हमें अपने स्त्रोत को बाहर की ओर बहने देना चाहिए. इसका परिणाम यह होता है कि हम जो कुछ भी करते है, उसमे दिव्यता आ जाती है.
जब हम बोलते हैं, कुछ कहते हैं, बात करते हैं, चलते हैं तो उसमे दिव्यता होती है. क्योंकि इसे हम नहीं कर रहे हैं, यह तो हमारा आंतरिक स्त्रोत हमारे माध्यम से कर रहा है.