सुविचार 1814

रास्ते भी थक गये, मंजिल अभी भी दूर है,

सच कहूँ तो रास्ता, मेरा अभी आया नहीं।
थक गई है उम्र, लेकिन, जान कदमों में अभी है,
क्या करूँ मुझको अभी, थमना मगर आया नहीं।
तुम भटकना कह रहे जिसको, वो फ़ितरत है मेरी,
मैं हूँ सैलानी, कहीं बसना मुझे आया नहीं।
जो अटक के रह गया, अहसास के अँदर मेरे,
कोशिशें तो की मगर, वो लफ़्ज में आया नहीं।
यूँ मुझे तहज़ीब अपनी, याद है अच्छी तरह,
ढंग दुनिया वाला मुझको, अब तलक आया नहीं।
मैं अगरचे रास्ते से, एक दिन मुड़ जाऊँ तो,
सोचना में रास्ते तेरे, कभी आया नही।
यूँ जमीं के रास्तों पे, लोग बेशक साथ हों,
यार वो होता नहीं जो, दिल तलक आया नहीं।
ज़िंदगी एक आस पकड़े, चल रही है जिस तरफ,
आस क्या है ? ज़िंदगी को, ये समझ आया नहीं।
** कुंवर उदय ** अजमेर

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected