जिस राह पर..हर बार मुझे अपना कोई छलता रहा,
फिर भी न जाने क्यों मैं उस राह ही चलता रहा !
सोचा बहुत इस बार रोशनी नहीं ..धुआं दूंगा,
लेकिन चिराग था…..फितरत से जलता रहा……जलता ही रहा….
फिर भी न जाने क्यों मैं उस राह ही चलता रहा !
सोचा बहुत इस बार रोशनी नहीं ..धुआं दूंगा,
लेकिन चिराग था…..फितरत से जलता रहा……जलता ही रहा….