मस्त विचार 2080

।। उलझन ।।

गिले शिकवे तो लगे रहेंगे जिंदगी भर,

चलो, आज सारी शिकायतें भूल जाते हैं,

चलो इस बार माफी मांग कर, माफ कर,

नया साल कुछ इस तरह मनाते है,

दूरियाँ भूल कर, सबको गले लगाते हैं।

कहीं दिल पे लगी चोट,

कहीं बातों से बस्तियाँ जल गयी,

किस्से कई बन जाते हैं,

चलो जुबान को थोड़ा लगाम लगाते हैं।

दिल से भला चाहनेवाले, कहीं छुप जाते है,

चलो इनको पहचान कर,

गले लग जाते हैं, नया साल मनाते हैं।

हमेशा नज़रिया मेरा ही सही नहीँ होता,

हम अपनों के मोह का चश्मा पहनकर,

सारी दुनिया को परखते है ।

एक लालच ने महाभारत रचा दी,

एक मोह ने सोने की लंका जला दी

सबके अपने अपने होंगे,

सबका भी अपना अपना नजरिया होगा,

अपनों के लिये फिर अपनों से उलझना क्या,

अपनी अहं की लड़ाई में, पीढ़ी दर पीढ़ी का पिसना क्या,

चलो सब समझते है, सबको समझाते है,

दूरी न बढ़ाकर, सबको पास बैठाते है,

आने वाली नस्लों के लिये,

कुछ अच्छा छोड़ जाते है।

लालच का अंत नहीं, हवस का इलाज नहीं,

कल का पता नहीँ, पल की खबर नहीं,

इस सच से चलो आज रूबरू हो जाते है,

चलो दिलों को दिल से मिलातें है।

रिश्तों के धागे उलझे है तो माथे पे शिकन कैसी,

इस उलझन में भी तो अटूट बन्धन है,

चलो रिश्तों की लड़ी को, फिर सजाते है,

नया साल कुछ इस तरह मनाते है।

।। पीके ।।

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