
Meditation makes you to return to your center, to your inner being where the infinite joy is.
एक बार तुमने जीवन का सौंदर्य देखना शुरू कर दिया तो कुरूपता विलीन होने लगती है ;
यदि तुम जीवन को आनंद से देखने लगे तो, उदासी दूर होने लगती है ;
तुम स्वर्ग और नर्क को एक साथ नहीं रख सकते, तुम्हारे पास केवल एक ही हो सकता है; _ ये तुम्हारी पसंद है.
Once you have started seeing the beauty of life, Ugliness starts disappearing. If you start looking at life with joy, Sadness starts disappearing. You cannot have heaven and hell togather, You can have only one. It is your choice.
OSHO
लोग अक्सर शिकायत करते रहते हैँ कि दुनिया अच्छी नहीं है, वो गलत है _ पर आप क्या खुद इन्क्वायरी नहीं करते, _ आप जैसे हैँ, आपके रिश्ते – नाते वैसे ही होंगे _ उनका गुण धर्म वैसा ही होगा ;

अगर आप सही हो _ उसके बाद भी _ कोई जाता है तो उसे जाने दो _ये बेहतर है उसके लिए भी और आपके लिए भी _ बहोत पकड़ने की आवश्यकता नहीं है ;

आप तो खुद को साफ़ करो _ उसके बाद जो मक्खी – मछरें हैँ _ दूर हो जाएंगे ; शरीर पर गंदगी रहेगी तो मक्खियां आती हैँ और मन पर गंदगी चढ़ी हुई है तो वैसे लोग ही आपके पास आयेंगे ;

हो सकता है आपके पास ज्यादा लोग न बचें, पर वो ज्यादा बेहतर है _ क्योंकि कहते हैँ ना आपको खाना नहीं मिला तो ज़हर थोड़े खा लोगे _ तो बेहतर है _ अपने आप को साफ़ करना _ उसके बाद आपके पास लोग हैँ तो ठीक _ नहीं हैँ तो ठीक है _ आपको फर्क नहीं पड़ेगा ;

_ और अगर आपको फर्क पड़ रहा है _ तो मतलब _ बहोत काम बाकी है..

अगर इतना होश भी नहीं है कि कब उठना, कब खाना, कब पीना, तो तुम आशा छोड़ो कि तुम जीवन के मूल को, कि जीवन के सत्य को कभी जान सकोगे !

_ अगर ये बातें भी तुम दूसरों से पूछते फिरोगे, _

_ तो तुम्हें अपनी ज़िन्दगी जीना नहीं आता,

_ अगर जिंदगी को थोड़ा संवार कर, सुंदर करके जीना नहीं आता तो, तुम और क्या करोगे ?

_ वह खाना चाहिए, जो परेशानी में न डाले, _ तब सो जाना चाहिए, _ जो स्वास्थ्यप्रद हो ;

_ तब उठ आना चाहिए, _ जब जिंदगी ताजी से ताजी हो, _ जब तुम गीत गा सको और नाच सको ;

_ जब सूरज जगे, जब पक्षी बोलें, जब वृक्ष उठ आएं, _ तब तुम्हारा पड़े रहना ठीक नहीं ;

_ और भोजन उतना कि शरीर पर बोझ न हो, _ और भोजन वह कि किसी को दुख न हो ;

_ सीधी सीधी बातें, इतनी सीधीबातें भी तुम तय न कर सकोगे,? यह भी कोई दूसरा तुम्हें बताएगा ?

~ ओशो

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