मैं छिपाना चाहता हूँ खाली फटी जेब के छेद, उनमें उंगलियां डालकर, मुट्ठियां भर कर..
मैं छिपाना चाहता हूँ, घर से दफ्तर जाते _ दफ्तर से घर आते, वह एक बड़ी लंबी सी सूची _ जिसमें लिखा होता है _ दफ्तर जाते वक्त करना है क्या ? पर रोज मैं उस लंबी सूची के मुताबिक न कुछ कर पाता हूं _ न ला पाता हूं..
मैं छिपाना चाहता हूँ, कमीज की उघड़ी सिलाई, टूटे बटन, पेंट की तुरपाई, _ कभी इस कमीज को कभी उस पैर को बदल- बदल कर _ लेकिन आस्तीन से बाहर झांकती _ अंदर की धुलाई से लंबी हो गई बनियान की लटकती बाहें – दबे छुपे कह ही देती हैं _ बहुत कुछ..