हमने उदासियों में गुजारी है ज़िन्दगी-
लगता है डर फ़रेब-ए-वफ़ा से कभी कभी-
ऐसा न हो कि ज़ख्म कोई फिर नया मिले-
अब तक तो जो भी दोस्त मिले बेवफ़ा मिले.
लगता है डर फ़रेब-ए-वफ़ा से कभी कभी-
ऐसा न हो कि ज़ख्म कोई फिर नया मिले-
अब तक तो जो भी दोस्त मिले बेवफ़ा मिले.