हम खुद को बरगद बनाकर ज़माने भर को छांव बांटते रहे,
मेरे अपने ही हर दिन मुझको थोड़ा- थोड़ा काटते रहे…
ज़िन्दगी की तालीमों का सिलसिला, बदस्तूर चलता रहा…
कुछ पराये अपने हुए, कुछ अपनों का रंग बदलता रहा…
मेरे अपने ही हर दिन मुझको थोड़ा- थोड़ा काटते रहे…
कुछ पराये अपने हुए, कुछ अपनों का रंग बदलता रहा…