लाखों में एक बनें, न कि एक लाख एक ;
_ एक लाख एक यानी भेड़- चाल में चलने वाले और लाखों में एक यानी जिगरबाज़,
_ जो अपना रास्ता खुद चुन लेते हैं..
भेड़ कौन:- जो भीड़, प्रसिद्धि के आधार पर भीड की नजरों से खुद को देखता और उसी आधार पर चीजो को सही-गलत, तुच्छ-महान में गिन लेता.
भेड़
भेड़ किताबें नहीं पढ़ती
वे कविता नहीं लिखती
भेड़ भीड़ का हिस्सा है
वे एकांत में नहीं रहती
कला या विज्ञान में डूब जायें
ऐसा उनमें दिमाग़ नहीं
समाज को बदलने का सोचें
ऐसी उनमें आग नहीं
भेड़ चलती हैं एक ढर्रे पर
वे ख़ुद से कुछ सोचती नहीं
जीवन में हो ऊँचा मक़सद
वे ऐसा कुछ खोजती नहीं
पूरी ज़िंदगी है टाइमपास
वे अनमनी सी फिरती हैं
वे कभी कुछ रचती नहीं
वे हर समय बस चरती हैं
Vijeta Dahiya