– अँधेरे में दिया जला दो मेरा –
अँधेरे में दिया जला दो जरा , मुझे कोई रास्ता सूझता नहीं.
जिंदगी पहेली बन गई है मेरी, मगर कोई उसको बुझता नहीं.
उठते हुए को पूजते हैं लोग , गिरते को कोई पूछता नहीं.
मन में पड़ी जो ऐसी दरार,लाख कोशिश से भी वो जुड़ता नहीं.
मोम-सा मन पत्थर बना,जो पिघलाने से भी पिघलता नहीं.
मन पर जख्म इतने गहरे हुए,जो मलहम लगाने से सूखते नहीं.
बता दो जहाँ में इंसान कोई , जो मुश्किलों से उबारे जरा.
– अँधेरे में दिया जला दो मेरा –