सुविचार – *ज़रा सा फर्क होता है,**रहने में और ना रहने में* – 1108

*ज़रा सा फर्क होता है,*

*रहने में और ना रहने में*
*ये इतने सारे लोग जो गए हैं*
*क्या इनको देखकर कभी ऐसा लगा था कि ये, यूं ही चले जायेंगे ।* *बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए ।*
*उन सब से कुछ लगाव था हमें।* *कुछ शिकायतें थी।*
*कुछ नाराजगी भी हो सकती थीं।* *जो कभी, कही नहीं हमने* *पर कहा तो हमने वो भी नहीं,*
*जो उनमें, बेहद पसंद था हमें ।*
*फिर अचानक एक दिन खबर आती है।*
*’ये नहीं रहे’, ‘वो नहीं रहे’*
*नहीं रहे मतलब , कैसे नहीं रहे ?*
*कैसे एक पल में सब कुछ बदल जाता है।*
*वही सारे लोग, जिनसे हम अक्सर मिला करते थे कल तक।*
*वे इतनी जल्दी कैसे गायब हो सकते है, कि दोबारा मिलेंगे ही नहीं।*
*जैसे कोई बेजान खिलौना,*
*जिसकी चाबी खत्म हो गयी हो।*
*कितना कुछ कहना रह गया था उनको।*
*कहीं घूमने जाना था उनके साथ, खाना भी खाना था , पार्टियां भी करनी थी।*
*कुछ बताना था, कुछ कहना भी था उनको।*
*बहुत सी बातें करनी थी फ़िज़ूल की ही सही।*
*पर वो भी कहाँ हो पाया।*
*सब कुछ रह गया , वो चले गए।*
*न हम ही तैयार थे।*
*न वो ही तैयार थे,*
*रुख़्सती के लिए*
*ऐसे ही एक दिन हमारी सब की खबर आनी है,
‘एक सुबह कि वे नहीं रहे’*
*लोग अरे!!!!! कह कर एक मिनिट खामोश होंगे,*
*फिर जीवन बढ़ जाएगा आगे।*
*इसलिए आओ तैयारी कर लेते हैं,*
*सब नाराज़गी, शिकायतों और तारीफों का हिसाब चुकता करते हैं।*
*ज़िंदगी हल्की हो जाएगी, तो आखरी सांस पर, मलाल नहीं रहेगा।* *क्योंकि*
*ज़रा सा फर्क होता है,*
*जिंदा रहने में, और एक दिन ना रहने में*!!!!!

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