खुदगर्जों की इस बस्ती में _ अहसान भी है एक गुनाह,
_ जिसे तैरना सिखाओ _ वही डुबोने को तैयार खड़ा है.
कोई किसी पर यूं ही अहसान नहीं करता…
_ और अपने तो अहसान के बदले गुलामी चाहते हैं..!!
अपनों के खिलाफ चालें चलने वाले भूल जाते हैं कि..
_ अंत में उन्हें गैरों की गुलामी करनी पड़ती है.!!
_ अंत में उन्हें गैरों की गुलामी करनी पड़ती है.!!