सुविचार – हम वो आखरी पीढ़ी हैं – 1026

* हम वो आखरी पीढ़ी हैं, जिन्होंने कई- कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है.

* हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ परम्परागत खेल, गिल्ली- डंडा, छुपा- छिपी, खो- खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं.

* हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और किताबें पढ़ें हैं.

* हम वही पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, खतों में आदान प्रदान किये हैं.

* हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुजारा है.

* हम वो आखरी लोग हैं, जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे.

* हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी, किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये हैं.

* हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है.

* हम वो आखरी लोग हैं, जो मोहल्ले के बुजुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे.

* हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया है.

* हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगा कर शेव बनाई है. जिन्होंने गुड़ की चाय पी है. काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है.

* हम निश्चित ही वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर बीबीसी की खबरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका जैसे प्रोग्राम सुनें हैं.

* हम ही वो आखरी लोग हैं, जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे. उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे. एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था. सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे. वो सब दौर बीत गया, चादरें अब नहीं बिछा करतीं. डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं.

* हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, जो लगातार कम होते चले गए. अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन व निराशा में खोते जा रहे हैं. हम ही वो खुशनसीब लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है…!!

हम एकमात्र वह पीढ़ी हैं, जिसने अपने माँ- बाप की बात भी मानी और बच्चों की भी मान रहे हैं.

हम वो आखरी पीढ़ी हैं इसने क्या खोया क्या पाया.

मैं तकरीबन 54 साल का हूँ, मैं और मेरे हमउम्र लोग या हमारे मौजूद बुजुर्ग गवाह हैं,
_उस टेक्नोलॉजिकल बदलाव या क्रांति के जो हमने पिछले 40-50 साल में देखा है.
— हमने अपने घरों में हाथ की चक्की पर औरतों को गेहूं पीसते देखा है, घर में औरतों को मटके में दूध बिलोते देखा है,
_हमने खुद चारा काटने की मशीन पर चारा काटा है, औरतों को सिल पर मसाला पीसते देखा है,
_मिट्टी के चूल्हे पर रोटी बनते देखी हैं, बरोसी(हांडी) में 10-12 घन्टे पका हुआ मोटी मलाईयुक्त दूध पिया है,
_हमने घर की औरतों को सेंवई(आज की मैग्गी, चाऊमीन), उड़द/मूंग की दाल की मंगोड़ी/बड़ी, आलू के चिप्स, चावल की कचरी को हाथ से बनाते देखा है.
— हमने वह वक़्त भी देखा है, जब गांवों में बिजली नही होती थी या नामचारे को होती थी,
_हमने मिट्टी के तेल की डिबिया, लालटेन या लैंप में पढ़ाई भी की है,
_हमने मिट्टी के कच्चे पक्के घर और आँगन में पेड़ और छप्पर भी पड़े देखे हैं,
_हमने कंचे, गुल्ली डंडा, कुश्ती कबड्डी खूब खेले/देखें है, हमने कैंची/डंडे की साइकिल भी खूब चलाई है,
_हमने बरसात के पानी मे कागज की नाव भी खूब चलाई हैं, हमने कागज के हवाई जहाज भी खूब उढायें हैं,
हमने खूब ट्यूबवेल की कुंडी में नहाने का भी मजा लिया है,
_हमने खूब पतंगों के पेच भी लड़ायें हैं,
_ हमने बाग के आम, अमरूद, जामुन खूब तोड़कर/चुराकर खाये हैं,
_हमने सिंचाई के साधन हल, ट्रेक्टर, ट्यूबवेल और कुछ हद तक रहट भी देखें हैं,
_हमने संचार के साधन पोस्टकार्ड, अंतरदेशीय पत्र, पीला लिफाफा, टेलीग्राम भी देखें इस्तेमाल किए हैं,
हमने रेडियो, टेपरिकॉर्डर, थोड़ा बहुत ग्रामोफोन, ब्लैक एंड व्हाइट टीवी की इतवार की फ़िल्म और बुधवार के चित्रहार का लोगों में क्रेज भी देखा है,
_हमने छत पर नाचते, पीहू पीहू करते मोर भी देखे हैं, हमने मुर्गे की बांग के साथ दिन निकलते भी देखा है.
_मुझे आज भी सुबह सूरज के निकलने से पहले की दादी नानी द्वारा चक्की पीसने की मद्धम मद्धम सरसराहट भरी आवाज और फाख्ता की बोली से बेहतर कोई रिंगटोन नही लगी.
— हमारी जनरेशन और आज की जनरेशन में जो बुनियादी फर्क है, वह तजुर्बे का है.
_नई नस्ल खुद को स्मार्ट बोल सकती है, पर हम लोग उनकी उम्र में कमोबेश सच्चे, सादा और सरल थे.
_आज की जनरेशन को केवल आज का तजुर्बा है _और हमारी जनरेशन को आज के साथ- साथ गुजरे कल का भी तजुर्बा है.
_आज की जनरेशन की दुनिया कमोबेश स्मार्ट फोन की आभासी दुनिया तक सिमटी हुई है,
_यही इनका मनोरंजन है, यही इनका खेल का मैदान है, यही इनका कारोबार है, और यही इनका ओढ़ना बिछोना है.
–एक और बड़ा फर्क है दोनो में, आज की जनरेशन दिन भर कुर्सी/चारपाई तोड़ने के बाद, शाम को जिम में पसीना बहाने जाती है,
_पैसे देकर आर्टिफीसियल सेहत खरीदती है.
_वहीं पुरानी जनरेशन, क्या आदमी क्या औरत सबकी दिनचर्या में ही जिम था,
_सारा दिन पसीना निकलता था, भूख बढ़िया लगती थी, सेहत तो खुदबखुद बढ़िया रहती थी.
_पहले सभी बच्चे दाई के हाथों घर मे ही पैदा होते थे.
— इतने सारे तजुर्बों का जखीरा रखने के बावजूद, बच्चों को बेहतर खिलाने-पिलाने, पहनाने के बावजूद,
पेट काटकर महंगी पढ़ाई दिलाने के बावजूद,
_जब फेसबुक-व्हाट्सएप्प से ज्ञान हासिल करने वाली नस्ल यह कहती है कि _हमारे बाप को आता ही क्या है _या हमारे बाप ने हमारे लिए किया ही क्या है _तो आदमी ठगा हुआ सा महसूस करता है.
_उसके पास सिवाय खामोशी अख्तियार करके आँसू पीने के अलावा कोई चारा नही होता.
_सयाने लोग शायद इसी चीज को ‘जनरेशन गैप’ कहते होंगे.
Notes : पहले हर चीज़ ज्यादा असली और शुद्ध थी, लेकिन कुछ भी स्थिर नहीं है. केवल परिवर्तन ही स्थिर है.
लेकिन आज जो जीवन जी रहे हैं, ये संभव नहीं है _अगर हम नए उपकरण नए उपकरणों का उपयोग न करें।
मोबाइल की सहायता से ही हमारा टिकट हो रहा, होटल बुकिंग हो रहा, क्या क्या नहीं हो रहा..

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