औसत इच्छाओं में ही जीवन लगाना हो तो _ अध्यात्म में समय व्यर्थ न करें.
_ भौतिक जीवन में भले ऐसा न होता हो, पर अध्यात्म में ये जादू सदा होता है.
_ तो जान लेना कि _ ज़िन्दगी सही दिशा में जा रही है..!
_ फिर दुनिया को वो कम समझ में आते हैं..
ऐसे ही कहीं के हो मत जाया करो,
तुम्हें तो पराया होना है,
तुम्हें अपना ही नहीं होना है,
किसी और के कैसे हो बैठे..!!
_ पुल से गुजर जाते हैं, पुल पर घर नहीं बनाते..
आँख बंद करी तो पाया मुझे उसकी ज़रूरत नहीं.
_ अब कौन परवाह करे कि मिला या नहीं मिला !!
_ तो संसार आपके साथ _ वो कैसे कर लेगा _ जो किया करता था ?
कोई बात तुमको इसलिए नहीं बोली जाती कि तुम उसको पकड़ लो _ उसको सत्य समझ लो..
कोई आप को आ कर के फ़िज़ूल कि बातें बताना शुरू भी कर देगा तो आप को उबासी आने लगेगी, और आप उनकी फिजूल बातों की आंतरिक रूप से उपेक्षा करते रहेंगे.
– उस दिन समझ लेना – बड़े हो गए.
क्योंकि तुम्हारे चारों ओर लोग ऐसे हैं, जिन्होंने जीवन व्यर्थ जगहों पर ही बिताया है.
_ जहाँ कहीं तुम्हें दुःख है, भय है, संशय है, जहाँ कहीं तुम्हारे जीवन में पचास तरह के उपद्रव हैं,
_ उस तरफ़ को बढ़ना छोड़ो ; _ यही राह है.
हमें हमेशा तुमसे कुछ चाहिए !!
और जिसे तुमसे कुछ चाहिए, वो तुम देना बंद कर दो, तो रिश्ता टुट जाता है,
रिश्ता हमेशा ऐसा बनाना, जिसमें कोई मांग ना हो, कोई शर्त ना हो !!
एक बार आप को इसकी आदत लग गई _ फिर आप नीचे गिरना बर्दाश्त ही नहीं करते;
फिर आप कहते है _जान दे दुगा लेकिन नीचे नही गिरूंगा..!!
_ खाली करो अपने आपको, _ हर दृष्टि से स्वस्थ रहोगे – शारीरिक दृष्टि से भी, क्योंकि श्रम किया,
और मानसिक दृष्टि से भी, क्योंकि कोई बोझ नहीं बचाया अपने ऊपर.
तुम्हें पैसा चाहिए होता है, _सामाजिक रुतबा बनाने में।
कोई परिस्थिति, कोई व्यक्ति, कोई विचार, या कुछ भी, तो उससे लड़िए मत.
_ अपने मन को तलाशिए, उसमें ऐसा क्या है ; जिसका उपयोग करके वो व्यक्ति आपको नचा रहा है ?
पर जो कुछ भी तुम कर रहे थे, उसको करने से पहले भी, करने के दौरान भी, और करने के बाद भी _ रह गए तुम पहले जैसा ही !
तो जो कुछ भी किया _सब बेकार है।
पूछो कि जीवन कैसा हो __ जिसमें कुंठा और क्रोध के बीज ही न हों.
चैन किधर है ? किधर को जाऊँ तो शांति है ? हर निर्णय अपने आप हो जायेगा.
चैन तो मुफ़्त है, बैचेनी के बड़े दाम हैं !!
_ क्योंकि अगर नहीं चलोगे, तो और ज़्यादा बड़ी कीमत देनी पड़ेगी..!!
पर जिसको कोई मिले ऐसा जो राह दिखा सके और सच बता सके, और वो उसको घर के दरवाज़े पर ही रोक दे,
उससे बड़ा अभागा कोई दूसरा नहीं होगा.
जहाँ आप जानते हैं क्या सही क्या गलत लेकिन जानते-बूझते गलत को चुनें..
Let people have value in your life only in the context of the Truth they bring to your life.
सच्चाई तुम्हें जो दुःख देती है, उसको चुनोगे, तो धीरे-धीरे दुःख कम होता जाएगा, _ _ दुःख से मुक्त होते जाओगे।
और सैकड़ों स्थितियाँ हो सकतीं हैं,
अगर जीवन तुम्हारा साथ नहीं दे रहा है _ तो तुमने ज़रूर कहीं सच का साथ छोड़ा है
तुम सच के हो जाओ _ जीवन तुम्हारा हो जाएगा
” सच सस्ता होता तो सभी सच में जी रहे होते “
_ तुम्हारा जन्म अपनी सच्चाई को अभिव्यक्ति देने के लिए हुआ है.
वो तुम्हें ललचाएँगे, पर तुम बाहर मत आना।
मछली तो पानी बिन जान दे देती है।
कैसा है इंसान जो सच बिना जिए जाता है !
ये मत कहिए कि मेरे पास समय नहीं है, या मेर मजबूरियाँ हैं, सीमाएं हैं !!
अपनी सीमाओं के बीच में ही एक छोटी- सी शुरुआत कीजिए,, आज ही !!!
जिसे भूलना हो, _ उससे बड़ी किसी चीज़ को लगातार याद रखो..
छोटी चीज अपने आप भूल जाओगे…
बदलते मौसमों में भी_ आसमान तो आसमान है..
हमेशा याद रखना __ उसके आगे भी मंज़िलें हैं..
_ और गलत को कोई वजह जायज़ नहीं कर सकती !
घड़ियाँ खरीदो, शर्ट खरीदो, व्यवसाय बढ़ाओ, नाम करो, परिवार करो !
समय की रेत पर ये घरौंदे खड़े करने के लिए नहीं जन्म हुआ था तुम्हारा !
तुम्हारा जन्म हुआ था ताकि जन्म सार्थक कर सको फिर और जन्म न लेना पड़े।
तैरना नहीं आता तो यही पानी जान ले लेगा,
पानी न अच्छा है न बुरा _ ज़िन्दगी की धारा को दोष मत दो – ” तैरना सीखो “
तुम्हारा हर क़दम निर्धारित कर रहा है कि अगला क़दम आसान पड़ेगा या मुश्किल.
_ तुम बस अभी जहाँ हो वहाँ से उठते एक कदम की सुध लो.
तो हर कदम से अगले कदम की हिम्मत मिलेगी, तुम कदम तो बढाओ.
अगर अभी जो है सामने _ उसे ठीक कर लिया, _ तो कल अपने-आप ठीक हो जाएगा.
जिसने अपने आपको धोखा देना बंद कर दिया, _ अब संसार उसे धोखा नहीं दे पाएगा.
जो दूसरों से धोखा खाना न चाहते हों, _ वो सबसे पहले अपने आपको धोखा देना बंद करें.
जो सच्चा है वो तुम्हारे साथ चल देगा _ जो झूठा है, वो अपने आप बिदक जाएगा.
कौन है _ जिसकी बात सुननी है, _कौन है _ जिसकी बात नहीं सुननी है.
नकली दोस्त तुम्हें तुमसे दूर ले जाता है.
साथी संभल के चुनना, भाई !
मन में कचरे के लिए जगह बचेगी ही नहीं.
_ उसे ठुकरा दो.
__ यह अपने – आप सीख जाओगे.
बड़े काम पर कोई छोटी निराशा हावी नहीं हो सकती.
बड़ा याद हो जिसको, छोटे की चिंता नहीं उसको.
तुम्हें मिली नहीं क्योंकि तुम्हें चाहिए नहीं थी.
जिन्हें ऊपर नहीं उठना _ उन्हें हिमालय की ऊँचाइयों पर भी गन्दगी दिख जाती है.
_ वो हर छोटी चीज़ को बहुत बड़ी समस्या बना लेगा.
तुम मुझे ये बताओ, सुलझी चीजों को _ उलझाते क्यों हो सौ बार ?
पिछला दिन दोहराने के लिए, _ या नया दिन लाने के लिए ?
_ और हम इसी भ्रम में हैं कि अभी समय बहुत है हमारे पास..
आप उनके दबाव में उनके जैसे न बन जाऍं, तो उनके सुधरने की भी संभावना बढ़ जाती है.
_ दुनिया को ऐसे लड़कों की बहुत ज़रूरत है..!!
पर किसी की चुप सुनने के लिए _ तुम चुप होने को तैयार भी हो ?
प्रेम का अर्थ होता है कि मैं तुम्हारे हित के लिए उत्सुक हूँ, आतुर हूँ !
मैं कहता हूँ, सच्चा प्यार तुमसे बर्दाश्त होता नहीं.
नही तो वही गलती फिर दोहराओगे.
फैसले की घड़ी कुछ देर की चुनौती होती है, _ लालच-डर-वासना ये उस समय ज़ोरदार हमला करते हैं, _
_ इनका वार बस उस एक घड़ी बर्दाश्त कर जाओ तो लंबे समय चैन से जियोगे.
वो भी तुम पर हावी हो जाती है.
तुम्हारे लिए लिखता हूँ, तुम पढ़ोगे या नहीं – न जानता हूँ _ न जानना है.
इसी से तुम्हारी जिंदगी तय होती है.
किसी की हिम्मत नहीं होनी चाहिए ” तुमसे फालतू बात करने की “
किसी और से कभी कहाँ हारे हो तुम !
मन से लडाई करके आजतक, ना तो कोई जीता है ना जीत सकता है.
जिन्हें अपना अंजाम बदलना हो, वो अपनी ज़िन्दगी बदलें..
जितनी देर बुराई करी उतनी देर में कुछ सार्थक ही कर लिया होता,
कुछ सुंदर ही कर लिया होता, तो तुम्हारा दिन कितना अलग होता _ कभी सोचना !
प्रयास न करने से भी घातक है _ गलत जगह पर बार बार प्रयास करना.
रो कर, चिल्ला कर औरों पर लगाते हैं ” अजीब हैं हम ! “
संघर्ष कभी खत्म नहीं होते – – संघर्षों के मध्य ही चैन सीखो
मददगार की तरह किसी के जीवन में बने ही न रहें। देखें कि कितनी जल्दी आप स्वयं को अनावश्यक बना सकते हैं। यही असली मदद है।
उचित सहारा कौन – सा है ?
उचित सहारा वो होता है, जो शनैः शनैः तुम्हें ऐसा बना दे, कि तुम्हें फिर किसी सहारे की आवश्यकता न रहे.
क्योंकि जो कमज़ोर नहीं है अगर तुमने उसे सुरक्षा दे दी, _ तो वो कमज़ोर हो जाएगा।
_ वो समय जहाँ लगाया, _ वहाँ शांति मिली या नहीं मिली ?
_ यदि आप किसी एक को अपने जीवन से निकाल पाएँ तो बाक़ी अपनेआप चले जाएँगे !
” उस कोने को याद रखो बस “
_ पंख और उड़ान के लिए _ मुट्ठी भर आसमान के लिए..
तो उनके शब्दों के साथ बैठ लो ” संगति ही सबकुछ है “
तुमने किसको अपना आदर्श बना लिया और किसकी संगति स्वीकार कर ली.
फिर बताना मुझे कि _ क्या मन अभी – भी इधर- उधर भटकता है.
जिसकी संगति में तुम मौन हो सको, वो तुम्हारा दोस्त । और जिसकी संगति में तुम अशांत हो जाओ, वो तुम्हारा दुश्मन है।
—— सावधानी से चाहना, क्योंकि जिसे चाहोगे वैसे ही हो जाओगे. ——
अधिकांश परिवार हिंसा भरा, बेहोशी भरा जीवन जीते हैं और सोचते हैं मौज तो है !
जब बिना अध्यात्म के पैसा बढ़ता जा रहा है, मौज, अय्याशी, विलासिता बढ़ती जा रही है तो सत्य की जरुरत क्या है ?
ऐसी सोच के परिवारों में दो खोट हैं, पहला बाहरी खुशियों से अंदर कोई ख़ुशी नहीं मिलती !
दूसरा ऐसे परिवारों के नजदीक जाओगे तो पाओगे कि उनके अंदर रोग हैं, समस्याएं हैं !!
मेहनत अपने-आप हो जाती है, गिननी नहीं पड़ती.
ठीक वैसे ही जैसे बैडमिंटन खेलो तो स्कोर गिनते हो, कैलोरी तो नहीं न ? कैलोरी अपने-आप घट जाती है. इधर स्कोर बढ़ रहा है, उधर कैलोरी घट रही है.
पीछे-पीछे जो होना है वो चुपचाप हो रहा है, वैसा ही जीवन होना चाहिए.
तुम वो करो जो आवश्यक है, उससे तुम्हारा जो लाभ होना है वो पीछे-पीछे चुपचाप हो जाएगा; तुम्हें वो लाभ गिनना नहीं पड़ेगा.
” ऐसे जियो कि जैसे खेल हो, जान लो की खेल है, फिर जान लगाकर खेलो ? “
_ अच्छा परिणाम आ जाए, बहुत अच्छी बात है ..
निरन्तर सत्य को चुनने का कोई विकल्प नहीं होता.
अगर जीवन को सरल, सहज, शांत बनाना है, _ तो हर कदम, जो सही है उसे चुनना होगा.
मन डरेगा . . . आलस रोकेगा, _ लेकिन हिम्मत कर, सही निर्णय लेना होगा..
मिलना हो कि बिछड़ना, पाना हो कि गँवाना, एक से रहो.
मानो खेल हो, _ जीते तो बस हल्के से मुस्कुरा दिए और हारे तो भी बस मुस्कुरा दिए, बात खत्म !
जो उत्तेजित बहुत होते हैं वही फिर अवसाद में जाते हैं.
आपसे पहले भी दुनिया थी, आपके बाद भी दुनिया रहेगी _
_ ” किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ना है “
_ ईमानदारी से सफलता नहीं मिलेगी, ईमानदारी ही सफलता है.
छीनने का बल दिखाएं _ ” यही शक्ति है “
पसंद – नापसंद बाद में देखी जाएगी.
कल अच्छा था या बुरा था, उस पर नहीं रुक जाना है,
यात्रा को ही जन्म लेते हैं, यात्री को चलते जाना है
मेहनत से कल बनाया था, मेहनत से आज बनाना है,
मंज़िल आई बीत गयी, अब आगे कदम बढ़ाना है.
उत्तेजित होते हो तो _ दूसरों की वजह से,
ऊबते हो तो _ दूसरों की वजह से,
आकांछा है तो _ दूसरों की,
और डर है तो _ दूसरों से,
” सब कुछ तो दूसरों का ही है “
जो बातें पहले उलझी-उलझी थीं, अगर वो अब सरल और सुलझी हुई हो गई हैं, तो जान लो कि रोशनी की तरफ़ बढ़ रहे हो.
और उलझनें यदि यथावत हैं, तो जान लो कि अँधेरा कायम है.
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मन का माहौल बढ़िया रखने का एक ही तरीका है
मन को किसी ऊँचे-से-ऊँचे कार्य में लगा दीजिए।
मन का मौसम उतना ही सुहाना रहेगा,
जितना सुहाना मन का लक्ष्य।
मन का लक्ष्य ही अगर सुंदर नहीं है,
तो मन की हालत सुंदर नहीं हो सकती।
मन का लक्ष्य अगर होगा—नोट और सिक्के।
तो मन भी वैसा ही होगा सिक्के जैसा, नोट जैसा।
फाड़ो तो फट जाए और गिराओ तो टन-टन-टन-टन करे !
मन का लक्ष्य होगा अगर बड़ी-बड़ी इमारतें
और घर और फैक्ट्रियाँ,
तो मन भी फिर ईंट-पत्थर जैसा होगा।
खुरदुरा, शुष्क, रुखा और टूटने को तैयार
कि ईंट पटक दी और टूट गई।
मन भी ऐसा ही होगा खट से टूट गया।
मन का जैसा लक्ष्य मन की वैसी हालत।
मन कमज़ोर लगता हो अगर, तो जान लीजिए
मन ने लक्ष्य ही कमज़ोर बना रखे हैं।
जीवन में, जो भी आप की परिस्थितियों में,
उच्चतम लक्ष्य संभव हो उसको रखिए
और आगे, और आगे बढ़ते जाइए,
जीवन इसीलिए है।
छोटी-छोटी चीज़ों में उलझे रहेंगे,
तो ‘मन’ भी छोटा हो जाएगा। ➖➖➖➖
मन चंगा रखिए, जीवन अपनेआप चंगा रहेगा !